FIR रजिस्ट्रेशन के लिए मजिस्ट्रेट का CrPC की धारा 156 (3) के तहत आदेश, संभावित आरोपी की अपील पर रिवीजन के लिए खुला नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-12-25 11:40 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक संभावित आरोपी के पास मजिस्ट्रेट द्वारा CrPC की धारा 156(3) के तहत पुलिस को FIR दर्ज करने और जांच करने का निर्देश देने वाले आदेश को रिवीजन याचिका के ज़रिए चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस चवन प्रकाश की बेंच ने इस तरह आपराधिक रिवीजन याचिका यह देखते हुए खारिज कर दिया कि CrPC की धारा 156 (3) के तहत पारित आदेश एक इंटरलोक्यूटरी आदेश है और इसे CrPC की धारा 397(2) के तहत रिवीजन में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

इसमें कहा गया कि CrPC की धारा 156(3) के चरण में न तो संज्ञान लिया गया और न ही आरोपी के खिलाफ कोई प्रक्रिया जारी की गई, इसलिए आदेश को उसकी अपील पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।

बेंच ने कहा,

"चूंकि मजिस्ट्रेट द्वारा CrPC की धारा 156(3) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश देने वाले आदेश के खिलाफ कोई आपराधिक रिवीजन नहीं होता है, इसलिए प्रस्तावित आरोपी/रिवीजनकर्ताओं द्वारा दायर यह रिवीजन सुनवाई योग्य नहीं है।"

हाईकोर्ट नाहनी और अन्य (रिवीजनकर्ताओं) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। उन्होंने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM), हाथरस द्वारा उनके खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश देने वाले आदेश को रद्द करने की मांग की।

राज्य के वकील ने खुद रिवीजन की सुनवाई योग्यता के संबंध में एक प्रारंभिक आपत्ति उठाई, क्योंकि यह तर्क दिया गया कि विवादित आदेश प्रस्तावित आरोपी/रिवीजनकर्ता के अधिकारों को नुकसान नहीं पहुंचाता है।

इस तर्क का समर्थन करने के लिए AGA ने फादर थॉमस बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2010) मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फुल बेंच के फैसले पर बहुत अधिक भरोसा किया।

जस्टिस चवन प्रकाश ने फादर थॉमस मामले में हाईकोर्ट के फैसले का उल्लेख किया और कहा कि निम्नलिखित तीन मुख्य सवालों के जवाब दिए गए:

1. CrPC की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट का पुलिस को FIR दर्ज करने और जांच करने का निर्देश देने वाला आदेश उस व्यक्ति की अपील पर रिवीजन के लिए खुला नहीं है, जिसके खिलाफ न तो संज्ञान लिया गया है और न ही कोई प्रक्रिया जारी की गई।

2. ऐसा आदेश एक इंटरलोक्यूटरी आदेश है और ऐसे आदेश के खिलाफ रिवीजन का उपाय CrPC की धारा 397 की उप-धारा (2) के तहत वर्जित है।

3. अजय मालवीय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2000(41) ACC 435 के मामले में इस कोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा व्यक्त किया गया यह विचार कि ऐसा आदेश रिवीजन के योग्य है, सही नहीं है।

इस पृष्ठभूमि में जस्टिस प्रकाश ने राय दी कि फुल बेंच द्वारा व्यक्त की गई राय को देखते हुए यह आदेश पूरी तरह से इंटरलोक्यूटरी है और प्रस्तावित आरोपी की ओर से रिवीजन वर्जित है।

तदनुसार, आपराधिक रिवीजन याचिका खारिज कर दी गई।

Case title - Nahni And 5 Others vs. State of U.P. and Another

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