बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने पत्रकार को अवमानना का दोषी पाया, तीन महीने के लिए जेल भेजा [निर्णय पढ़ें]
बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने एक पत्रकार केतन तिरोदकर को तीन महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। तिरोदकर पर दो हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है क्योंकि कोर्ट ने उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी पाया है।
न्यायमूर्ति एएस ओका, न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति आरएम सावंत की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने तिरोदकर के फेसबुक पोस्ट पर स्वतः संज्ञान लिया था जिसमें उन्होंने हाईकोर्ट के वर्तमान और पूर्व जजों पर घूस लेकर फैसले देने का आरोप लगाया था।
कोर्ट ने तिरोदकर के आरोपों के बारे में कहा,
“आरोप का सारांश यह है कि इस कोर्ट के जजों को मैनेज किया जा सकता है। यह कि इस कोर्ट की कुछ महिला जज वेश्या की तरह व्यवहार करती हैं। यह कि कुछ पूर्व और वर्तमान जज जमीन हड़पनेवालों में शामिल हैं। हम प्रतिवादी के फेसबुक पोस्ट में लिखी बातों को शब्दसः उद्धृत करने में हिचक रहे हैं।
अपने फेसबुक पोस्ट में तिरोदकर ने हाईकोर्ट के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट की दो महिला जजों – एक वर्तमान और एक पूर्व का चरित्र खराब है।
केतन तिरोदकर को अपने फेसबुक पोस्ट में एक वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक पर गंभीर आरोप लगाने की वजह से गत वर्ष दिसंबर में गिरफ्तार किया गया था और वह पहले भी हाईकोर्ट के जजों पर आरोप लगा चुका है। यह आरोप जजों के लिए एक कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाने के लिए जमीन के आवंटन से संबंधित है। उसने अपने हलफनामे में 27 मार्च 2017 को कहा,
“मैंने अपने वेबसाइट पर भ्रष्ट जजों और सुरभि सीएचएस के बारे में जो लिखा वह कुछ पीठ/जजों द्वारा दिये गए फैसलों से आहत होने की वजह से लिखा। यह भी कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश .... और उनके कानूनी सहयोगी का हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं होने का हमारे ऊपर काफी खराब असर पड़ा। मेरी पत्नी का एक वरिष्ठ वकील और उसके बेटे के साथ संपर्क से हमें दुख पहुंचा है। कुछ कटु अनुभवों ने मेरे दिलोदिमाग में ऐसे भाव भर दिये जो सुखद नहीं हैं।
…मैंने अपना संतुलन खो दिया और अपने वेबसाइट पर मैंने खराब बातें लिखी। मेरे समूह में शामिल लोगों ने मेरे पोस्ट को कॉपी कर इन्हें एफबी पेज पर डाल दिया। इस तरह लिखी गई बातें आम लोगों तक नहीं पहुंचे इसकी ज़िम्मेदारी पूरी तरह मेरी थी”।
कोर्ट ने कहा,
“उसने महिला पीठासीन पदाधिकारियों और जजों को निजी तौर पर निशाना बनाया। उसने कहा कि ...मनमाफिक फैसले के लिए इनको आसानी से अपने पक्ष में किया जा सकता है। यह एक बहुत ही गंभीर आरोप है और जो यह आरोप लगा रहा है उसे इसको पूरी तरह सिद्ध करना होगा। प्रतिवादी ने ऐसा कुछ नहीं किया है। वह अपने फेसबुक पोस्ट में यह सब डालता है और जजों और न्यायपालिका पर सार्वजनिक रूप से अपनी टिप्पणी भी करता है। वह किसी उद्देश्य से उन्हें प्रचारित करता है। वह खुद को एक हीरो और पीड़ित दोनों ही रूपों में पेश कर रहा है और सार्वजनिक समर्थन चाहता है। वह जनता से अपनी पीठ ठोकवाना चाहता है और उनकी संवेदना चाहता है, और यह सब एक ही साथ। प्रतिवादी यह सब बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से करता है, पर हम यह नहीं भूल सकते कि वह यह सब इस न्यायालय सहित न्यायपालिका की प्रतिष्ठा, उसकी गरिमा और उसके सम्मान की कीमत पर कर रहा है”।
कोर्ट ने निष्कर्ष में कहा कि तिरोदकर आपराधिक अवमानना का दोषी है क्योंकि उसने अपनी किसी भी टिप्पणी के लिए किसी तरह की ज़िम्मेदारी स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उसका माफीनामा सद्भावपूर्ण नहीं था।
इस तरह, तिरोदकर को तीन महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई और उसे दो हजार रुपए का जुर्माना भी भरने को कहा गया।