बार और बेंच दोनों ही गलतियां करते हैं; गलत क़ानूनी सलाह लिखित बयान दाखिल करने में देरी होने का सही आधार है : कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2018-06-28 12:54 GMT

वास्तविक जीवन में हम अमूमन पाते हैं कि बेंच और बार दोनों ही गलती करते हैं। हम ऐसी आदर्श स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते और क़ानूनी सलाह की पवित्रता को उस ऊंचाई तक नहीं पहुंचा सकते कि मुकदमादार घुटा हुआ महसूस करे

कलकत्ता हाईकोर्ट ने गौर किया है कि अगर कोई वकील गलत सलाह देता है तो लिखित बयान दाखिल करने में होने वाली देरी को उसका सही आधार माना जाएगा।

न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य ने यह बात निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कही। जज ने इस दलील के आधार पर दायर की गई याचिका को भी खारिज कर दिया कि क़ानून के बारे में जानकारी नहीं होने और वकील की गलत क़ानूनी सलाह को लिखित बयान दाखिल करने में होने वाले देरी के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि एक याचिकाकर्ता के लिए अपने लिखित बयान दर्ज कराने में और किस बात की देरी हो सकती है अगर यह उसके वकील द्वारा दी गई गलत क़ानूनी सलाह नहीं है तो। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने वकील की गलत क़ानूनी सलाह को उचित आधार मानने को नजरअंदाज किया और यह एक न्यायिक गलती थी।

“हमें व्यावहारिक होने की जरूरत है और हम आदर्शलोक में नहीं जी सकते। निस्संदेह, किसी वकील की सलाह सही होनी चाहिए लिखित बयान देरी से देने का दोष मुकदमादार पर लगाया जाना चाहिए; पर व्यावहारिक जीवन में ऐसे बहुत सारे मौके आते हैं जब गलतियां बार और बेंच दोनों ही पक्ष करते हैं, ऐसा हमें पता चलता है। तो इस स्थिति में हम एक एक आदर्श स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते और  क़ानूनी सलाह को उस ऊंचाई तक नहीं ले जा सकते कि इससे मुकदमादारों के  दम घुट जाएं,” कोर्ट ने कहा।

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि उसने याचिकाकर्ता पर इस देरी के लिए 50 हजार का जुर्माना लगाया है।

हाल ही में लाइव लॉ ने अपनी रिपोर्ट में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया था जिसमें कहा गया था कि चूंकि उसके वकील ने उसको गलत सलाह दी थी इसलिए इस गलती की सजा उसे नहीं दी जानी चाहिए। एक अन्य मामले में कोर्ट ने कहा था कि किसी वकील की अयोग्यता सीआरपीसी की धारा 311 के तहत गवाहियों को वापस ले लेने का आधार नहीं हो सकता।

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