जिस अकेली शिक्षित माँ पर छोटे बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी है उससे खुद कमाने की उम्मीद नहीं की जा सकती : कर्नाटक हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-05-28 15:39 GMT

यह एक काल्पनिक आदर्श है कि हर शिक्षित और अकेली रहने वाली महिला काम कर सकती है, अपनी और अपने बच्चे की जरूरत के लिए आवश्यक पैसे कमा सकती है, कोर्ट ने कहा।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 में “अपना भरण-पोषण नहीं कर सकने” की बात का जो जिक्र है उसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि ऐसी महिला “गरीब या शारीरिक रूप से इतनी अशक्त होगी कि वह अपनी आजीविका नहीं चला सकती या अपने जीवन-यापन के लिए कुछ भी नहीं कमा सकती है और किसी व्यक्ति की धनार्जन की क्षमता उसके जीवन के तथ्यों और उसकी परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

अगर एक पत्नी जो कि एक छोटे बच्चे की माँ भी है और पर्याप्त शिक्षित भी तो क्या इसका यह अर्थ निकाला जाए कि वह कमा सकती है और इस आधार पर वह गुजारे की राशि का दावा नहीं कर सकती? फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की अपील पर इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति राघवेन्द्र एस चौहान को इस प्रश्न से दो-चार होना पड़ा। फैमिली कोर्ट ने पति को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को गुजारे की राशि का भुगतान करे।

हाईकोर्ट के समक्ष यह दलील दी गई कि पत्नी एम. कॉम. है और चूंकि वह शादी के पहले और बाद में भी काम कर चुकी है, इसलिए वह निश्चित रूप से खुद को “आर्थिक रूप से संभाल सकती है”।

शिक्षा रोजगार की गारंटी नहीं देता

पति के वकील के दलीलों से अप्रभावित कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इस वजह से कि कोई व्यक्ति शिक्षित है, उसे रोजगार मिल जाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि इस देश में भारी संख्या में शिक्षित युवक-युवती बेरोजगार हैं और क़ानून में इस तरह के पूर्वानुमान की जगह नहीं है कि सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति शिक्षित है, तो उसे रोजगार भी होगा।

“यहाँ तक कि शिक्षित होने का यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि वह व्यक्ति पैसे भी कमा सकता है”, कोर्ट ने कहा।

माँ बनी युवतियों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह खुद पैसे भी कमाएगी

कोर्ट ने कहा कि ऐसे अन्य कारण भी हो सकते हैं जिसकी वजह से कोई व्यक्ति पैसे कमाने से असमर्थ हो सकता/सकती है। उदाहरण के लिए एक माँ बनी ऐसी युवती जिसके कंधे पर अपने बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी भी है।

जज ने कहा, “एक माँ बनी युवती से यह उम्मीद करना कि वह घर से ऑफिस काम करने जाएगी, उस पर अनावश्यक बोझ डालना है क्योंकि अपने पति से अलग अकेले रहने के कारण समाज में उसकी स्थिति उभयभावी हो जाती है। इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती कि एक जवान महिला जिसपर छोटे बच्चे के लालन-पालन का भार भी है, कोई फुल-टाइम काम भी करेगी। इसलिए एकेली माँ होने के कारण परिस्थितिवश वह फुल-टाइम रोजगार प्राप्त नहीं कर सकती। इस तरह, वह अपना भरण-पोषण नहीं कर पाएगी। कोर्ट ने “अपना भरण-पोषण करने में अक्षम” की व्याख्या करते हुए कहा कि कोर्ट देश की इस कटु वास्तविकता को नजरअंदाज नहीं कर सकता विशेषकर समाज में एक महिला की सामाजिक स्थिति को। यह उम्मीद करना एक काल्पनिक आदर्श है कि हर शिक्षित और अकेली रहने वाली महिला काम कर सकती है, अपनी और अपने बच्चे की जरूरत के लिए आवश्यक पैसे कमा सकती है।”

कोर्ट ने पति की अपील खारिज कर दी और कहा, “...वह अपने माँ-बाप के साथ नहीं रह रही है। इस स्थिति में उससे यह उम्मीद करना कि वह काम भी करे और घर भी संभाले, उससे कुछ ज्यादा अपेक्षा करना होगा। यह उसकी परिस्थिति है जिसकी वजह से वह अपना और अपने बच्चे का भरण-पोषण नहीं कर पा रही है। इसलिए वह पूरी तरह एक ऐसी पत्नी की श्रेणी में आती है जो अपना भरण-पोषण खुद नहीं कर सकती।”


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