हिंदू देवी-देवताओं के अपमान के खिलाफ कानूनों के 'बेअसर' होने का दावा करने वाली PIL पर हाईकोर्ट ने कहा- लागू करना एग्जीक्यूटिव का अधिकार क्षेत्र
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने गुरुवार को पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) का निपटारा किया, जिसमें हिंदू देवी-देवताओं और धार्मिक किताबों को अपमान से बचाने के लिए मौजूदा कानूनी ढांचे के असर का रिव्यू करने की मांग की गई।
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस इंद्रजीत शुक्ला की बेंच ने कहा कि कानून बनाना या उनमें बदलाव करना पूरी तरह से लेजिस्लेचर के अधिकार क्षेत्र में आता है, जबकि मौजूदा कानूनों को लागू करना एग्जीक्यूटिव के अधिकार क्षेत्र में आता है।
इस तरह बेंच ने याचिकाकर्ताओं को भारत सरकार के संबंधित मिनिस्ट्री/डिपार्टमेंट या राज्य सरकार से संपर्क करने की छूट दी, जिनकी याचिका में उठाई गई शिकायतों के संबंध में भूमिका हो सकती है।
यह याचिका हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस थ्रू के नेशनल कन्वीनर शरद चंद्र श्रीवास्तव और 8 अन्य लोगों ने दायर की थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री और उत्कर्ष प्रताप सिंह ने पैरवी की।
याचिकाकर्ताओं ने सरकारी अधिकारियों को "देवता की बेइज्जती, अपमान, विकृति और अपवित्रता" को रोकने के लिए "असरदार और कड़े कदम" उठाने के लिए रिट ऑफ़ परमाडेमस की मांग की।
याचिका में खास तौर पर कहा गया कि 'देवता' शब्द में भगवान विष्णु, भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा, माता सीता, देवी दुर्गा, देवी राधा और ब्राह्मण शामिल हैं। इसके अलावा, याचिका में रामचरितमानस, मनुस्मृति, भगवद गीता और वाल्मीकि रामायण सहित 'पवित्र पुस्तकों' को जलाने और उनका अपमान करने से भी सुरक्षा मांगी गई।
याचिकाकर्ताओं ने बेंच के सामने साफ तौर पर कहा कि ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए कानून तो हैं, लेकिन वे 'असरदार' हैं।
इसलिए राज्य को IPC की धारा 295, 295A, 298, 153A, 153B और 505 (अब BNS की धारा 196, 298, 299, 300 और 302 के बराबर) के असर का रिव्यू करने का निर्देश देने की मांग की गई।
इन दलीलों और PIL में कही गई बातों को ध्यान में रखते हुए बेंच ने कहा कि मांगी गई राहत "ऑम्निबस/जनरल मैंडेमस" जैसी थी और याचिका में किसी खास घटना का ज़िक्र नहीं था और न ही यह किसी ऐसे खास व्यक्ति के खिलाफ फाइल की गई, जिसने ऐसा काम किया हो।
कोर्ट ने कहा कि असल में इसमें किसी प्राइवेट पार्टी को शामिल नहीं किया गया।
इसके अलावा, लीगल फ्रेमवर्क के असर से जुड़ी अर्जी पर बात करते हुए बेंच ने कहा:
"हमारी राय है कि मौजूदा कानूनों को लागू करना एग्जीक्यूटिव के अधिकार क्षेत्र में आता है और नए कानून बनाना या मौजूदा कानूनों में बदलाव करके उन्हें असरदार बनाना लेजिस्लेचर के अधिकार क्षेत्र में आता है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि रिट याचिका के सपोर्ट में कई उदाहरण दिए गए, लेकिन उन अलग-अलग वजहों के लिए पहले ही अलग-अलग रिट याचिका फाइल की जा चुकी थीं, जिनमें से कई पेंडिंग थीं या उनका निपटारा हो चुका था।
मौजूदा कानूनों को रिव्यू करने की खास राहत के बारे में कोर्ट ने कहा कि याचिकार्ता भारत सरकार के संबंधित मिनिस्ट्री या डिपार्टमेंट से संपर्क कर सकते हैं।
इसलिए हाईकोर्ट ने रिट पिटीशन का निपटारा किया और याचिकाकर्ता को भारत सरकार के संबंधित मिनिस्ट्री/डिपार्टमेंट या राज्य सरकार से संपर्क करने की छूट दी।
कोर्ट ने साफ किया कि अधिकारी पब्लिक लिटिगेशन में उठाई गई शिकायतों पर कानून के मुताबिक विचार कर सकते हैं और उन्हें दूर करने के लिए ज़रूरी कदम उठा सकते हैं।
Case title - Hindu Front For Justice Thru. National Convenor Sharad Chandra Srivastava And 8 Others Vs. Union Of India, Thru. Secy. Ministry Of Home Affairs,Govt Of India,New Delhi And 5 Others