राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 4 घंटे की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा, केंद्र ने कहा नहीं हो सकता न्यायिक परीक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीद की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने बुधवार को चार घंटे तक इन याचिकाओं पर सुनवाई की और सभी का पक्ष सुना।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस के एम जोसेफ ने केंद्र सरकार पर सौदे और ऑफसेट पार्टनर के चुने जाने पर कई बड़े सवाल उठाए।
सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि वायु सेना को कौन से लड़ाकू विमान मिलें और उनमें कौन से हथियार लगें ये विशेषज्ञों का काम है। कोर्ट राफेल सौदे का न्यायिक परीक्षण नहीं कर सकता। हालांकि उन्होंने माना कि इसके लिए फ्रांस सरकार ने कोई संप्रभु गारंटी नहीं दी है लेकिन सरकार को लैटर ऑफ कंफर्ट दिया गया है। AG ने ये भी कहा कि राफेल की कीमत व विशेषताओं पर सार्वजनिक चर्चा नहीं हो सकती क्योंकि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ- साथ फ्रांस सरकार से करार का भी उल्लंघन है। इससे दुश्मन देशों को फायदा पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि करगिल के वक्त अगर राफेल होता तो देश को कम नुकसान होता।
इससे पहले वकील प्रशांत भूषण, जो अपनी और भाजपा के दो नेताओं पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी की ओर से पेश हुए, ने आरोप लगाया कि सरकार गोपनीयता के प्रावधान की आड़ लेकर राफेल विमानों की कीमतों का खुलासा नहीं कर रही है। प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार ने ऑफसेट प्रावधान को 5 अगस्त 2015 को बदल दिया और डसॉल्ट को अफसेट पार्टनर चुनने का अधिकार दे दिया और बाद में यह कहने लगी कि हमें नहीं पता कि ऑफसेट पार्टनर कैसे चयनित हुआ, पुराने प्रावधान में यह पार्टनर सरकार की मर्जी से चुना जाता था।
प्रशांत भूषण ने कहा, कानून मंत्रालय ने सप्लाई की गारंटी न होने पर आपत्ति की थी। सरकार ने टेंडर निकालने के बजाय अंतर सरकार अग्रीमेंट (IGA) क्यों किया।याचिकाकर्ता आप नेता संजय सिंह के वकील ने कहा, सरकार ने पुरानी डील रद्द क्यों की।
वहीं अरूण शौरी ने कहा कि उस वक्त के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को भी 2015 की डील का पता नहीं था।
चौथे याचिकाकर्ता वकील एम एल शर्मा ने कहा कि ये सौदा एक गंभीर फ्रॉड है और इसकी जांच होनी चाहिए।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने वायु सेना के अफसरों को भी तलब किया और उनसे लड़ाकू विमानों की विशेषताओं पर जानकारी हासिल की।
अफसरों ने बताया कि 1985 से लेकर 2018 तक वायु सेना के बेड़े में कोई चौथी या पांचवी पीढ़ी का लड़ाकू विमान शामिल नहीं हुआ है। केंद्र सरकार ने सोमवार को राफेल विमान की खरीद प्रक्रिया में उठाए गए कदमों के विवरण संबंधी दस्तावेज याचिकाकर्ताओं को सौंपे थे। सरकार ने विमान की कीमतों का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था।