इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आधी रात को ड्यूटी पर तैनात दलित नर्स से बलात्कार करने के आरोपी डॉक्टर को जमानत देने से किया इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह प्राइवेट अस्पताल में अपने केबिन के अंदर 20 वर्षीय दलित नर्स से बलात्कार करने के आरोपी डॉक्टर को जमानत देने से इनकार किया। कथित घटना पिछले साल अगस्त में हुई थी, जब पीड़िता अस्पताल में रात की ड्यूटी पर थी।
जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने सह-आरोपी नर्स मेहनाज और वार्ड बॉय जुनैद को जमानत दी, जिन्होंने कथित अपराध को अंजाम देने में मुख्य आरोपी (डॉक्टर शाहनवाज) की कथित रूप से मदद की थी।
पीठ ने अपने आदेश में टिप्पणी की,
"जहां तक अपीलकर्ता डॉ. शाहनवाज का सवाल है, वह मुख्य अपराधी है। हालांकि वह 19.8.24 से जेल में है, लेकिन इस स्तर पर उसे जमानत पर रिहा करने का कोई अच्छा आधार नहीं बनता है... जहां तक आरोपी अपीलकर्ता मेहनाज और फैजान का सवाल है, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए और अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, आरोपी की मिलीभगत, सजा की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अदालत की राय है कि अपीलकर्ताओं ने जमानत के लिए मामला बनाया।"
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, मुख्य आरोपी (डॉ. शाहनवाज) ने नर्स को आधी रात के आसपास अपने केबिन में बुलाया और जब उसने वहां जाने से इनकार कर दिया तो उसे दो सह-आरोपियों द्वारा जबरन ले जाया गया। उसे जबरन केबिन के अंदर ले जाने के बाद सह-आरोपियों ने कथित तौर पर बाहर से दरवाजा बंद कर दिया और डॉक्टर ने कथित तौर पर पीड़िता के साथ बलात्कार किया। कथित तौर पर उसका मोबाइल फोन भी छीन लिया गया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह मदद के लिए किसी को फोन न कर सके।
धारा 61 (2), 64, 351 (2), 127 (2) BNS और धारा 3 (1) आर, 3 (1) एस, 3 (2) वी SC/ST Act के तहत दर्ज तीनों आरोपियों की जमानत याचिकाएं पहले स्पेशल जज (SC/ST Act), मुरादाबाद द्वारा खारिज कर दी गई थीं।
जमानत से इनकार करने को चुनौती देते हुए उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उनके वकीलों ने तर्क दिया कि उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया। उनके वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि आईओ द्वारा एकत्र की गई सीडीआर रिपोर्ट और सीसीटीवी फुटेज भी अभियोजन पक्ष के संस्करण की पुष्टि नहीं करती है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि पैथोलॉजी और लैब रिपोर्ट भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करती हैं।
दूसरी ओर, उनकी जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए राज्य के वकील ने तर्क दिया कि अपीलकर्ताओं ने यह जानते हुए भी अपराध किया कि पीड़ित अनुसूचित जाति समुदाय से है। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि सीसीटीवी फुटेज में कई आपत्तिजनक दृश्य हैं और FIR दर्ज करने में देरी उचित थी, क्योंकि इस मामले में पीड़िता के लिए शर्मनाक घटना का खुलासा करने में संकोच करना स्वाभाविक और संभावित था, जिससे उसकी छवि को नुकसान पहुंच सकता था।
केस टाइटल- डॉ. शाहनवाज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य तथा संबंधित अपील 2025 लाइव लॉ (एबी) 71