यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में कहा: राहुल गांधी ने विदेश में की सिखों पर टिप्पणी, मजिस्ट्रेट तय करेंगे कि अपराध बनता है या नहीं

Update: 2025-09-03 11:21 GMT

सिखों पर कथित टिप्पणी से संबंधित विपक्ष के नेता राहुल गांधी की याचिका का विरोध करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दलील दी कि मजिस्ट्रेट को यह आकलन करने के लिए अपने 'स्वतंत्र विचार' का प्रयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध बनता है या नहीं।

जस्टिस समीर जैन की पीठ के समक्ष राज्य सरकार ने दलील दी कि पुनर्विचार क्षेत्राधिकार में अदालतों को बचाव पक्ष की दलीलों पर विचार करने की अनुमति नहीं है। यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि संज्ञेय अपराध बनता है तो वह FIR दर्ज करने का निर्देश दे सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि एडिशनल एडवोकेट (एएजी) मनीष गोयल ने दृढ़ता से तर्क दिया कि गांधी ने कथित बयान विपक्ष के नेता के रूप में एक जिम्मेदार पद पर आसीन रहते हुए दिया। वह विपक्ष की एक गंभीर आवाज के रूप में जाने जाते हैं।

उन्होंने कहा,

"यह नहीं बताया गया कि वह विपक्ष के नेता भी हैं; देश के बाहर भी उन्हें इसी रूप में जाना जाता है। उनकी आवाज़ विपक्ष की आवाज़ है। देश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बारे में विपक्ष का यही दृष्टिकोण है। यही वह विदेशी धरती पर पेश कर रहा है।"

बता दें, गांधी ने वाराणसी कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान सिखों पर की गई कथित टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया था।

पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए एडिशनल जिला एंड सेशन कोर्ट ने अपने आदेश में यह राय व्यक्त की कि मजिस्ट्रेट ने केवल इस आधार पर आवेदन खारिज करने में गलती की कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 208 (CrPC की धारा 188 के अनुरूप) के तहत केंद्र सरकार से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई, क्योंकि कथित अपराध भारत के बाहर हुआ था।

इससे पहले आज (बुधवार) सीनियर एडवोकेट गोपाल चतुर्वेदी (गांधी की ओर से पेश) ने दलील दी कि गांधी ने सिख समुदाय को विद्रोह के लिए नहीं उकसाया। इसके अलावा, अदालत ने उनके इरादे को समझने के लिए उनके पूरे भाषण पर विचार नहीं किया।

उन्होंने यह भी दलील दी कि गांधी सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहते हैं या नहीं, इस इरादे का अंदाजा भाषण के किसी एक हिस्से से नहीं लगाया जा सकता।

उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी कहता है कि यहां-वहां एक-एक वाक्य पर विचार नहीं किया जा सकता।

उन्होंने तर्क दिया,

"मैंने इससे पहले क्या कहा, इसके बाद क्या कहा, इसका उल्लेख नहीं किया गया... 25 शब्दों के आधार पर मेन्स रीया नहीं देखा जा सकता... जब तक पूरा भाषण अदालत के सामने न हो, इरादे का पता नहीं लगाया जा सकता।"

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सेशन कोर्ट ने गांधी के वकील द्वारा दिए गए तर्कों पर ध्यान नहीं दिया और आदेश BNSS की धारा 208 तक ही सीमित है, न कि इस प्रारंभिक तर्क पर कि क्या कोई संज्ञेय अपराध बनता है या नहीं।

उनके प्रस्तुतीकरण का विरोध करते हुए एएजी गोयल ने कहा कि FIR दर्ज करने की याचिका को पहले खारिज करना "BNSS की धारा 208 के तहत आवश्यक मंजूरी के आधार पर दोषपूर्ण है", जिसे सेशन जज ने खारिज कर दिया। इसके अलावा, केवल आवेदन पर मजिस्ट्रेट द्वारा गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने के लिए छोड़ दिया।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा,

"अब मजिस्ट्रेट को केवल यह निर्धारित करना है कि क्या कोई संज्ञेय अपराध किया गया। तदनुसार निर्देश देना है"।

इस बिंदु पर उन्होंने यह भी कहा कि पुनर्विचार क्षेत्राधिकार में सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट मजिस्ट्रेट की शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता, जिसे यह तय करना होता है कि उसके खिलाफ FIR दर्ज की जानी चाहिए या नहीं।

कथित भाषण पर, एएजी ने कहा कि गांधी के वकील ने इस बात से इनकार नहीं किया कि कथित बयान बड़े भाषण का हिस्सा थे। यह एक स्पष्ट स्वीकारोक्ति थी।

उन्होंने दलील दी,

"यह तर्क दिया गया कि कथित भाषण एक बड़े भाषण का एक अंश है; बयानों का खंडन नहीं किया गया। यह (बड़े भाषण के एक हिस्से के रूप में) मौजूद है। ... यह स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि बयान ही है, चाहे उसे फाड़ा गया हो या नहीं, यह सुनवाई योग्य है।"

इसके अलावा, ज़िम्मेदारी को दोषसिद्धि से जोड़ते हुए उन्होंने तर्क दिया:

"उन्होंने (गांधी) विपक्ष के नेता के रूप में, एक ज़िम्मेदारी के पद पर रहते हुए ये बयान दिए... अगर यह भारत के लोगों के ख़िलाफ़ है तो हां, यह एक अपराध बनता है।"

दोनों पक्षकारों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने गांधी की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया और मजिस्ट्रेट से अपेक्षा की कि वे फैसला सुनाए जाने तक मामले में आगे न बढ़ें।

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