सहमति से बनाया गया संबंध साथी का यौन, शारीरिक या आर्थिक शोषण करने का अधिकार नहीं देता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-07-05 04:00 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पुरुष और महिला के बीच सहमति से संबंध भी है तो भी यह साथी का शोषण करने का अधिकार नहीं देता। हाईकोर्ट ने बुधवार को ऐसे व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया, जिस पर शीलभंग, अपहरण, जबरन वसूली, बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप है।

जस्टिस एनजे जमादार ने विभिन्न गवाहों के बयानों से संकेत मिलता है कि पीड़िता के साथ विवाहेतर संबंध रखने वाले आवेदक ने कैसे पीड़िता के साथ बुरा व्यवहार किया।

जस्टिस जमादार ने आदेश में कहा,

"यह तथ्य कि आवेदक ने हिरासत में रहते हुए शिकायतकर्ता को धमकी दी है और यहां तक ​​कि हिरासत से भागने का प्रयास भी किया, उसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक ने पहले शिकायतकर्ता का यौन, शारीरिक और आर्थिक शोषण किया है। सहमति से बनाया गया संबंध, भले ही आवेदक की ओर से प्रस्तुत किए गए तर्क को बराबर माना जाए, साथी का शोषण करने का लाइसेंस नहीं देता है, खासकर उस तरीके से जिस तरह से इस मामले में रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से संकेत मिलता है।"

जज ने पुणे के हडपसर निवासी प्रीतम ओसवाल को जमानत देने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं। अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, आवेदक की मुलाकात पीड़ित महिला से सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर हुई थी। उसने कुछ लोगों के खिलाफ शुरू किए गए मुकदमे में उसकी मदद करने की पेशकश की। उसने शुरू में उसके साथ भाई जैसा व्यवहार किया लेकिन 10 जुलाई, 2020 को वह उसे वकील से मिलने के बहाने कार में ले गया। वह कार को एक सुनसान जगह पर ले गया और फिर बंदूक की नोक पर पीड़िता के साथ जबरन यौन संबंध बनाए। उसने कई मौकों पर उसका यौन शोषण किया और इस कृत्य का वीडियो भी बनाया।

यह भी आरोप लगाया गया कि जब वह गर्भवती हुई तो आवेदक ने उसे अबॉर्शन के लिए मजबूर किया। उसने प्रेग्नेंसी से छुटकारा पाने के लिए उसके पेट पर लात-घूंसों से हमला भी किया। आखिरकार सितंबर 2022 में उसका अबॉर्शन हो गया। इसके बाद मई 2023 में जब पीड़िता आवेदक के घर गई और उससे सोना और पैसे वापस मांगे तो उसने अपने पिता के साथ मिलकर उसका यौन शोषण किया।

अपने बचाव में आवेदक ने तर्क दिया कि यह दोनों पक्षकारों के बीच सहमति से बना संबंध था और उसने केवल एक बार उसका शारीरिक शोषण किया, जब पीड़ित महिला ने अबॉर्शन पर जोर दिया, क्योंकि आवेदक चाहता था कि वह उनके बच्चे को जन्म दे। इसके अलावा, यह भी तर्क दिया गया कि आवेदक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में अस्पष्ट देरी हुई।

दलीलें सुनने के बाद जज ने कहा कि पहली नज़र में आवेदक की दलीलें आकर्षक लगती हैं कि पीड़िता ने अगस्त 2023 में एफआईआर की तारीख से पहले यौन संबंध की रिपोर्ट क्यों नहीं की या इसका विरोध क्यों नहीं किया।

जज ने आवेदक के किराएदार से लेकर उसके कर्मचारी और कुछ स्वतंत्र गवाहों के बयानों पर विचार किया, जिन्होंने गवाही दी कि कैसे आवेदक ने पीड़िता का गला घोंटने की भी कोशिश की, क्योंकि वह अबॉर्शन कराने को तैयार नहीं थी।

जज ने कहा,

"गवाहों के बयानों को आवेदक और प्रथम सूचनाकर्ता के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत की प्रतिलिपि के साथ पढ़ा जाना चाहिए, जो प्रथम दृष्टया यौन शोषण और धमकी देने के संबंध में प्रथम सूचनाकर्ता के आरोपों की पुष्टि करता है, जिसमें यह धमकी भी शामिल है कि आवेदक प्रथम सूचनाकर्ता को नहीं छोड़ेगा, भले ही उसे उसकी हत्या के लिए सजा सुनाई जाए।"

इन टिप्पणियों के साथ जज ने जमानत याचिका खारिज की।

केस टाइटल: प्रीतम चंदूलाल ओसवाल बनाम महाराष्ट्र राज्य।

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