125 CrPC मामलों में फैसले में 'निर्णय के बिंदु' लिखना ज़रूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-11-20 03:42 GMT

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य की सभी फैमिली कोर्ट्स को निर्देश दिया है कि वे धारा 125 दं.प्र.सं. (CrPC) के तहत पारित होने वाले सभी अंतिम आदेशों में अनिवार्य रूप से 'निर्णय हेतु बिंदु' (points for determination) तय करें। कोर्ट ने कहा कि यह धारा 354(6) CrPC का स्पष्ट पालन है, जिसे हर फैमिली कोर्ट को अनिवार्य रूप से अपनाना होगा।

जस्टिस मदन पाल सिंह की एकल पीठ ने यह निर्देश दिया और आदेश को सभी ज़िला जजों तथा सभी फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीशों को सख़्ती से पालन हेतु प्रसारित करने का निर्देश दिया।

मामला एक पति द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण से संबंधित था, जिसमें उसने फैमिली कोर्ट, बलिया द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने पति (जो यूपी पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है) को अपनी पत्नी को ₹18,000 मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया था।

हाई कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह राशि अधिक नहीं है। ट्रायल कोर्ट में दाखिल आय प्रमाणपत्र के अनुसार पति की आय ₹65,000 प्रतिमाह थी, जबकि वर्तमान आय लगभग ₹1.2 लाख बताई गई।

कोर्ट ने केवल ₹65,000 की मान्य आय के आधार पर गणना की और पाया कि इसका 25% यानी ₹16,250 बनता है, जो फैमिली कोर्ट द्वारा तय किए गए भरण-पोषण ₹18,000 के क़रीब है और इसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।

जस्टिस सिंह ने कहा:

“पुनरीक्षक/पति एक सक्षम व्यक्ति है और इसलिए वह अपनी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करने के कानूनी दायित्व से बच नहीं सकता। ट्रायल कोर्ट द्वारा दिया गया ₹18,000 मासिक भरण-पोषण अत्यधिक नहीं है, बल्कि न्यूनतम है।”

इस प्रकार, हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा।

Trial Courts में 'Points for Determination' न तय करने पर नाराज़गी

फैसले से पहले हाई कोर्ट ने यह भी नोट किया कि कई ट्रायल कोर्ट्स अपने आदेशों में निर्णय हेतु बिंदु (points for determination) नहीं तय कर रहे हैं। यहाँ तक कि वर्तमान मामले में भी फैमिली कोर्ट ने धारा 125 CrPC का निर्णय धारा 354(6) का पालन किए बिना दिया था, जबकि यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि हर अंतिम आदेश में—

• निर्णय हेतु बिंदु,

• उन पर निर्णय, और

• निर्णय के कारण

स्पष्ट रूप से लिखे जाने चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि यदि निर्णय हेतु बिंदु ही तय न हों, तो यह समझना कठिन हो जाता है कि ट्रायल कोर्ट ने किस आधार पर फैसला दिया।

अंत में, हाई कोर्ट ने आपराधिक पुनरीक्षण को खारिज किया और निर्देश दिया कि यह आदेश Registrar (Compliance) के माध्यम से सभी जिला जजों तथा सभी फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीशों को आवश्यक अनुपालन हेतु भेजा जाए।

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