दिल्ली हाईकोर्ट ने पोक्सो पीड़ित का बयान एनजीओ/काउंसेलर के माध्यम से दर्ज करने पर एतराज किया; कहा – बयान पुलिस या मजिस्ट्रेट ही रिकॉर्ड करे [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-08-06 13:13 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा यौन हिंसा के शिकार लोगों का बयान एनजीओ या किसी निजी काउंसेलर द्वारा रिकॉर्ड कराये जाने की अनुमति देने से अपनी असहमति जताई है और कहा है कि पीओसीएसओ (पोक्सो) अधिनियम के तहत बयान सिर्फ किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को ही दिया जा सकता है न कि किसी तीसरे पक्ष या किसी काउंसेलर को।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल और अनु मल्होत्रा की खंडपीठ ने कहा कि पुलिस द्वारा पीड़ित का एक से अधिक बयान लेना अवैध नहीं है।

जेजे बोर्ड का सन्दर्भ

जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने कोर्ट से कुछ प्रश्न पूछे थे जो इस तरह से थे :




  • यौन हिंसा के पीड़ितों ने जो घटना बयान किया है उसके बारे में किसी एनजीओ या निजी काउंसेलर द्वारा बयान दर्ज कराना और उसको सीआरपीसी डी धारा 173 के तहत इस निचली अदालत को सुनवाई के लिए पेश करना कितना वैध है?

  • यौन हिंसा की शिकार महिला और बच्चों के एक से अधिक बयान को जांच अधिकारी या न्यायिक अधिकारी द्वारा रिकॉर्ड किया जाना कितना वैध है?


पोक्सो अधिनियम के बारे में पीठ ने कहा कि कानून के तहत बाल पीड़ितों का बयान अधिनियम की धारा 24 के तहत सिर्फ कोई पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट ही रिकॉर्ड कर सकता है कोई तीसरा पक्ष नहीं।

अधिनियम की धारा 26(1) पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी बच्चे का बयान कोई पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट ही उसके माँ-बाप या उस अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में दर्ज कर सकता है जिस पर उस बच्चे को विश्वास है पर “अन्य व्यक्ति जिसमें बच्चे को विश्वास है” में काउंसेलर या एनजीओ शामिल नहीं है।

“इसके बावजूद कि इसमें काउंसेलर या एनजीओ का जिक्र है, उनकी भूमिका सिर्फ उनकी उपस्थिति तक सीमित है”, कोर्ट ने कहा।

पीठ ने कहा कि अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि काउंसेलर द्वारा रिपोर्ट तैयार किया जाएगा और इस तरह की किसी रिपोर्ट को पुलिस फाइल का हिस्सा बनाया जाएगा और उसे सुनवाई अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा।

पीठ ने कहा कि क़ानून जांच एजेंसी को पीड़ित के एक से अधिक बयान रिकॉर्ड करने की इजाजत देता है और पुलिस द्वारा एक से अधिक बयान रिकॉर्ड करने पर कोई पाबंदी नहीं है।

पीठ ने कहा, “...दुनिया भर में बाल यौन हिंसा के शिकार को लेकर एक ही तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है। पहली बात और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बच्चे किस तरह किसी बात को याद करने की कोशिश करते हैं उसको समझना। बच्चे एक ही साथ सारी बातें नहीं बता देते हैं। वे टुकड़ों टुकड़ों में अपनी बातें बताते हैं। किसी बच्चे के साथ वयस्क की तरह पेश आना उनके साथ अन्याय होगा ...उनको अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में डर; यह आशंका कि उन पर विश्वास नहीं किया जाएगा; पीड़ित के रूप में खुद को नहीं देख पाना; अपराधी का डर या दबाव; अपराधी के साथ संबंध; शर्म; कलंक लगने का डर; जांच एजेंसी के प्रति विश्वास नहीं होने जैसे कुछ अवरोध हैं जिसकी वजह से एक बाल अपराध-पीड़ित एक ही बार में सब कुछ नहीं बता पाता है...”


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