संयुक्त रूप से दायर किए गए लिखित बयान को एक प्रतिवादी के कहने पर, जबतक कि अन्य की सहमति न हो, संशोधित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-04-22 08:05 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में माना कि कई प्रतिवादियों की ओर से संयुक्त रूप से दायर किए गए लिखित बयान को किसी एक प्रतिवादी के कहने पर संशोधित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि संयुक्त रूप से लिखित बयान दाखिल करने वाले अन्य सभी प्रतिवादियों की स्पष्ट सहमति न हो।

जस्टिस जयंत बनर्जी की पीठ ने कहा, "जहां प्रतिवादियों के एक समूह ने संयुक्त रूप से लिख‌ित बयान दायर किया हो वहां इसे एक या अधिक ऐसे प्रतिवादियों के कहने पर संशोधित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि अन्य प्रतिवादी जो संयुक्त लिखित बयान पर हस्ताक्षरकर्ता हैं, मांगे गए संशोधनों के लिए स्पष्ट रूप से सहमति नहीं देते हैं।"

न्यायालय ने आगे कहा, "यहां तक ​​कि ऐसे मामलों में, जहां एक संशोधन आवेदन में बचाव के आधार को उठाया जाता है, जिसमें संयुक्त लिखित बयान दाखिल करने वाले प्रत्येक प्रतिवादी के का हित है, वहां भी उन प्रतिवादियों की सहमति, जिन्होंने उस संशोधन आवेदन को दाखिल नहीं किया है, उनकी सहमति की आवश्यकता होगी।"

न्यायालय ने माना कि ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं, जहा प्रतिवादी अपनी दलीलों में संशोधन की मांग कर रहा है और अन्य प्रतिवादियों के अधिकारों और हितों को खतरे में डाल सकता है। इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि आदेश VI नियम 17 सीपीसी के तहत एक संयुक्त लिखित बयान में संशोधन आवेदन पर निर्णय लेते समय, न्यायालय को पहले यह तय करना होगा कि क्या संशोधन आवेदन संयुक्त रूप से उन सभी प्रतिवादियों ने दायर किया है, जिन्होंने लिखित प्रस्तुतियां पर हस्ताक्षर किए थे।

कोर्ट ने कहा, "अगर अदालतें ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से रोकने के लिए सतर्क नहीं हैं, तो भविष्य में कई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं, जो मुद्दों को जटिल बना सकती हैं और कानूनी कार्यवाही की बहुलता सहित मुकदमे/कार्यवाही के नतीजे में अनावश्यक रूप से देरी कर सकती हैं।"

इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक समन्वय पीठ ने नरेंद्र सिंह बनाम भारतेंद्र सिंह मामले में माना था कि एक बार प्रतिवादियों की ओर से संयुक्त रूप से एक लिखित बयान दायर किया गया है, तो इसे प्रतिवादियों में से किसी एक के कहने पर संशोधित नहीं किया जा सकता है।

न्यायालय ने श्री आरडी सुरेश @ मंजूनाथ और अन्य बनाम श्री आरए मंजूनाथ और अन्य पर भरोसा किया, जहां कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि तीसरे प्रतिवादी को अन्य प्रतिवादियों के साथ संयुक्त रूप से दायर लिखित बयान में संशोधन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर जब वे प्रस्तावित दलीलों से सहमत नहीं थे और जो संयुक्त रूप से दायर लिखित प्रस्तुतिकरण में दिए गए कथन, जिसमें संशोधन करने की मांग की गई थी, वह इसके विपरीत था।

न्यायालय ने माना कि चूंकि संयुक्त रूप से दायर लिखित बयान में संशोधन के लिए प्रतिवादी संख्या दो से सहमति प्राप्त करने के संबंध में संशोधन आवेदन में कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि यह प्रतिवादी संख्या दो के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

न्यायालय ने माना कि चूंकि ट्रायल कोर्ट ने मामले के इस पहलू पर विचार नहीं किया था, इसलिए पुनरीक्षण की उचित अनुमति दी गई थी। तदनुसार, रिमांड के आदेश के खिलाफ भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटलः श्रीमती चंदा केडिया और अन्य बनाम द्वारिका प्रसाद केडिया और अन्य [MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. - 9337 of 2023]


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