पत्नी के खिलाफ व्यभिचार के आरोपों पर धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन करने से पहले निर्णय लिया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-11-01 04:25 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी के खिलाफ व्यभिचार के आरोपों पर धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन करने से पहले निर्णय लिया जाना चाहिए।

संशोधनवादी पति ने एडिशनल प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, फिरोजाबाद के उस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें प्रतिवादी-पत्नी को धारा 125 CrPC के तहत 7000/- रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया। यह तर्क दिया गया कि व्यभिचारी होने के कारण पत्नी धारा 125(4) CrPC के आधार पर किसी भी राहत की हकदार नहीं थी।

धारा 125(4) में प्रावधान है कि यदि पत्नी आपसी सहमति से पति से अलग रहना चुनती है या उसके साथ रहने से इनकार करती है,तो वह अंतरिम या अंतिम भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी।

जस्टिस मंजीव शुक्ला ने कहा,

“धारा 125(4) CrPC के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि एक बार जब पत्नी के खिलाफ व्यभिचार का स्पष्ट आरोप लगाया जाता है तो धारा 125 CrPC के तहत मामले से निपटने वाली संबंधित अदालत को व्यभिचार के मुद्दे पर फैसला करना होता है। यहां तक ​​कि अंतरिम भरण-पोषण भी उस मुद्दे पर निष्कर्ष दर्ज करने के बाद ही दिया जा सकता है।”

न्यायालय ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने पत्नी की ओर से व्यभिचार के आरोपों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की थी। ट्रायल कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए न्यायालय ने पक्षों को हलफनामों का आदान-प्रदान करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: डॉ. वीरेंद्र कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [आपराधिक पुनर्विचार नंबर- 6106/2023]

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