लोक अदालत के 74,508 के अवार्ड को चुनौती देने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने LIC को लगाई फटकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को उस समय फटकार लगाई, जब उसने स्थायी लोक अदालत अलीगढ़ द्वारा एक पॉलिसीधारक के पक्ष में पारित 74,508 के अवार्ड को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की।
जस्टिस प्रकाश पाडिया की एकल पीठ ने इस पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इतनी छोटी राशि के खिलाफ LIC द्वारा रिट याचिका दाखिल करना अत्यंत आश्चर्यजनक है। कोर्ट ने LIC के एक सीनियर अधिकारी को यह स्पष्ट करने के लिए शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया कि उक्त अवार्ड की राशि पॉलिसीधारक (प्रतिवादी नंबर-2) को क्यों नहीं दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि इतनी तुच्छ राशि के खिलाफ याचिकाकर्ता अर्थात् बीमा कंपनी ने वर्तमान रिट याचिका दाखिल की, जबकि इस प्रकार की प्रथा की इस न्यायालय द्वारा समय-समय पर निंदा की गई।"
दिलचस्प बात यह रही कि एकल न्यायाधीश ने यह भी नोट किया कि याचिका दायर करने में जो वकील फीस एवं कानूनी खर्च हुआ, वह स्थायी लोक अदालत द्वारा दिए गए अवार्ड राशि से अधिक प्रतीत होता है।
मामले की पृष्ठभूमि
LIC ने स्थायी लोक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे पॉलिसीधारक मेघ श्याम शर्मा को जमा की गई राशि वापस करने के साथ-साथ 7% ब्याज और 5,000 मुकदमा खर्च के रूप में चुकाने का निर्देश दिया गया था।
यह आदेश उस आवेदन पर पारित हुआ, जिसमें पॉलिसीधारक ने जमा की गई प्रीमियम राशि की वापसी की मांग की थी। पॉलिसीधारक ने LIC से पांच बीमा पॉलिसियां खरीदी थीं, जो बाद में शर्तों के पूरा न होने के कारण निष्क्रिय हो गईं।
चूंकि निष्क्रिय पॉलिसियों पर कोई लाभ देय नहीं था, लोक अदालत ने LIC को जमा राशि वापस करने का आदेश दिया।
हाईकोर्ट में LIC ने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने पॉलिसी की सभी शर्तों का पालन नहीं किया था, इसलिए वह किसी भी राशि के हकदार नहीं हैं।
हालांकि इस दलील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि प्रतिवादी केवल अपनी जमा राशि की वापसी मांग रहा है और लोक अदालत ने कोई अतिरिक्त या अवैध राहत नहीं दी है। कोर्ट ने LIC को इतनी छोटी राशि के लिए चुनौती देने पर फटकार भी लगाई।
इस मामले की अगली सुनवाई अब 7 मई को होगी।
केस टाइटल: भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य