किसी प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जा रखने वाला व्यक्ति पंचायत का सदस्य नहीं हो सकता; सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को बदला [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-09-21 08:30 GMT

अगर कोई सदस्य किसी संपत्ति पर अवैध कब्जा किए हुए है तो उसके हितों के टकराव का मामला बनता है। अगर इसका अर्थ यह निकाला जाता है कि सिर्फ कब्जा करने वाले मूल व्यक्ति को ही इसकी सजा दी जाए और उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाए, तो इससे एक बेतुकी स्थिति का निर्माण होगा”

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले दिये अपने फैसले को उलटते हुए कहा है कि अगर कोई व्यक्ति गैर कानूनी कब्जे वाली जमीन पर रहता है और ऐसा वह लगातार कर रहा/रही है, तो उसे पंचायत का सदस्य होने के अयोग्य करार दे दिया जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने जनाबाई बनाम अतिरिक्त आयुक्तमामले में फैसला सुनाते हुए सागर पांडुरंग धुनदरे बनाम केशव आबा पाटिल मामले में दो जजों की पीठ के फैसले को पलट दिया।

महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 1958 की धारा 14 में कहा गया है, “अगर किसी व्यक्ति ने सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण कर रखा है तो वह पंचायत का सदस्य नहीं बना रह सकता है”।

पृष्ठभूमि

जनाबाई पंचायत सदस्य चुनी गई पर उसे इस आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया गया कि उसके पति और ससुर ने 1981 से सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है और वह इस जमीन का प्रयोग कर रही है। हाईकोर्ट ने भी इस निर्णय को सही ठहराया था।

सागर पांडुरंग मामला

सुप्रीम कोर्ट में सागर पांडुरंग धुनदरे मामले में आए फैसले के आलोक में इन आदेशों की आलोचना की गई। इस फैसले में न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि सिर्फ मूल अतिक्रमणकारी, जिसने सरकारी या सार्वजनिक जमीन पर कब्जा कर रखा है, को अयोग्य ठहराया जा सकता है न कि उसके परिवार के सदस्य को।

अतिक्रमण की गई जमीन पर रहने वाले लोग अयोग्य घोषित

सागर पांडुरंग मामले में आए फैसले को पलटते हुए कोर्ट ने कहा, “धारा 14(1)(j-3) में ‘व्यक्ति’ शब्द की संकीर्ण व्याख्या नहीं की जाए जिससे कि अयोग्य ठहराए जाने के संदर्भ में अतिक्रमण का मूल मामला ही व्यर्थ हो जाए… यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि पंचायत को अतिक्रमण हटाने का अधिकार दिया गया है। पंचायत की जो संपत्ति है उसकी रक्षा करना पंचायत का वैधानिक कर्तव्य है। अगर कोई सदस्य अतिक्रमण की गई जमीन पर कब्जा जमाए हुए है तो यह हितों के टकराने का मामला बनता है। अगर यह अर्थ निकाला जाता है कि मूल अतिक्रमणकारी या जिसइससे  व्यक्ति ने अतिक्रमण किया है, उसे ही अयोग्य घोषित किया जा सकता है, तो  इससे बेतुकी स्थिति का निर्माण होगा...इसलिए हमारी राय यह है कि सागर पांडुरंग मामले में दिया गया फैसला सही नहीं है और इसे निरस्त किया जाता है।”

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