शिकायतकर्ता को 'पागल' कहना अभद्र टिप्पणी हो सकती है लेकिन यह आईपीसी की धारा 504 के तहत अपराध नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-01-12 09:59 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि किसी व्यक्ति द्वारा किसी को 'पागल' कहकर दिया गया छिटपुट बयान अनुचित, अनुचित और असभ्य हो सकता है। हालांकि, यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 के तहत अपराध नहीं बनता है।

जस्टिस ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें शिकायत मामले में शिकायतकर्ता को कथित तौर पर 'पागल व्यक्ति' कहने के लिए आईपीसी की धारा 504 के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता को तलब किया गया।

अदालत ने टिप्पणी की,

“…ऐसा प्रतीत होता है कि यह लापरवाही से दिया गया भटका हुआ बयान था, इसका इरादा यह नहीं था कि यह किसी व्यक्ति को सार्वजनिक शांति भंग करने या कोई अन्य अपराध करने के लिए उकसा सकता है। भले ही तर्क के लिए ऐसे शब्दों का उच्चारण जानबूझकर अपमान के रूप में लिया जाता है, लेकिन मेरी राय में इसे इस हद तक नहीं माना जा सकता कि किसी भी व्यक्ति को शांति भंग करने के लिए उकसाया जाए।”

पीठ ने आगे कहा कि अक्सर, अनौपचारिक माहौल में ऐसी टिप्पणियां लापरवाही से की जा सकती हैं। यहां तक कि आकस्मिक बातचीत का हिस्सा भी बन सकती हैं, "जानबूझकर शांति भंग करने के लिए कोई आपराधिक तत्व नहीं होना चाहिए"।

मामला संक्षेप में

पेशे से वकील शिकायतकर्ता (दशरथ कुमार दीक्षित) ने सीजेएम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता (संगीता जेके) और दस अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 500 के तहत शिकायत मामला दायर किया। इसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने उसे पागल व्यक्ति कहा था।

उपरोक्त आरोपों के आधार पर अदालत ने शिकायतकर्ता के बयान सीआरपीसी की धारा 200 के तहत और उसके गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 202 के तहत दर्ज करने के लिए आगे बढ़े। उसके बाद केवल याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 504 के तहत तलब करने का आदेश पारित किया।

अभियुक्त-याचिकाकर्ता ने जिला न्यायाधीश, वाराणसी के समक्ष पुनर्विचार को प्राथमिकता दी, जिसमें सम्मन आदेश पर आपत्ति जताई गई। इसने सम्मन के आदेश की पुष्टि की। दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।

हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि घटना कथित तौर पर मई 2017 में हुई, उसके साल से अधिक समय बाद शिकायत दर्ज की गई।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता ने अपने बयान में ऐसा कुछ भी नहीं दिखाया, जिसे आईपीसी की धारा 504 के तहत अपराध माना जा सके, क्योंकि कोई जानबूझकर अपमान नहीं किया गया, जिसे सार्वजनिक शांति भंग करने या किसी अपराध के लिए उकसावे के रूप में माना जा सकता।

कोर्ट की टिप्पणियां

विचाराधीन बयान पर गौर करते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि बैठक में भाग लेने वाले कई अन्य लोगों के सामने उसने कहा कि यह व्यक्ति (शिकायतकर्ता) पागल है।

हालांकि, न्यायालय ने आगे कहा,

सभी तथ्यों और परिस्थितियों से ऐसा प्रतीत होता है कि यह लापरवाही से दिया गया बयान था। इसका इरादा यह नहीं था कि यह किसी व्यक्ति को सार्वजनिक शांति भंग करने या कोई अन्य अपराध करने के लिए उकसा सकता है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि भले ही तर्क के लिए ऐसे शब्दों का उच्चारण जानबूझकर अपमान के रूप में लिया जाता है। तथापि, इसे इस हद तक नहीं माना जा सकता है कि किसी व्यक्ति को शांति भंग करने के लिए उकसाया जाए।

इसके अलावा, समन आदेश पर गौर करते हुए अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि सीआरपीसी की धारा 204 के तहत कानून के प्रावधानों की पृष्ठभूमि में प्रक्रिया जारी करने से पहले मजिस्ट्रेट को अपने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करना होगा।

कोर्ट ने आगे कहा,

"मजिस्ट्रेट को यह पता लगाना होगा कि क्या उसके सामने मौजूद सामग्री से किसी अपराध के होने का खुलासा हुआ है और उसे सबूतों का अध्ययन करना होगा। इस सीमित उद्देश्य के लिए अपने न्यायिक विवेक का उपयोग करना होगा, दूसरी ओर कानून कहता है कि उन्हें सावधानीपूर्वक बचना होगा सबूतों का विश्लेषण और लघु सुनवाई नहीं करनी होगी।''

इसे देखते हुए यह पाते हुए कि आक्षेपित आदेशों में संबंधित अदालतें कानून को सही परिप्रेक्ष्य में लागू करने में विफल रहीं, न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और आक्षेपित आदेशों को रद्द कर दिया।

केस टाइटल- जूडिथ मारिया मोनिका किलर @ संगीता जे.के. बनाम यूपी राज्य और अन्य लाइव लॉ (एबी) 16/2024

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