जज लोया की मौत प्राकृतिक: सुप्रीम कोर्ट ने लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की याचिका खारिज की [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-04-19 09:34 GMT

तीन साल पहले न्यायाधीश बीएच लोया की  मौत स्वाभाविक कारणों हुई थी और उनकी मौत को संदिग्ध बताने वाली जनहित याचिकाओं में "बिल्कुल कोई योग्यता" नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ये निष्कर्ष निकाला। सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत के बारे में भविष्य के किसी भी सवाल को बंद कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम  खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड की पीठ ने तीन पहलुओं पर अपना ये निष्कर्ष निकाला। एक, चारों न्यायाधीशों और न्यायाधीश लोया के सहकर्मियों द्वारा महाराष्ट्र पुलिस को दिए गए लिखित बयान "निर्विवाद" हैं।

 दूसरा रवि भवन गेस्ट हाउस में एक ही कमरे में लोया सहकर्मियों के साथ रुके। तीसरा,  न्यायाधीश लोया ने 30 नवंबर को अपनी पत्नी को फोन किया था और कहा था कि वह रवि भवन में रह रहे हैं। नवंबर 2014 में नागपुर में जज लोया की मौत के बारे में संदेह संबंधी एक पत्रिका में 2017 में प्रकाशित लेखों के बाद महाराष्ट्र पुलिस को न्यायाधीशों द्वारा दिए गए बयानों पर अविश्वास करने का कोई आधार नहीं है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने इस फैसले को  लिखा और पीआईएल को "न्यायपालिका पर भड़काऊ हमले “ के रूप में वर्णित किया। न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि जनहित याचिका न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का एक उदाहरण है और जब सैकड़ों वादी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर फैसलों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायपालिका और उनकी मौत के समय जज लोया के साथ न्यायिक अधिकारियों, सुप्रीम कोर्ट की छवि खराब करने के लिए जनहित याचिकाएं प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल कीं।

 एक बिंदु पर  याचिकाकर्ता जज लोया पर  बयान देने वाले न्यायाधीशों के साथ "क्रॉस-जांच" करना चाहते थे, उन्होंने कहा था कि दिल के दौरे  से उनकी मृत्यु हो गई थी।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने इस पर आश्चर्य जताया कि  याचिकाकर्ताओं ने पहले उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर विश्वास नहीं करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट में ही क्यों याचिका दाखिल की।

फैसले में कहा गया है कि लोया पीआईएल "न्यायपालिका पर गंभीर हमला” है और न्यायाधीशों को " सकेंडलाइज" करने का प्रयास किया गया था। पीआईएल व्यक्तिगत एजेंडा को संतुष्ट करने और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर स्कोर करने का प्रयास थी। याचिकाकर्ताओं द्वारा तैयार की गई योजना न्यायाधीश की मौत की जांच के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जनहित याचिकाएं केवल एक "मुखौटा" था। सच्चाई यह थी कि याचिकाकर्ता न्यायाधीश की मौत को सनसनीखेज बनाना चाहते थे। जनहित याचिकाएं केवल "संदेहास्पज" दावों के साथ "न्यायपालिका की विश्वसनीयता को नष्ट करने का एक भद्दा प्रयास थी।”

 याचिकाकर्ताओं द्वारा दावा करने के लिए कि "एक व्यक्ति" (अमित शाह) न्यायपालिका को नियंत्रित कर रहा है लेकिन न्यायपालिका में सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करने और न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को कम करने का एक प्रयास था, फैसले में कहा गया।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को राजनीतिक स्कोर सुलझाने के लिए अदालतों का उपयोग नहीं करना चाहिए। न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा, "राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को लोकतंत्र के उस महान हॉल में लड़ना चाहिए ... कानून का शासन कमजोर नहीं होना चाहिए।"

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के दावों और आकांक्षाएं आपराधिक अवमानना ​​है। लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि अदालत अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू नहीं करना चाहता क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया को अवमानना ​​के डर से सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि

नैतिक अधिकार पर आधारित होना चाहिए। फैसले में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच  में दो जस्टिस खानविलकर  और जस्टिस चंद्रचूड

  को लोया की पीआईएल की सुनवाई से अलग होने के लिए कहा गया क्योंकि वे बॉम्बे हाईकोर्ट से थे और उन्हें न्यायालय के अधिकारियों को जानते हैं  जो जज लोया के साथ थे।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि उन दोनों ने "अपने कर्तव्यों का त्याग नहीं" करने का निर्णय लिया क्योंकि वो अपनी न्यायिक अंतरात्मा और उच्च मूल्यों के प्रति जवाबदेह हैं।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि पीआईएल की मुकदमेबाजी को बेहिचक तरीके से दुरुपयोग करने के लिए "निहित स्वार्थों का उद्योग" बनाया गया है। अदालत ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में दाखिल  जनहित याचिकाओं पर भी सवाल उठाया।

कोर्ट ने लोया की मौत की जांच को लेकर दाखिल याचिकाओं को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि लोया की मौत प्राकृतिक थी और इसमें कोई संदेह नहीं है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट  मे सोहराबुद्दीन केस के ट्रायल को देख रहे सीबीआई जज बृजगोपाल हरिकिशन लोया की 2014 में हुई मौत की जांच को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की थी।

दरअसल 48 साल के जज लोया, जो सीबीआई केस की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बीजेपी चीफ अमित शाह आरोपी थे, लेकिन बाद में आरोपमुक्त हो गए, की एक दिसंबर 2014 को नागपुर में दिल का दौरा पडने से मौत हो गई थी। उस वक्त वो शादी समारोह में हिस्सा लेने गए थे।

याचिकाओं में कारवां मैगजीन की उन दो रिपोर्ट का हवाला दिया गया है जिसमें लोया के परिवार के सदस्यों द्वारा लोया की मौत के दौरान हैलात पर संदेह जताया गया है।


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