'साफ़-साफ़ लिखें या ऑर्डर टाइप करवाएं': इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्देश- न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाया जाए
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे सभी ज़िला जजों को फिर से निर्देश जारी करें ताकि उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले न्यायिक अधिकारियों को ऑर्डर शीट साफ़-साफ़ हैंडराइटिंग में लिखने या उसे टाइप करवाने के लिए संवेदनशील बनाया जा सके।
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने 2018 के हत्या के प्रयास के मामले में बब्बू उर्फ हैदर द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया।
हालांकि, कोर्ट ने आखिरकार याचिकाकर्ता को ज़मानत दी, लेकिन उसने बागपत के एडिशनल ज़िला एंड सेशन जज द्वारा तैयार की गई ऑर्डर शीट की गुणवत्ता पर आपत्ति जताई।
हाईकोर्ट के पिछले आदेश के बाद ट्रायल जज ने एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें स्वीकार किया कि उन्हें पिछले कोऑर्डिनेट बेंच के आदेश [एप्लीकेशन u/s 482 नंबर 32490 ऑफ़ 2023 में पारित] के बारे में पूरी जानकारी थी, जिसमें आदेशों को साफ़-साफ़ हैंडराइटिंग में लिखने का निर्देश दिया गया।
इसके बावजूद, हाईकोर्ट ने पाया कि इस मामले में ऑर्डर शीट अस्पष्ट हैंडराइटिंग में लिखी गई।
जस्टिस देशवाल ने इस काम को स्पष्ट उल्लंघन और हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना का स्पष्ट मामला बताया। हालांकि, उन्होंने इस स्तर पर कोई कठोर प्रशासनिक कार्रवाई करने से परहेज़ किया।
जस्टिस देशवाल ने आदेश में दर्ज किया,
"हालांकि यह इस कोर्ट के आदेश की अवहेलना का स्पष्ट मामला है, लेकिन यह कोर्ट वर्तमान एडिशनल ज़िला एंड सेशन जज, कोर्ट नंबर 1, बागपत के खिलाफ कोई सख़्त टिप्पणी करने से बचता है। उम्मीद करता है कि भविष्य में वह अधिक सावधान रहेंगी।"
हालांकि, ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को कोऑर्डिनेट बेंच के आदेश को सभी ज़िला जजों को फिर से जारी करने का निर्देश दिया।
बता दें, हाईकोर्ट द्वारा 2023 में पारित आदेश में सिंगल जज द्वारा निम्नलिखित निर्देश दिया गया:
"इसलिए रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया जाता है कि वे इस आदेश की फोटोकॉपी के साथ एक सर्कुलर सभी ज़िला जजों, प्रिंसिपल जजों, फैमिली कोर्ट और हाईकोर्ट के अधीनस्थ अन्य कोर्ट्स को जारी करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी न्यायिक अधिकारियों के कोर्ट्स में ऑर्डर शीट पर आदेश टाइप किए गए हों। यदि, किसी अपरिहार्य परिस्थिति में टाइपिंग व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है तो आदेश साफ़ हैंडराइटिंग में लिखे जाने चाहिए, जिसे हर कोई आसानी से पढ़ सके।"
मामले की खूबियों को देखते हुए और यह ध्यान में रखते हुए कि आवेदक को पहले भी जमानत मिल चुकी है और उसने अपने आपराधिक इतिहास के बारे में बताया है, हाईकोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।
इससे पहले, 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि पेशकार/कोर्ट रीडर्स का यह कर्तव्य है कि वे कोर्ट का आदेश साफ-साफ लिखें, ऐसा न करने पर इसे कदाचार माना जा सकता है।
Case title - Babbu Alias Haider vs. State of U.P.