Administrative Tribunals Act | अवमानना कार्यवाही में CAT के आदेश के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है, हाईकोर्ट में नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-04-01 04:46 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम 1985 (Administrative Tribunals Act) की धारा 17 के तहत अपने अवमानना क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अपील अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 19 के तहत सुप्रीम कोर्ट के समक्ष की जा सकती है।

न्यायालय ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत ऐसे किसी भी आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती।

जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने फैसला सुनाया,

“चूंकि अधिनियम, 1985 की धारा 17 के तहत अवमानना की कार्यवाही कम से कम दो सदस्यों की पीठ द्वारा निपटाई जाती है और अधिनियम, 1985 की धारा 17 के तहत पारित आदेश केवल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील योग्य होगा। इसलिए अधिनियम, 1971 के तहत ट्रिब्यूनल का कोई भी आदेश या निर्णय केवल आदेश की तारीख से 60 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट में अपील किया जा सकेगा।

प्रासंगिक वैधानिक प्रावधान

भारत के संविधान का अनुच्छेद 323ए संसद को अपने सदस्यों के रोजगार को नियंत्रित करने वाली प्रशासनिक न्यायाधिकरणों और शर्तों के लिए कानून बनाने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 323ए के खंड 2 (बी) में प्रावधान है कि संसद न्यायाधिकरणों के अधिकार क्षेत्र और शक्तियों के संबंध में कानून बना सकती है, जिसमें अवमानना के लिए दंडित करने की उनकी शक्तियां भी शामिल हैं।

प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा 14 में प्रावधान है कि जब तक अधिनियम में स्पष्ट रूप से प्रदान नहीं किया जाता है, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण नियत दिन से सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर सभी अदालतों द्वारा उस दिन से ठीक पहले प्रयोग किए जाने वाले सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और प्राधिकार का प्रयोग करेगा।

1985 के अधिनियम की धारा 17 ट्रिब्यूनल को स्वयं की अवमानना की उसी शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार देती है, जो अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत हाईकोर्ट को दी गई।

न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 11 हाईकोर्ट को अपनी या अपने अधीनस्थ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने का अधिकार देती है, जहां अवमानना उसके अधिकार क्षेत्र के भीतर या उसके बाहर की गई हो। धारा 12 ऐसी अवमानना के लिए सज़ा का प्रावधान करती है। धारा 19 यह प्रावधान करती है कि 1971 के अधिनियम के तहत किसी आदेश के खिलाफ अपील कहां की जा सकती है।

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने Central Administrative Tribunal (CAT) के समक्ष मूल आवेदन दायर किया, जिसमें उन्हें परिणामी लाभों के साथ नियमित सहायक मेडिकल अधिकारी के रूप में नियुक्ति दी गई। उक्त आदेश का अनुपालन न होने पर याचिकाकर्ताओं ने CAT के समक्ष अवमानना याचिका दायर की।

यह पाते हुए कि आदेश का अनुपालन गुण-दोष के आधार पर किया गया, CAT ने अवमानना कार्यवाही बंद कर दी। अवमानना कार्यवाही बंद करने को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई, जहां रिट याचिका की सुनवाई योग्यता के संबंध में प्रारंभिक आपत्ति उठाई गई। प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 19 सपठित प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा 17 के मद्देनजर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

हाईकोर्ट का फैसला

न्यायालय ने कहा कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा 14 के तहत पारित आदेश के खिलाफ अपील का कोई वैधानिक उपाय नहीं है। हालांकि, अवमानना क्षेत्राधिकार के तहत पारित आदेशों के खिलाफ अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 19 के तहत अपील की जा सकती है।

कोर्ट ने कहा,

“अधिनियम, 1971 के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 के अतिरिक्त हैं, न कि उनके निरादर में। संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 द्वारा विचार किया गया क्षेत्राधिकार अहस्तांतरणीय है। इसे संविधान के अधीनस्थ किसी भी विधायी अधिनियम द्वारा छीना या कम नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने टी. सुधाकर प्रसाद बनाम एपी सरकार पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट की तीन-जजों की पीठ ने एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ और अन्य पर भरोसा करते हुए कहा कि अनुच्छेद 323-ए(2)(बी) या भारत के संविधान के अनुच्छेद 323-बी (3) (डी) या प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा 17 अधिकार के बाहर नहीं हैं। यह माना गया कि भले ही हाईकोर्ट ने धारा 14(1) के तहत आदेशों के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया, 1985 के अधिनियम की धारा 17 के तहत आदेश न्यायालय की अवमानना की धारा 19 के तहत अपील योग्य है। केवल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ही कार्य करें।

कोर्ट ने आगे कहा,

“अधिनियम, 1971 की धारा 19 अपील का प्रावधान करती है और अधिनियम, 1985 की धारा 17 के आधार पर 'हाईकोर्ट' शब्द को 'ट्रिब्यूनल' के रूप में पढ़ा जाएगा। तदनुसार, अवमानना के लिए दंडित करने वाला ट्रिब्यूनल का कोई भी आदेश या निर्णय अधिनियम की धारा 19 के तहत केवल सुप्रीम कोर्ट में अपील योग्य है। एल. चंद्र कुमार (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहीं नहीं कहा कि अवमानना कार्यवाही के तहत ट्रिब्यूनल के आदेश भी संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत हाईकोर्ट की न्यायिक जांच के अधीन होंगे। अधिनियम, 1971 की धारा 19 द्वारा प्रदान की गई अपील का उपाय भी यही होगा।"

तदनुसार, न्यायालय ने रिट याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल: डॉ. ब्रजेंद्र सिंह चौहान और 2 अन्य बनाम केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और 2 अन्य [WRIT - A No. - 602/2024]

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