भाई-बहनों को दी गई स्कूल फीस में छूट का दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-01-31 06:35 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि स्कूल द्वारा दी गई भाई-बहन की फीस में राहत कुछ शर्तों के अधीन है और इसे अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।

सहोदर शुल्क योजना लाभ की प्रयोज्यता से संबंधित मुद्दे के कारण दिल्ली पब्लिक स्कूल, राज नगर गाजियाबाद से दो भाई-बहनों को निष्कासित करने से निपटते हुए कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।

जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव ने कहा,

“मुझे लगता है कि प्रतिवादी नंबर 7 द्वारा जारी सर्कुलर दिनांक 5.8.2021 के तहत भाई-बहन फीस में राहत उन माता-पिता को दिया जाने वाला लाभ है, जिनके दो बच्चे कुछ शर्तों के अधीन संस्थान में पढ़ रहे हैं और अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।”

याचिकाकर्ता नंबर 1 के बच्चों याचिकाकर्ता 2 और 3 ने डीपीएस, राज नगर में एडमिशन लिया, जहां उनके बड़े भाई ने पढ़ाई की थी। स्कूल प्रशासन ने शैक्षणिक सत्र 2022-2023-2024 के लिए COVID-19 राहत और भाई-बहन राहत के तहत फीस में छूट के लिए योजना/सर्कुलर पेश किया। भाई-बहन राहत योजना उन माता-पिता को 50% फीस की राहत देती है, जिन्होंने अपने दो बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाया है और ऐसी फईस राहत छोटे भाई-बहन को दी जाएगी, जो उसी माता-पिता की जैविक संतान हैं।

एक बार आवेदन प्राप्त होने के बाद इसे संसाधित और अनुमोदित किया गया। क्रेडिट नोट स्वचालित रूप से छोटे वार्ड के फीस अकाउंट में पोस्ट कर दिया जाएगा। क्रेडिट नोट हर तिमाही यानी 5 अप्रैल, 5 जुलाई, 5 अक्टूबर और 5 जनवरी को फीस के समय पर भुगतान पर ही पोस्ट किया जाएगा। यह योजना उन अभिभावकों के लिए उपलब्ध नहीं है, जो मासिक किस्तों में स्कूल फीस का भुगतान करते हैं या यदि फीस भुगतान नियत तारीख से परे प्राप्त हुआ। यह उन अभिभावकों के लिए उपलब्ध है, जिन्होंने नियत तिथि पर या उससे पहले एक बार में फीस जमा कर दी। यह योजना एक समय में एक बच्चे के लिए उपलब्ध है।

स्कूल ने शैक्षणिक सत्र 2023-2024 या बच्चे की ओर से किसी भी अनुशासनात्मक दुर्व्यवहार के बाद योजना को वापस लेने का अधिकार सुरक्षित रखा।

याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि भाई-बहन की फीस और COVID-19 राहत फीस में कटौती के बाद स्कूल द्वारा फीस की अतिरिक्त मांग की गई। चूंकि स्कूल ने हटने से इनकार कर दिया, इसलिए स्कूल के खिलाफ आईजीआरएस पोर्टल पर और यूपी स्व-वित्तपोषित स्वतंत्र स्कूल (फीस विनियमन) अधिनियम, 2018 के तहत जिला फीस नियामक समिति के समक्ष शिकायत दर्ज की गई।

यह प्रस्तुत किया गया कि चूंकि स्कूल नियामक समिति को दस्तावेज उपलब्ध कराने में विफल रहा, इसलिए स्कूल पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। नतीजतन, स्कूल ने याचिकाकर्ताओं 2 और 3 के नाम काट दिए और पूर्व दिनांकित ट्रांसफर सर्टिफिकेट जारी कर दिए।

इसके विपरीत, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि बच्चे अपने माता-पिता के कार्यों के कारण पीड़ित हैं, जिन्होंने निर्धारित तरीके से फीस जमा नहीं की थी। चूंकि दूसरी त्रैमासिक फीस का भुगतान किश्तों में किया गया, सहोदर फीस छूट हटा दी गई। इसके अनुसार पूरी फीस भुगतान की मांग की गई।

आगे यह तर्क दिया गया कि अभिभावकों ने शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार किया और उनके द्वारा दायर शिकायतों में समझौता वार्ता में खुद को प्रस्तुत नहीं किया। यह प्रस्तुत किया गया कि अंततः, स्कूल ने फीस की मांग माफ कर दी और ट्रांसफर सर्टिफिकेट जारी कर दिया। हालांकि माता-पिता ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना जारी रखा।

कोर्ट ने दोनों पक्षकारों से सौहार्दपूर्ण ढंग से विवाद सुलझाने को कहा। दोनों पक्षकारों की दलीलों के बाद कोर्ट ने कहा कि चूंकि शैक्षणिक सत्र 2023-24 खत्म होने वाला है, इसलिए इस सेशन में बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जा सकता। तदनुसार, न्यायालय ने स्कूल को शैक्षणिक सत्र 2024-25 में बच्चों को फिर से एडमिशन देने का निर्देश दिया। इसके अलावा, न्यायालय ने दोनों पक्षकारों को एक-दूसरे के खिलाफ दायर किसी भी मामले या शिकायत को वापस लेने का निर्देश दिया।

केस टाइटल:- सतेंद्र कुमार और 2 अन्य बनाम यूपी राज्य और 6 अन्य [WRIT - C No. - 31168/2023]

याचिकाकर्ता के वकील:-रितेश उपाध्याय, शेष कुमार

प्रतिवादी के वकील: हृदय नारायण पांडे, तरूण अग्रवाल

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