अडल्ट्री तलाक का आधार, लेकिन यह बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-04-20 07:00 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अडल्ट्री तलाक का आधार है लेकिन यह बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।

जस्टिस राजेश पाटिल ने अडल्ट्री के आधार पर अपनी अलग रह रही पत्नी से अपनी नौ वर्षीय बेटी की कस्टडी की मांग करने वाले पूर्व विधायक के बेटे द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी।

अदालत ने कहा

"अडल्ट्री किसी भी मामले में तलाक का आधार है लेकिन यह कस्टडी न देने का आधार नहीं हो सकता।"

अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2024 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें विवाहेतर संबंध के आरोपों के साबित होने के बावजूद पत्नी को कस्टडी दी गई।

याचिकाकर्ता आईटी पेशेवर है और उसकी पत्नी डॉक्टर है। उन्होंने 2010 में शादी की थी। 2015 में उनकी बेटी हुई। पत्नी ने दावा किया कि उसे दिसंबर 2019 में उनके वैवाहिक घर से निकाल दिया गया।

वहीं पति ने दावा किया कि वह खुद ही चली गई। जनवरी 2020 में पत्नी ने अपने पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। पति ने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए अर्जी दी। फरवरी 2023 में फैमिली कोर्ट ने लड़की की अंतरिम कस्टडी पत्नी को दी। नाबालिग बेटी की कस्टडी 24 फरवरी 2023 से 9 फरवरी 2024 तक लगभग एक साल की अवधि के लिए पत्नी के पास रही।

पति ने 24 फरवरी 2023 को बेटी को पत्नी को सौंपकर कस्टडी आदेश का पालन किया, लेकिन 11 फरवरी 2024 को सप्ताहांत की यात्रा के बाद वह बेटी को उसकी माँ के घर वापस नहीं लौटा पाया।

उसने कस्टडी व्यवस्था में संशोधन की मांग करते हुए एक अंतरिम आवेदन दायर किया जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस प्रकार उसने हाइकोर्ट के समक्ष वर्तमान रिट याचिका दायर की।

पति ने नाबालिग बेटी की कथित असुविधा और पत्नी के कथित कई मामलों का हवाला देते हुए पत्नी की कस्टडी के खिलाफ तर्क दिया।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे दावों की पुष्टि होनी बाकी है और हिरासत के मामलों में यह निर्णायक कारक नहीं हो सकता।

आरोपों के आधार पर इस बात पर संदेह कि क्या कस्टडी पत्नी को दी जा सकती है का कोई असर नहीं होगा। विभिन्न निर्णयों के अनुसार इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक अच्छी पत्नी का न होना जरूरी नहीं है कि वह एक अच्छी माँ भी न हो।

अदालत ने कहा कि पेशे से डॉक्टर पत्नी ने बेटी के स्कूल के पास उपयुक्त आवास की व्यवस्था की थी। इसके अतिरिक्त न्यायालय ने पाया कि बच्ची की दादी जो पत्नी के साथ रहती थी ने बेटी की देखभाल में अतिरिक्त सहायता प्रदान की थी।

स्कूल में बेटी के व्यवहार के बारे में उठाई गई चिंताओं को संबोधित करते हुए न्यायालय ने सवाल किया कि स्कूल अधिकारियों ने माता-पिता जो अच्छी तरह से शिक्षित थे के बजाय पैतृक दादी जो एक पूर्व विधायक हैं से संवाद क्यों किया।

न्यायालय ने कहा,

“मेरे अनुसार स्कूल अधिकारियों के पास नाबालिग बेटी से संबंधित मुद्दों के बारे में दादी (जो एक राजनीतिज्ञ हैं) को सूचित करने का कोई कारण नहीं है जबकि नाबालिग बेटी के दोनों माता-पिता उपलब्ध हैं। इसलिए कोई यह भी नहीं भूल सकता कि दोनों माता-पिता अच्छी तरह से शिक्षित हैं और वास्तव में नाबालिग बेटी की माँ पेशे से डॉक्टर है।”

न्यायालय ने कस्टडी विवादों में बच्चे के कल्याण के सर्वोपरि विचार पर प्रकाश डाला विशेष रूप से बेटी की नौ वर्ष की कोमल आयु को देखते हुए। इसने बच्चे के वातावरण में स्थिरता और निरंतरता बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया विशेष रूप से उसकी यौवन-पूर्व आयु को देखते हुए।

अदालत ने पाया कि लड़की की नानी उसकी देखभाल कर रही थी और उसकी शैक्षणिक रिकॉर्ड और माँ के साथ कस्टडी के दौरान पाठ्येतर गतिविधियों में भागीदारी सराहनीय थी।

नतीजतन पीठ ने याचिकाकर्ता को 21 अप्रैल तक पत्नी को कस्टडी सौंपने का निर्देश दिया।

केस टाइटल - अभिषेक अजीत चव्हाण बनाम गौरी अभिषेक चव्हाण

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