पति पर विवाहेतर संबंध का आरोप लगाना और दोस्तों के सामने उसका अपमान करना क्रूरता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि पत्नी द्वारा अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना और उस पर विवाहेतर संबंध का आरोप लगाना, साथ ही उसके दोस्तों के सामने उसका अपमान करना, पति के प्रति क्रूरता माना जाएगा।
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा पति का उसके दोस्तों के सामने अपमान करना और उसके कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करना पति को मानसिक पीड़ा पहुंचाएगा।
जजों ने कहा,
"पति अपने परिवार के व्यवसाय का हिस्सा है। अपने कर्मचारियों के साथ पत्नी के व्यवहार से संबंधित अखंडित साक्ष्य उसे पीड़ा पहुंचाने वाले हैं। इसी प्रकार, अपने दोस्तों के सामने उसे अपमानित करना भी उसके प्रति 'क्रूरता' है। इसके अलावा, अपनी दिव्यांग बहन के साथ उदासीन व्यवहार भी उसे और उसके परिवार के सदस्यों को पीड़ा पहुंचाने वाला है। शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना और विवाहेतर संबंधों का आरोप लगाना भी पत्नी द्वारा क्रूरता है।"
खंडपीठ पुणे की फैमिली कोर्ट द्वारा 28 नवंबर, 2019 को पारित फैसले को चुनौती देने वाली पत्नी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। इस फैसले में न्यायालय ने पति द्वारा दायर याचिका पर तलाक का आदेश दिया था और पत्नी की याचिका खारिज की थी, जिसने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की थी।
इस जोड़े की शादी 12 दिसंबर, 2013 को हुई थी। एक साल के भीतर ही यानी 14 दिसंबर, 2014 को वे अलग हो गए। दोनों पक्षकारों ने अप्रैल, 2015 में आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दाखिल की थी, लेकिन जुलाई, 2015 में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसे यह अर्जी दाखिल करने के लिए मजबूर किया गया। इसलिए उसने अपनी सहमति वापस ले ली। इसके बाद उसने स्थानीय पुलिस में पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
पति ने पत्नी पर आरोप लगाया कि उसने उसके दोस्तों के सामने उसे अपमानित करके, उसके कार्यालय में घुसकर उसके कर्मचारियों से बदतमीजी से बात करके, शादी के पहले चार महीनों तक शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करके, अपनी शादी की सालगिरह को अपनी असफलता का दिन कहकर, उसके साथ क्रूरता की।
जजों ने कहा कि पति ने अपने परिवार का घर छोड़कर पत्नी के साथ किराए के फ्लैट में रहकर भी शादी बचाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं आई।
जजों ने कहा,
"शादी बिना किसी सुधार की संभावना के टूट गई, यह इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि दोनों पक्षकारों ने 2015 में ही आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर की थी। यह भी स्वीकार्य तथ्य है कि पति ने अपने पारिवारिक घर से किराए के फ्लैट में जाकर अपने रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश की। उसने पत्नी को वहां रहने के लिए आमंत्रित किया और उसे उक्त फ्लैट की चाबी भी दी। इसके बावजूद, वह नए फ्लैट पर नहीं आई। पति का यह साक्ष्य भी निर्विवाद है, जो पत्नी के इस दावे का खंडन करता है कि उसने उसे छोड़ दिया था।"
अपने आदेश में खंडपीठ ने इस मामले को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया, जहां पक्षकारों द्वारा कई बार मध्यस्थता करने के बावजूद, मामला सुलझ नहीं पाया। जजों ने कहा कि पहले भी मामले की सुनवाई कर चुकी समन्वय पीठों ने भी पक्षों की मदद करने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया,
"दोनों पक्षकारों के बीच वैवाहिक कार्यवाही वर्ष 2015 में फैमिली कोर्ट, पुणे में शुरू हुई। इस अपील के माध्यम से इस न्यायालय तक पहुंचने से पहले वे लगातार भटकते रहे। पक्षों की लंबी पीड़ा को समाप्त करने और उनके विवादों को सुलझाने के अंतिम प्रयास के रूप में हमने मामले को चैंबर में रखा। हमने पक्षकारों को सौहार्दपूर्ण समाधान तक पहुंचाने के लिए लंबी बैठकें कीं, लेकिन दुर्भाग्य से हम पक्षकारों के बीच गतिरोध को समाप्त नहीं कर पाए। इस कारण हम पर दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक बंधन के भाग्य का फैसला करने का दायित्व आ गया।"
इसके अलावा, जजों ने कहा,
"एक दशक से भी अधिक समय से दोनों पक्ष अलग-अलग रह रहे हैं। विवाह अब और नहीं चलता और फैमिली कोर्ट द्वारा कानूनी रूप से भी इस रिश्ते को समाप्त और पुष्ट किया जाता है। यह अपील इस न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा में यथास्थिति को जारी रखती है।"
इन टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा और पत्नी की अपील खारिज कर दी।
Case Title: PAB vs ARB (Family Court Appeal 53 of 2021)