UP Urban Planning & Development | कंपाउंडिंग द्वारा अवैध निर्माण की अनुमति देना परेशान करने वाला; भवन उपनियमों से विचलन रुकना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत योजना से परे अवैध निर्माण करने की अनुमति देने और कंपाउंडिंग के माध्यम से उसे वैध बनाने की प्रथा पर नाराजगी व्यक्त की। न्यायालय ने कहा कि भवन उपनियमों में ढील देकर और उनका उल्लंघन करके अवैध निर्माण की अनुमति देने की ऐसी प्रथा बंद होनी चाहिए।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस सैयद कमर हसन रिजवी की पीठ ने यह टिप्पणी की,
“बिल्डिंग उपनियमों और योजनाओं का ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए, जिससे शहरी विकास को योजनाबद्ध तरीके से अनुमति दी जा सके। हालांकि, परेशान करने वाली बात यह है कि अनुमोदित योजना से अधिक निर्माण की अनुमति देना और उसके बाद विकास प्राधिकरण के वित्तीय हित को बढ़ाने के उद्देश्य से कंपाउंडिंग योजनाओं को मंजूर करना।
स्वीकृत मानचित्र के विपरीत विकास प्राधिकरण द्वारा अवैध निर्माण की अनुमति दिए जाने के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उक्त अवैध निर्माण से याचिकाकर्ता के निकटवर्ती निर्माण को नुकसान हो रहा है।
विकास प्राधिकरण के वकील ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि निजी उत्तरदाता स्वीकृत मानचित्र से परे निर्माण कर रहे थे, उन्हें कंपाउंडिंग के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई।
न्यायालय ने कहा कि शहरी क्षेत्रों को मंजूरी योजना के अनुसार विकसित करने की आवश्यकता है, जिसके लिए यू.पी. शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 अधिनियमित किया गया तथा भवन उपनियम बनाए गए। कोर्ट ने कहा कि जब तक निर्माण स्वीकृत मानचित्र/योजना के अनुसार किया जा रहा है, तब तक कोई आपत्ति नहीं हो सकती। हालांकि, स्वीकृत मानचित्र से परे अवैध निर्माण की अनुमति इस आधार पर नहीं दी जा सकती कि अतिरिक्त निर्माण शमनीय है।
न्यायालय ने माना कि विकास प्राधिकरणों की स्थापना "योजनाबद्ध विकास सुनिश्चित करने और अवैध निर्माणों की अनुमति न देने और उसके बाद भारी धन वसूलकर अवैध निर्माणों को रोकने" के लिए की गई।
कोर्ट ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि विकास प्राधिकरणों में संगठित सांठगांठ काम कर रही है, जहां बिल्डर, अन्य तत्वों के साथ मिलकर बिल्डिंग प्लान के विपरीत निर्माण करने के लिए मिलीभगत करते हैं।"
कोर्ट ने कहा कि कंपाउंडिंग को तब समझा जाता है, जब विभिन्न कारणों से पूर्व मंजूरी नहीं मिल पाती है। हालांकि, कंपाउंडिंग के माध्यम से भी भवन उपनियमों के निर्धारण से अधिक निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
न्यायालय ने माना कि कंपाउंडिंग के माध्यम से अनुमत निर्माण के मानदंडों को आसान बनाने से अवैधता पर अंकुश लगेगा और नियोजित विकास के उद्देश्य का उल्लंघन होगा।
कोर्ट ने आगे कहा,
“ईमानदार व्यक्ति, जो भवन निर्माण उपनियमों के अनुसार अपनी भवन योजना को मंजूरी देता है, उसे कम क्षेत्र में निर्माण करने की अनुमति दी जाएगी, जबकि जो व्यक्ति अवैध निर्माण करके कानून का उल्लंघन करता है, उसे प्राधिकरण को अतिरिक्त धन का भुगतान करके कंपाउंडिंग की आड़ में अतिरिक्त निर्माण करने की अनुमति दी जाती है। कंपाउंडिंग से जहां विकास प्राधिकरण को अतिरिक्त राजस्व के रूप में फायदा होता है। वहीं क्षेत्र में सक्रिय अराजक तत्वों को भी फायदा होता है। नियोजित विकास की कीमत पर हर कोई जीतता है।”
न्यायालय ने जो प्रश्न पूछा वह यह है कि क्या विकास प्राधिकरणों की स्थापना नियोजित विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए की गई या कंपाउंडिंग के माध्यम से भवन कानूनों के बड़े पैमाने पर उल्लंघन को सुविधाजनक बनाने के लिए की गई।
न्यायालय ने माना कि भले ही प्राधिकरण को सूचित किया गया कि निजी उत्तरदाताओं द्वारा किया जा रहा निर्माण मानचित्र के अनुसार अनुमेय क्षेत्र से परे है, प्राधिकरण ने निर्माण को प्रतिबंधित करने के बजाय, उत्तरदाताओं को कंपाउंडिंग के लिए दायर करने के लिए कहकर इसे वैध बना दिया। न्यायालय ने कहा कि विकास प्राधिकरण की ऐसी प्रथा को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
“मानचित्रों को मिश्रित करके विचलन की अनुमति देने और फिर मानदंडों से ऐसे विचलन की सुविधा प्रदान करने की प्रथा बंद होनी चाहिए।”
न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी विकास प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करे कि भवन उपनियमों के अनुसार स्वीकार्य निर्माण से अधिक निर्माण की अनुमति न दी जाए। न्यायालय ने आगे कहा कि यद्यपि योजना के अनुमोदन के बाद कंपाउंडिंग की अनुमति है। तथापि, कंपाउंडिंग के उद्देश्य से भवन उपनियमों में ढील नहीं दी जा सकती।
तदनुसार, न्यायालय ने आवास विभाग के प्रधान सचिव को न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन के बारे में बताते हुए अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को कथित तौर पर हुई क्षति का आकलन करने के लिए विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष को निर्देश जारी किए गए।
केस टाइटल: बृजमोहन तंवर बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [रिट - सी नंबर- 5761/2024]