रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट चार जनवरी को करेगा सुनवाई
अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद जमीन विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चार जनवरी को सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट की सूची के मुताबिक चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ये सुनवाई करेगी। हालांकि इस विवाद पर तीन जजों की पीठ को सुनवाई करनी है इसलिए माना जा रहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपीलों पर सुनवाई कब से शुरू हो, ये पीठ ये तय करेगी। अभी ये भी तय होना है कि कौन सी पीठ इसकी सुनवाई करेगी।
12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने विवाद पर जल्द सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने कहा था कि पहले ही मामले को उचित पीठ के सामने जनवरी में सुनवाई के लिए भेज दिया गया है। ये आदेश जारी हो चुका है लिहाजा अर्जी खारिज की जाती है।
दरअसल अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से वरूण कुमार सिन्हा ने पीठ के सामने विवाद की जल्द सुनवाई का आग्रह किया था।
इससे पहले 29 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते तक टाल दी थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने कहा था कि जनवरी में उचित पीठ ही तय करेगी कि इस मामले की सुनवाई कब हो।
इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने आग्रह किया था कि मामला जरूरी है और इसकी सुनवाई दिवाली की छुट्टियों के बाद हो।
लेकिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, " अदालत की अपनी प्राथमिकताएं हैं। उचित पीठ ही जनवरी में तय करेगी कि इसकी सुनवाई जनवरी, फरवरी में हो या मार्च में।
गौरतलब है कि 27 सितंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने 2:1 के बहुमत से फैसला दिया था कि 1994 के संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है जिसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने बहुमत के फैसले में मुस्लिम दलों में से एक के लिए पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन की दलीलों को ठुकरा दिया था कि 1994 के पांच जजों के संविधान पीठ के फैसले कि " मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है और नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है, यहां तक की खुले में भी " पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला पढ़ते हुए कहा था कि ये टिप्पणी सिर्फ अधिग्रहण को लेकर की गई थी। सभी धर्म, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च बराबर हैं। इस फैसले का असर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 में टाइटल के मुकदमे के फैसले पर नहीं पड़ा। इसलिए इस पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है। पीठ ने जमीनी विवाद मामले की सुनवाई 29 अक्तूबर से शुरू होने वाले हफ्ते से करने के निर्देश जारी किए थे।
वहीं तीसरे जज एस जस्टिस अब्दुल नजीर इससे सहमत रहे। उन्होंने कहा कि 1994 के इस्माईल फारूखी फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि इस पर कई सवाल हैं। ये टिप्पणी बिना विस्तृत परीक्षण और धार्मिक किताबों के की गईं। उन्होंने कहा कि इसका असर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले पर भी पड़ा। इसलिए इस मामले को संविधान पीठ में भेजना चाहिए।