केवल एक पक्षकार के अनुपस्थित रहने पर तलाक नहीं दिया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि केवल एक पक्ष के अनुपस्थित रहने या लिखित बयान दाखिल न करने पर तलाक का आदेश पारित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने आगे कहा कि एकपक्षीय कार्यवाही में भी ट्रायल कोर्ट को विवाह विच्छेद करने से पहले याचिकाकर्ता के साक्ष्य का स्वतंत्र रूप से आकलन करना चाहिए और गुण-दोष के आधार पर निष्कर्ष दर्ज करने चाहिए।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस संदेश डी. पाटिल की खंडपीठ फैमिली कोर्ट द्वारा 5 नवंबर 2024 को पारित तलाक के फैसले और डिक्री को चुनौती देने वाली फैमिली कोर्ट की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने उसका विवाह विच्छेद कर दिया था। पति ने क्रूरता के आधार पर विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 27(1)(डी) के तहत याचिका दायर की थी। पत्नी हालांकि शुरू में अदालत में पेश हुई, उसने कोई लिखित बयान या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया, जिसके बाद मामला एकपक्षीय रूप से आगे बढ़ा और विवाह विच्छेद हो गया।
कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने पति के साक्ष्यों या उसके आरोपों को स्वीकार करने के कारणों का विश्लेषण किए बिना ही तलाक का आदेश दे दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट ने यह माना था कि पत्नी ने पति के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार केवल इसलिए किया, क्योंकि पति की गवाही को चुनौती नहीं दी गई।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“आश्चर्यजनक रूप से ट्रायल कोर्ट ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई कारण नहीं बताया है। पूरा मुद्दा नंबर 1 जल्दबाजी में और लापरवाही से निपटाया गया। ट्रायल कोर्ट ने यह पाया कि अपीलकर्ता-पत्नी ने प्रतिवादी पति के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया, इसका एकमात्र कारण यह है कि पति की गवाही को चुनौती नहीं दी गई।”
खंडपीठ ने दोहराया कि एकपक्षीय रूप से निर्णीत कार्यवाही स्वतः ही निर्णीत नहीं होती और मामले को गुण-दोष के आधार पर साबित करने का दायित्व याचिकाकर्ता पर ही रहता है।
कोर्ट ने कहा,
"ट्रायल कोर्ट इस कानूनी स्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ रहा है कि केवल इसलिए कि कार्यवाही को एकपक्षीय रूप से निर्णीत करने का आदेश दिया गया, इसका अर्थ यह नहीं है कि कार्यवाही स्वतः ही निर्णीत हो जाएगी। ट्रायल कोर्ट इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर गई कि भले ही पक्षकार ने लिखित बयान दाखिल न किया हो, वादी/याचिकाकर्ता के तर्कों को सत्य नहीं माना जा सकता और ट्रायल कोर्ट को स्वतंत्र रूप से गुण-दोष के आधार पर उनका विश्लेषण करना होगा।"
कोर्ट ने टिप्पणी की कि ट्रायल कोर्ट ने मामले का निपटारा लापरवाही और यांत्रिक तरीके से किया, ट्रायल कोर्ट का यह दायित्व था कि वह प्रतिवादी-पति द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर अपने निष्कर्ष दर्ज करे।
तदनुसार, कोर्ट ने 5 नवंबरस 2024 का तलाक का आदेश रद्द कर दिया और मामले को लिखित बयान दाखिल करने के चरण से नए सिरे से निर्णय के लिए फैमिली कोर्ट को भेज दिया। पत्नी को 30 दिनों के भीतर अपना लिखित बयान दाखिल करने की अनुमति दी गई और फैमिली कोर्ट को नौ महीने के भीतर मामले का फैसला करने का निर्देश दिया गया।
Case Title: Riya Suralkar v. Rahul Suralkar [Family Court Appeal No. 101 of 2025]