Tirupati Laddu Case | CBI निदेशक ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
तिरुमाला तिरुपति मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले लड्डू बनाने में मिलावटी घी के इस्तेमाल के आरोपों से संबंधित एक मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि CBI निदेशक ने जांच के लिए एक ऐसे अधिकारी को जांच अधिकारी नामित करके सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत गठित SIT का हिस्सा नहीं था।
जस्टिस हरिनाथ एन ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि SIT का गठन सबसे पहले पिछले साल राज्य द्वारा किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के साथ पुनर्गठित किया गया और प्रतिवादी नंबर 10 जे वेंकट राव को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसरण में गठित SIT में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारी के रूप में विशेष रूप से नामित नहीं किया गया।
न्यायालय ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया और कहा कि इसमें स्पष्ट किया गया कि जांच पांच सदस्यों वाली स्वतंत्र SIT द्वारा की जानी चाहिए। जांच का काम इन सदस्यों वाली स्वतंत्र एजेंसी को सौंपा गया। न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसी परिस्थितियों में "CBI सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विपरीत प्रतिवादी अधिकारी को नामित नहीं कर सकती थी।"
"सरकारी वकील का यह तर्क कि CBI निदेशक को दसवें प्रतिवादी को जांच अधिकारी के रूप में नामित करने का अधिकार है, टिकने योग्य नहीं है। सरकारी वकील द्वारा दिए गए निर्णयों को वर्तमान मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर लागू नहीं किया जा सकता। वर्तमान मामले में करोड़ों श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं और लड्डू प्रसादम की अमूल्य पवित्रता पर मंडरा रहे संकट की जांच की जा रही है... पुनर्गठित SIT की संख्या के अतिरिक्त दसवें प्रतिवादी को जांच अधिकारी के रूप में शामिल करना स्वीकार्य नहीं है। यह निश्चित रूप से माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन होगा। CBI निदेशक दसवें प्रतिवादी को जांच करने का निर्देश नहीं दे सकते थे।"
उक्त निर्देश, WP.(सिविल) नंबर 622/2024 के पैरा 9 में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के विपरीत है। दिनांक 28.10.2024 की कार्यवाही निदेशक द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए जारी की गई।
अदालत कडुरु चिन्नप्पन्ना नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने दावा किया कि उसे जांच अधिकारी जे. वेंकट राव - प्रतिवादी नंबर 10 - से उपस्थित होने के लिए नोटिस प्राप्त हुए, जिसमें उसे SIT के समक्ष "विभिन्न लिखित झूठे बयान दर्ज करने के लिए बाध्य, मजबूर और धमकाया गया" और कार्यवाही को वीडियो कैमरे द्वारा रिकॉर्ड किया गया। यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को प्रतिवादी नंबर 10 के "निर्देशों के अनुसार बयान देने के लिए मजबूर" किया गया। याचिका में SIT द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच के लिए निर्देश देने की माँग की गई थी।
उन्होंने तर्क दिया कि यद्यपि प्रतिवादी 10 SIT का सदस्य नहीं है। फिर भी वह याचिकाकर्ता को बार-बार नोटिस जारी कर उसे उपस्थित होने के लिए कह रहा है। जांच के उद्देश्य से तिरुपति स्थित SIT कार्यालय के समक्ष एक गवाह को पेश किया गया।
यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता के बयान 7 से 8 बार दोबारा दर्ज किए गए और नए बयान दर्ज करने के बाद पहले दर्ज किए गए बयानों को हटा दिया गया। यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी नंबर 10 उस SIT का सदस्य नहीं है, जिसका गठन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसरण में किया गया। उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रतिवादी नंबर 10, राज्य सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर SIT के सदस्य के रूप में नामित न होने के बावजूद, जांच अधिकारी की भूमिका निभा सकता है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने प्रथम दृष्टया विचार में कहा था कि "उच्च संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देना उचित नहीं है, जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है। वह भी ऐसे समय में जब लड्डू बनाने में मिलावटी घी के इस्तेमाल की जांच चल रही है।"
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की जांच के लिए स्वतंत्र विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया और कहा कि SIT में दो अधिकारी शामिल होंगे। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के एक अधिकारी को CBI निदेशक द्वारा नामित किया जाएगा। आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस के दो अधिकारियों को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाएगा तथा भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के एक सीनियर अधिकारी को नामित किया जाएगा।
इस बीच CBI के वकील ने दलील दी कि CBI निदेशक ने दसवें प्रतिवादी की जांच स्वीकार की और उसे जांच जारी रखने का निर्देश दिया। दलील दी गई कि CBI निदेशक ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा गठित SIT अधिकारियों और आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा गठित SIT के स्थान पर आए SIT अधिकारियों की बैठक बुलाई थी। दलील दी गई कि यह बैठक नवगठित SIT को जाँच सौंपने के लिए बुलाई गई, जो CBI निदेशक की देखरेख में जांच करेगी। दलील दी गई कि बैठक के बाद CBI निदेशक दसवें प्रतिवादी द्वारा की गई जांच से संतुष्ट थे। उन्होंने उसे जांच अधिकारी के रूप में बने रहने और CBI तथा राज्य पुलिस से आवश्यक सहायता लेकर SIT के अधीन पेशेवर तरीके से जाँच करने का निर्देश दिया।
यह भी दलील दी गई कि SIT को नोटिस तैयार करने, नोटिस देने आदि के लिए लोगों की सहायता की आवश्यकता होगी और पर्यवेक्षी प्राधिकारी की हैसियत से उसने जांच के लिए दसवें प्रतिवादी की सहायता ली थी। यह दलील दी गई कि इस तरह की कार्रवाई में कोई दोष नहीं पाया जा सकता, क्योंकि यह निर्णय CBI निदेशक द्वारा केवल जाँच के उद्देश्य से लिया गया।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
"राज्य द्वारा गठित विशेष जांच दल (SIT) के स्थान पर किसी और को जांच सौंपने के मूल उद्देश्य की CBI निदेशक द्वारा स्पष्ट रूप से व्याख्या की जानी चाहिए थी। पुनर्गठित विशेष जांच दल (SIT) के किसी अधिकारी को जांच अधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिए था।"
इस प्रकार, न्यायालय ने CBI निदेशक को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार पुनर्गठित विशेष जांच दल (SIT) द्वारा की जाने वाली जांच की निगरानी करके स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करने का निर्देश देने वाली याचिका स्वीकार कर ली।
Case title: KADURU CHINNAPPANNA v/s STATE OF ANDHRA PRADESH