'सुप्रीम कोर्ट के 'तहसीन पूनावाला' संबंधी निर्देश राज्य और केंद्र पर बाध्यकारी, जनहित याचिका में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की निगरानी नहीं की जा सकती': इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-07-25 05:40 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर आपराधिक जनहित याचिका (PIL) का निपटारा किया, जिसमें तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ (2018) मामले में मॉब लिंचिंग और भीड़ हिंसा की घटनाओं को रोकने और उनसे निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का अनुपालन करने की मांग की गई थी।

जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा कि मॉब लिंचिंग/भीड़ हिंसा की प्रत्येक घटना एक अलग घटना है और जनहित याचिका में इसकी निगरानी नहीं की जा सकती।

खंडपीठ ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन की मांग करने के लिए इस अदालत में आने से पहले पीड़ित पक्ष के लिए सरकार से संपर्क करना हमेशा खुला रहता है।

खंडपीठ ने 15 जुलाई को पारित अपने आदेश में कहा,

"तहसीन एस. पूनावाला (सुप्रा) मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार पर भी बाध्यकारी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुपालन की मांग करने के लिए इस न्यायालय का रुख करने से पहले पीड़ित पक्ष के लिए सरकार से संपर्क करना हमेशा खुला रहता है।"

संक्षेप में मामला

जनहित याचिका में 'तहसीन पूनावाला' (सुप्रा) मामले में सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के संबंध में व्यापक निर्देश देने की मांग की गई। एडवोकेट सैयद अली मुर्तजा, सीमाब कय्यूम और रज़ा अब्बास के माध्यम से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने 2018 के फैसले में निर्धारित निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपायों को लागू करने में राज्य सरकार की कथित विफलता पर प्रकाश डाला गया।

जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या और भीड़ हिंसा की विशिष्ट घटनाओं का भी उल्लेख किया गया, जिसमें अलीगढ़ में हाल ही में हुई [मई 2025 की] एक घटना भी शामिल है।

मांगी गई 12 राहतों में शामिल हैं:

1. अलीगढ़ में हाल ही में हुई भीड़ हिंसा की घटना की जांच के लिए महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जाए।

2. मॉब लिंचिंग के मामलों से निपटने वाले प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति से संबंधित अधिसूचना और परिपत्र, साथ ही ऐसे मामलों की स्थिति रिपोर्ट दाखिल किया जाए।

3. डीजीपी को पिछले पांच वर्षों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की आपराधिक जांच की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाए।

4. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैरा 40.17 के अनुसार, लिंचिंग/भीड़ हिंसा के मामलों के लिए विशेष या फास्ट-ट्रैक अदालतों के गठन और मुकदमों की वर्तमान स्थिति के बारे में अधिसूचना निर्दिष्ट किया जाए।

5. मॉब लिंचिंग के खिलाफ जन जागरूकता अभियान चलाया जाए।

6. नियमों का पालन न करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक उपाय किया जाए।

7. लिंचिंग के आरोपियों के खिलाफ निवारक निरोध किया जाए।

8. 24 मई की अलीगढ़ घटना के प्रत्येक पीड़ित को ₹15 लाख का मुआवजा दिया जाए।

न्यायालय ने कहा कि यद्यपि मांगी गई राहतें तहसीन पूनावाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुरूप हैं। फिर भी उन्हें व्यक्तिगत घटनाओं पर सामान्य निगरानी की मांग करने वाली जनहित याचिका के माध्यम से प्रदान नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा,

"मॉब लिंचिंग/भीड़ हिंसा की प्रत्येक घटना एक अलग घटना है और जनहित याचिका में इसकी निगरानी नहीं की जा सकती।"

हालांकि, न्यायालय ने कहा कि प्रभावित पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए पहले उपयुक्त सरकारी प्राधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता है।

Case title - Jamiat Ulma E Hind (Arshad Madani) Public Trust And Another vs. Union Of India And 5 Others 2025 LiveLaw (AB) 265

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