न्यायिक सेवा में नियुक्ति नहीं देने के लिए नैतिक भ्रष्टता की यांत्रिक या शब्दाडंबरपूर्ण दुहाई नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-10-14 10:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह न्यायिक सेवा में जाने की ख़्वाहिश रखने वाले उस सफल उम्मीदवार को नियुक्ति देने पर एक बार फिर विचार करे जिसे ‘नैतिक भ्रष्टता” के आधार पर नियुक्ति नहीं दी गई है।

न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ,न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि नैतिक भ्रष्टता की दुहाई देकर किसी को नियुक्ति के लिए चुनकर उसे नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

मोहम्मद इमरान को महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग ने 14 अक्तूबर 2009 को नियुक्ति के लिए चुना था। अपने सत्यापन फॉर्म में इमरान ने घोषित किया था कि उसे आईपीसी की धारा 363, 366 और 34 के तहत दोषी करार दिया गया था पर इस परीक्षा में2009 में नियुक्ति पाने से काफी पहले उसे दोषमुक्त करार दे दिया गया था। पर इमरान की नियुक्ति को पुलिस द्वारा किए गए चरित्र सत्यापन की रिपोर्ट के आधार पर रद्द कर दिया गया। उसने सुप्रीम कोर्ट में तब अपील की जब हाईकोर्ट ने उसकी अपील ठुकरा दी।

राज्य की ओर से यह कहा गया कि वह एक लड़की को अगवा करने का दोषी था जो कि एक अनैतिक कार्य है और उसे बरी इसलिए कर दिया गया क्योंकि वह लड़की अपने आरोपों से मुकर गई और इसलिए उसे इस मामले में कोई राहत नहीं दी जा सकती है।

पीठ ने कहा, “हर व्यक्ति खुद में सुधार करने के मौके प्राप्त करने का हकदार है ताकि वह अपनी पिछली गलतियों से सीख सेक और सुधार कर जीवन में आगे बढ़ सके। अगर किसी के पिछले व्यवहार को, उस उम्मीदवार के गरदन की फांस बना दिया जाए तो यह हर बार न्यायोचित नहीं होगा। हालांकि, परिस्थितियों के तथ्यों पर ज्यादा कुछ निर्भर करेगा”।

कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि ऐसा ही एक उम्मीदवार जिसे एक आपराधिक मामले में बारी कर दिया गया था, उसे नियुक्ति दे दी गई। पीठ ने कहा कि इमरान के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता और उसे मनमाने तरीके से नियुक्ति देने से माना नहीं किया जा सकता जबकि दोनों ही नियुक्तियाँ न्यायिक सेवाओं में थी, चयन की प्रक्रिया भी एक ही है और दोनों ही उम्मीदवारों को आपराधिक मामलों में बरी कर दिया गया।

चरित्र सत्यापन के गोपनीय रिपोर्ट को पढ़ने के बाद पीठ ने कहा, “सिर्फ जिस आपराधिक मामले की चर्चा की गई है जिसमें उसको बरी कर दिया गया, अपीलकर्ता का रिकॉर्ड बहुत ही साफ रहा है और उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं है कि उसको प्रतियोगिता परीक्षा पास करने के न्यायिक अधिकारी के पद पर हुई नियुक्ति से रोक दिया जाए...हमारी राय में जिस तरह का सबूत पेश किया गया है उसके आधार पर कोई भी तर्कशील व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि इस व्यक्ति का चरित्र ऐसा है कि उसे न्यायिक अधिकारी के रूप में नियुक्ति नहीं दी जा सकती है। दुर्व्यवहार के एकमात्र उदाहरण के आधार पर...उसको नियुक्ति से दूर रखने का आधार नहीं हो सकता जबकि अन्य सभी मानदंडों पर वह नियुक्ति के काबिल पाया जाता है”।

इसके बाद ऑथोरिटीज को पीठ ने उसकी नियुक्ति पर दुबारा गौर करने का निर्देश दिया।

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