वकीलों, पक्षकारों, मीडिया और आम जनता के लिए सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट रूम में माइक के आवश्यक रूप से प्रयोग की अनुमति हो : क़ानून के छात्र और युवा वकीलों का सुप्रीम कोर्ट से आग्रह [याचिका पढ़े]

Update: 2018-04-01 13:48 GMT

क़ानून के एक छात्र और दो युवा वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की है कि जजों की मेजों पर लगे माइक का नियमित प्रयोग किया जाए।

इस याचिका में मांग की गई है कि वकीलों को उनकी सीट पर बैठकर माइक की मदद से बहस करने की इजाजत होनी चाहिए।

यह आवेदन क़ानून के छात्र कपिलदीप अग्रवाल और दो युवा वकील कुमार शानू और पारस जैन ने दाखिल किया है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे अदालत के कमरों में पहले से लगाए गए माइक सिस्टम के प्रयोग का मुद्दा उठाया है ताकि प्रेस की स्वतंत्रता को बचाया जा सके जिससे उनका मतलब यह है कि मीडिया अदालत की कार्यवाही को सही तरीके से आम जनता के लिए रिपोर्ट कर सके।

उन्होंने यह भी कहा कि माइक का प्रयोग नहीं करना खुली अदालत की परिकल्पना को नहीं मानना है।

 “मुकदमा लड़ने वाले और इंटर्न अदालत की कार्यवाहियों को ठीक से समझ नहीं पाए हैं। अदालत में लगी माइक प्रणाली का प्रयोग नहीं करने का मतलब है मौलिक अधिकारों का उल्लंघन।

अपीलकर्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में अपने इंटर्नशिप के दौरान उन्हें कोर्ट की कार्यवाहियों को समझने में काफी मुश्किल पेश आई क्योंकि जरूरत से ज्यादा भीड़भाड़ वाले अदालत कक्ष में माइक सिस्टम का प्रयोग नहीं किया जा रहा था। पक्षकारों के रूप में जब ये सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हुए तब भी उन्हें इसी तरह की समस्या से जूझना पड़ा क्योंकि उनके लिए कुछ भी समझ पाना मुश्किल था और यह अनुच्छेद 19(1) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

मीडियाकर्मियों के अधिकारों की सुरक्षा के बारे में याचिकाकर्ताओं ने कहा है, “मीडियाकर्मियों के मौलिक अधिकारों का स्रोत भी वही अनुच्छेद 19(1)(a) है और इस अधिकार की सुरक्षा तभी हो सकती है जब मीडियाकर्मियों को अदालत कक्ष की कार्यवाहियों तक स्वतंत्र पहुँच हो। अदालत कक्ष में माइक सिस्टम का प्रयोग नहीं होने का मतलब है अदालत कक्ष की कार्यवाहियों तक मीडिया की पहुँच को सीमित करना होता है जिसकी वजह से मीडिया ठीक से रिपोर्ट नहीं कर पाती है क्योंकि अदालत कक्ष में जरूरत से ज्यादा भीड़भाड़ होती है।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि माइक का प्रयोग नहीं होने से कई बार खबर गलत छप जाती है। डिजिटल मीडिया के जमाने में जब खबर दिखाने और छपने की होड़ होती है, एक गलत खबर बहुत जल्दी पसर जाती है और इससे समाज को बहुत नुकसान होता है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। इस तरह की गलत रिपोर्टिंग से अदालत की अवमानना भी होती है।

यह भी गौर करने वाली बात है कि कपिलदीप ने 2017 में एक आरटीआई दाखिल किया था जिसमें उन्होंने यह जानना चाहा था कि अदालत कक्षों में माइक क्यों लगाए गए थे और उस पर कितने खर्च आए थे।

जो जानकारी दी गई उसके हिसाब से अदालत कक्ष में माइक लगाने पर 91.95 लाख रुपए खर्च किए गए थे।

याचिकाकर्ता ने  यह भी कहा कि गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने मीडियाकर्मियों की बैठक बुलाई थी जिसमें इस बात पर चिंता व्यक्त की गई थी कि अदालत कक्ष में जजों की बात सुनाई नहीं देती और यह कहा गया कि सही खबर छपे इसके लिए माइक प्रणाली का प्रयोग किया जाए।


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