नोटिस की सेवा में दोषों के मामले में डाक लिफाफों में केवल सुधार पर्याप्त नहीं, नया नोटिस जारी किया जाना चाहिए: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि डाक लिफाफों में केवल सुधार नोटिस की सेवा में दोषों को ठीक करने के लिए पर्याप्त नहीं है, इस बात पर जोर देते हुए कि जब गलत पता पाया जाता है तो उचित तरीका मुख्य कार्यवाही में पता सही करना और नए नोटिस जारी करना है।
ऐसा करते हुए अदालत ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं को उचित सेवा के अभाव में सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, क्योंकि नोटिस गलत पते पर दिया गया।
यह मामला दो सोसाइटियों - जीयूएम सोसाइटी और टीएपीपी सोसाइटी के प्रबंधन के संबंध में विवाद से उभरा। मूल याचिकाकर्ताओं ने एपी सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 2001 की धारा 23 के तहत विशाखापत्तनम में जिला जज के समक्ष मूल याचिकाएं दायर की थीं। उन्होंने सोसाइटी प्रबंधन की जांच की मांग की और प्रतिवादियों द्वारा धोखाधड़ी की खरीद का आरोप लगाते हुए नवीनीकरण की कुछ प्रमाणित प्रतियों को चुनौती दी।
मामला जब जिला जजों के समक्ष लंबित था, मूल याचिका में प्रतिवादियों ने आवेदन दायर किया। उक्त आवेदन में तर्क दिया गया कि मूल याचिकाएं सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश II नियम 2 के तहत वर्जित हैं। जिला कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया और याचिका खारिज कर दी गई।
इस खारिजगी को हाईकोर्ट के समक्ष दो सिविल पुनर्विचार याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई, जिसमें यह उल्लेख किया गया कि प्रतिवादियों ने नोटिस स्वीकार करने से इनकार किया था। न्यायालय ने सिविल पुनर्विचार याचिकाओं को एकपक्षीय रूप से अनुमति दी थी। वर्तमान मामले को जन्म देने वाली सिविल पुनर्विचार याचिकाओं में पारित आदेश को चुनौती देते हुए पुनर्विचार दायर किया गया।
जस्टिस रवि नाथ तिलहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने अपने आदेश में कहा,
"सीआरपी(एस) में पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं/प्रतिवादियों 1 से 3 को भेजे गए रजिस्टर्ड नोटिसों के अवलोकन से पता चलता है कि पते में "3‟ का उल्लेख किया गया। प्रतिवादी नंबर 2 को भेजे गए एक रजिस्टर्ड डाक पत्र में इसे "9‟ लिखकर सुधारा गया, लेकिन यह कब और किसने किया, यह स्पष्ट नहीं है। प्रतिवादी नंबर 3 के संबंध में भी कटिंग और ओवरराइटिंग है। प्रतिवादी नंबर 1 (पुनर्विचार याचिकाकर्ता नंबर 1) के संबंध में "3‟ लिखा है। किसी भी तरह से केवल डाक लिफाफों में सुधार पर्याप्त नहीं होगा। सबसे पहले सी.आर.पी. में दिए गए पते जिसमें "3‟ लिखा है, को सुधारा जाना चाहिए था और सही पते पर नया नोटिस जारी किया जाना चाहिए।”
वर्तमान मामले में विवाद सीआरपी में नोटिस की सेवा से संबंधित था। पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट के. चिदंबरम ने कहा कि जबकि उनका सही पता "द्वार नंबर 39-9-104/1-3, सेक्टर-9, मुरलीनगर, विशाखापत्तनम" था, सीआरपी नोटिस "द्वार नंबर 39-3-104/1-3" पर भेजे गए।
प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए वकील संजय सुरनेनी ने नोटिस की सेवा के संबंध में डाक ट्रैकिंग रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें "आइटम रिटर्न रिफ्यूज्ड" दिखाया गया।
हालांकि अदालत ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 2 को भेजे गए रजिस्टर्ड डाक पत्र में उल्लिखित पते में नंबर '3' को '9' के रूप में अधिलेखित किया गया, लेकिन इस सुधार का समय और लेखक अज्ञात था। इसी तरह प्रतिवादी नंबर 3 को भेजे गए नोटिस में अधिलेखित पाया गया, जबकि प्रतिवादी नंबर 1 के नोटिस में अभी भी पते में '3' का उल्लेख किया गया।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने पाया कि प्रतिवादी पक्षों का पता सिविल पुनर्विचार याचिकाएं 2007 की मूल याचिका में उल्लिखित याचिकाओं से भिन्न थीं।
न्यायालय ने कहा,
"दिया गया पता गलत है।"
इसने कहा कि सी.आर.पी.(एस) में दिया गया पता जिसमें "3" का उल्लेख है, उसे सही किया जाना चाहिए था। सही पते पर नया नोटिस जारी किया जाना चाहिए था।
न्यायालय ने नोट किया कि रजिस्टर्ड पत्र 23 फरवरी को वापस प्राप्त हुए थे, लेकिन 28 फरवरी के ज्ञापन के साथ केवल ट्रैकिंग रिपोर्ट दायर की गई, जिससे सेवा प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठे।
इसके बाद इसने कहा,
"यह न्यायालय संतुष्ट है कि पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं को सेवा के अभाव में सी.आर.पी. में सुनवाई का कोई अवसर नहीं मिला। जब तक पत्र/नोटिस सही पते पर नहीं भेजे जाते, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि सीआरपी में सही व्यक्ति/पक्ष द्वारा इनकार किया गया। इनकार करके सेवा माने जाने का कोई अवसर नहीं था। पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं को सीआरपी(एस) में नहीं सुना गया। इस प्रकार दिनांक 18.06.2024 का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया, जिसमें पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं (सी.आर.पी. में प्रतिवादी 1 से 3) को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
सिविल पुनर्विचार याचिकाओं में पारित आदेश रद्द कर दिया गया और दलीलों को उचित पीठ के समक्ष "स्वीकृति/सुनवाई" शीर्षक के तहत सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: द एनशिएंट पैटर्न पेंटेकोस्टल चर्च (टीएपीपीसी सोसाइटी) बनाम किलारी आनंद पॉल