गंभीर अपराधों में आरोप तय होने से ही चुनाव के लिए अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने कहा संसद कानून लाए [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-09-25 08:48 GMT

गंभीर अपराधों का सामना करने वाले व्यक्ति को आरोपपत्र दाखिल करने या आरोप तय होने पर विधानसभा या संसदीय चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया। हालांकि। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं।

 मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस  इंदु मल्होत्रा ​​की पीठ ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट इसे लेकर नई अयोग्यता नहीं जोड़ सकता। पीठ ने कहा कि ये काम संसद का है और संसद का दायित्व है कि वो चुनाव में अपराधियों को बाहर करने के लिए कानून लेकर आए।

पीठ ने कहा कि  संसद को एक कानून लाना चाहिए ताकि जिन लोगों पर गंभीर आपराधिक मामले हैं वो पब्लिक लाइफ में ना आ सकें।वक्त आ गया है कि संसद ये कानून लाए ताकि अपराधी राजनीति से दूर रहें। सार्वजनिक जीवन में आने वाले लोग अपराध की राजनीति से ऊपर हों। राष्ट्र तत्परता से संसद द्वारा कानून का इंतजार कर रहा है। दूषित राजनीति को साफ करने के लिए बडा प्रयास करने की जरूरत है।

पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार राष्ट्रीय आर्थिक आतंक बन गया है और भारतीय लोकतंत्र में  राजनीति में अपराधीकरण का ट्रेंड बढता जा रहा है। ऐसे में संसद का दायित्व है कि इस कैंसर का उपचार वक्त रहते करे।

हालांकि पीठ ने कुछ दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा है कि




  1. हर प्रत्याशी चुनाव आयोग को फार्म भरकर देगा जिसमें लंबित आपराधिक मामले बोल्ट लैटर मेंबताएगा

  2. प्रत्याशी केसों की जानकारी अपनी पार्टी को देगा

  3. पार्टियां अपने प्रत्याशियों के आपराधिक केसों की जानकारी वेबसाइट पर जारी करेगी और इसका व्यापक प्रचार करेंगी

  4. प्रत्याशी और पार्टियां नामांकन दाखिल करने के बाद लोकल मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट) में लंबित आपराधिक मामलों का पूरा प्रचार करें।

  5. चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वो मतदाताओं को पूरी जानकारी दे ताकि वो बेहतर जनप्रतिनिधि चुन सकें


सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या एक गंभीर अपराधों में आपराधिक मामले का सामना करने वाले व्यक्ति को आरोपपत्र दाखिल करने या आरोप तय होने या केवल सजा के बाद विधानसभा या संसदीय चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था।

शुरुआत में अटॉर्नी जनरल केके  वेणुगोपाल ने अदालत से एक नई योग्यता / अयोग्यता जोड़ने के लिए किसी भी आदेश को पारित करने से बचने का आग्रह किया जिसे या तो संविधान के तहत या जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में प्रदान नहीं किया गया है।

 AG ने कहा कि अदालत के महान इरादों के बावजूद व्यक्तियों को दोषी करार दिए जाने से पहले चुनाव लड़ने से रोकने के लिए न्यायिक आदेश नहीं दिया जा सकता या राजनीतिक दलों को निर्देशित नहीं किया जा सकता कि वे ऐसे उम्मीदवारों को टिकट न दें। उन्होंने कहा कि चुनाव पहले से ही कब और कैसे चुनाव लड़ने से किसी व्यक्ति को वंचित किया जा सकता है,  अदालत इसके लिए नए मानदंड निर्धारित नहीं कर सकती।

 जब सीजेआई ने जानना चाहा कि क्या आरोपपत्र वाले व्यक्ति पार्टी के चुनाव चिन्ह के बिना स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में चुनाव लड़ सकते हैं तो AG ने कहा कि इसे राजनीतिक दलों के विवेक पर  छोड़ दिया जाना चाहिए।

AG ने तर्क दिया था  कि इसका कारण अयोग्यता है। जब पहले से ही एक कानून हैतो अदालत एक और अयोग्यता के  कानून में शामिल नहीं हो सकती। सीजेआई ने कहा, "हम कानून में नहीं आ रहे हैं। लोगों को उम्मीदवार के बारे में जानने का अधिकार है जिन्हें  वे मतदान कर रहे हैं। हम केवल एक पंक्ति कह रहे हैं जिसके खिलाफ बलात्कार, हत्या, भ्रष्टाचार के मामलों में गंभीर अपराध के आरोप लगाए गए हैं, उन्हें पार्टी टिकट नहीं मिलेगा। "

AG ने कहा था कि चुनाव का अधिकार भी एक अधिकार है। क्या आप उन्हें दोषी ठहराए जाने से पहले ही उन्हें बाहर करके एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के एक महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित करेंगे क्योंकि हर आरोपी व्यक्ति को दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है।

AG ने अदालत से कहा कि वह अपनी आंखें निर्दोषता की धारणा के मुख्य सिद्धांत को बंद नहीं कर सकती। कानूनी प्रक्रिया लंबे समय से तैयार की जाती है ताकि एक आदमी पर झूठा आरोप लगाया गया हो तो वह अपनी निर्दोषता साबित कर सके। अदालत  संविधान में निर्धारित प्रक्रिया से अलग आदेश पारित नहीं कर सकती।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन, पूर्व चुनाव आयुक्त जेसी लिंगदोह और बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कानून का एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया है कि गंभीर आपराधिक मामले का सामना कर रहे व्यक्ति को विधानसभा या संसदीय चुनाव लड़ने से अयोग्य करार कब किया जाए, आरोपपत्र दाखिल करने या आरोप तय हो या फिर सजा सुनाए जाने के बाद। ये पीठ  इस सवाल की जांच कर रही थी कि क्या संविधान के अनुच्छेद 102 (ए) से (डी) से परे अनुच्छेद 102 (ई) के तहत अदालत द्वारा सदस्यता के लिए अयोग्यता निर्धारित की जा सकती है ?


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