आईपीसी की धारा 506 के तहत उत्तर प्रदेश में किए गए अपराध, संज्ञेय अपराध है: इलाहाबाद हाइकोर्ट
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 506 के तहत कोई अपराध यदि उत्तर प्रदेश राज्य में किया जाता है तो वह संज्ञेय अपराध है।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने यूपी में प्रकाशित अधिसूचना का हवाला दिया। उक्त अधिसूचना दिनांक 31 जुलाई 1989, यूपी के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा की गई घोषणा को अधिसूचित करता है कि IPC की धारा 506 के तहत दंडनीय कोई भी अपराध उत्तर प्रदेश में होने पर संज्ञेय और गैर-जमानती होगा।
न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिसूचना को मेटा सेवक उपाध्याय बनाम यूपी राज्य, 1995 सीजे 1158 मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट की फुल बेंच द्वारा बरकरार रखा गया और इस निर्णय को एयर्स रोड्रिग्स बनाम विश्वजीत पी राणे मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी अनुमोदित किया गया।
मामला संक्षेप में
आवेदक बृज मोहन ने CrPc की धारा 482 के तहत याचिका दायर की। उक्त याचिका में IPC की धारा 323, 504, 506 के तहत उनके खिलाफ दायर आरोप पत्र और अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, रायबरेली द्वारा पारित संज्ञान की वैधता को चुनौती दी गई।
यह तर्क दिया गया कि सभी अपराध गैर-संज्ञेय हैं। इसलिए IPC की धारा 323, 504, 506 के तहत अपराध के संबंध में न तो एफआईआर दर्ज की जा सकती है और न ही आरोप पत्र प्रस्तुत किया जा सकता है और न ही अदालत अपराध का संज्ञान ले सकती है।
आगे यह तर्क दिया गया कि मौजूदा मामले में अदालत केवल शिकायत पर ही विचार कर सकती है. क्योंकि इसमें गैर-संज्ञेय अपराध शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि आवेदक द्वारा यह तर्क CrPc की धारा 2 (डी) के अनुरूप दिया गया, जिसमें कहा गया कि किसी मामले में पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट, जो जांच के बाद एक गैर के कमीशन का खुलासा करती है, संज्ञेय अपराध को शिकायत माना जाएगा।
कोर्ट की टिप्पणियां
न्यायालय ने पाया कि IPC की धारा 323, 504 के तहत अपराध निर्विवाद रूप से गैर-संज्ञेय अपराध हैं और CrPc में संलग्न पहली अनुसूची में धारा 506 के तहत अपराध का उल्लेख है। यह भी गैर-संज्ञेय अपराध है। वहीं 1989 की अधिसूचना के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने उक्त अपराध को संज्ञेय अपराध बना दिया।
कोर्ट ने आगे कहा कि आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1932 (Criminal Law Amendment Act 1932) की धारा 10 राज्य सरकार को अधिसूचना जारी करके कुछ गैर-संज्ञेय अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाने के लिए अधिकृत करती है।
उल्लेखनीय है कि CrPc की धारा 155 (4) के अनुसार, जहां कोई मामला दो या दो से अधिक अपराधों से संबंधित है, जिनमें से कम से कम संज्ञेय है तो मामले को संज्ञेय मामला माना जाएगा, भले ही अन्य अपराध हों।
इसके दृष्टिगत IPC की धारा 323, 504, 506 के तहत आरोप पत्र में कोई अवैधता न पाते हुए अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रायबरेली द्वारा उपरोक्त अपराधों का संज्ञान लेते हुए आदेश पारित किया गया।
केस टाइटल - ब्रिज मोहन बनाम यूपी राज्य।
केस साइटेशन- लाइव लॉ (एबी) 26 2024।