अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 की परिधि का विस्तार करते हुए जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में व्यक्तिगत गरिमा को शामिल कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार में आसन्न मृत्यु की स्थिति में मृत्यु की प्रक्रिया को आसान बनाना भी शामिल है।
कोर्ट ने ऐसे लोगों के मरने की ख्वाहिश को अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत गरिमा का हिस्सा माना है जिनके जीने की सभी आशाएं क्षीण हो चुकी हैं और जो कृत्रिम लाइफ सपोर्ट पर ज़िंदा है। ज़िंदा रहने की इस दर्दनाक और तकलीफ़देह प्रक्रिया से मुक्ति पाने को अब अधिकार माना गया है। यह भी कहा गया है कि अगर कोई इस तरह की बीमारी से ग्रस्त है जिसकी वजह से उसका आगे जीवित रहना मुश्किल है तो वह अपने इलाज को लेकर होशोहवास में रहते हुए एक अग्रिम वसीयत (Advance Directive) बना सकता है जिसमें वह इस बात का जिक्र कर कर सकता है कि बीमारी के किस स्तर पर उसका इलाज बंद किया जा सकता है और उसका लाइफ सपोर्ट वापस लिया जा सकता है ताकि वह जल्दी मर सके और इस तरह गहन पीड़ा से उसको छुटकारा मिल जाए। कोर्ट ने इस अग्रिम वसीयत/अग्रिम निर्देश बनाने की भी अनुमति अपने फैसले में दे दी है। पर इसका दुरुपयोग न हो इसके लिए इसकी प्रक्रिया के बारे में व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं। अप्रतिरोधी इच्छामृत्यु और अग्रिम निर्देश पर अपने फैसले के दौरान कोर्ट ने दुनिया के अन्य देशों में इस बारे में किस तरह के क़ानून हैं इसका भी उल्लेख किया।
जाहिर है कि इस बारे में लोगों के मन में कई सवाल उठेंगे। यहाँ प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ सवाल के सम्यक उत्तर -
(a) अग्रिम निर्देश कौन तैयार कर सकता है और कैसे?
(i) यह निर्णय कोई वयस्क ही ले सकता है जिसकी मानसिक स्थिति अच्छी है और जो अपनी बात कह सकता है और जो दस्तावेज वह तैयार कर रहा है उसके परिणामों के बारे में वह जानता है।
(ii) यह स्वेच्छा से तैयार किया गया हो किसी के दबाव में नहीं और वह जानता है कि वह क्या कर रहा है।
(iii) यह एक सोच समझकर लिया गया निर्णय होना चाहिए बिना किसी के प्रभाव में आए।
(iv) इसमें यह स्पष्ट लिखा होना चाहिए कि इलाज को कब रोका जा सकता है या कोई विशेष इलाज नहीं दिया जाए क्योंकि ऐसा नहीं करने से उसकी मृत्यु जल्दी नहीं होगी और इससे उसकी तकलीफ़ की अवधि बढ़ जाएगी और यह उसके जीवन की गरिमा को कम करेगा।
(b) इसमें क्या होना चाहिए?
(i) सब कुछ, सारे निर्देश बहुत ही स्पष्ट लिखे होने चाहिएं।
(ii) इसमें यह लिखा होना चाहिए कि इस निर्देश पर अमल करने वाला इस निर्देश को कभी भी रोक सकता है।
(iv) इसमें उस व्यक्ति/अभिभावक का नाम का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए जो निर्देश पर अमल करने वाले व्यक्ति द्वारा अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाने पर इस बारे में उचित समय पर निर्णय ले सके।
(c) इसकी कैसे रिकॉर्ड किया जाए और सुरक्षित रखा जाए?
(i) इस दस्तावेज पर इसके तैयार करने वाले को दो गवाहियों की उपस्थिति में हस्ताक्षर करने होंगे, बेहतर हो कि ये लोग स्वतंत्र लोग हों और इस पर प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट का काउंटर हस्ताक्षर हो।
(ii) गवाह और मजिस्ट्रेट यह दर्ज करेंगे कि यह दस्तावेज स्वेच्छा से तैयार किया गया है और इसे तैयार करने वाला यह जानता है कि वह क्या कर रहा है और इसके परिणाम क्या होंगे।
(iii) जेएमएफसी इस दस्तावेज की एक प्रति अपने कार्यालय में सुरक्षित रखेगा और यह दस्तावेज डिजिटल फॉर्म में भी रखा जाएगा।
(iv) जेएमएफसी इस दस्तावेज की एक कॉपी उस क्षेत्र के जिला जज की रजिस्ट्री को भेजेगा जो उसको सुरक्षित रखेगा जो उसको डिजिटल फॉर्म में अपने पास रखेगा।
(v) जेएमएफसी इस दस्तावेज को तैयार करने वाले के परिवारवालों को इस दस्तावेज के तैयार होने की जानकारी देगा।
(vi) इस दस्तावेज की एक प्रति स्थानीय प्रशासन के उपयुक्त अधिकारी या नगर निगम या पंचायत को भेजी जाएगी। ये अधिकारी यह तय करेंगे कि यह दस्तावेज किसके पास सुरक्षित रखा जाएगा।
(vii) जेएमएफसी इस दस्तावेज की एक कॉपी इस व्यक्ति के पारिवारिक डॉक्टर, अगर कोई है तो उसको सौंपेगा।
(d) कौन इस पर कब अमल कर सकता है?
(i) दस्तावेज तैयार करने वाले व्यक्ति का डॉक्टर इस पर अमल करने से पहले इस दस्तावेज की सत्यता सुनिश्चित करेगा।
(ii) डॉक्टर इस दस्तावेज में दिए गए निर्देशों को पर्याप्त तरजीह देगा। इसे तभी लागू करेगा जब वह इस बारे में पूर्ण आश्वस्त हो जाएगा कि उस व्यक्ति की मृत्यु आसन्न है और वह लाइफ-सपोर्ट पर ज़िंदा है और उसके ठीक होने की कोई आशा नहीं है।
(iii) अगर डॉक्टर को लगता है कि इस दस्तावेज को लागू करने का समय आ गया है तो वह इसकी सूचना बीमार व्यक्ति के परिजन को देगा और उसके इलाज के बारे में और उसकी स्थिति के बारे में पूरी जानकारी देगा। उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह जो राय दे रहा है उसका आधार ठोस है और यह कि उसका लाइव-सपोर्ट हटाना उसके सर्वाधिक हित में है।
(iv) जिस अस्पताल में उसका इलाज हो रहा है वह अस्पताल एक मेडिकल बोर्ड का गठन करेगा जिसमें विभिन्न विभाग के विशेषज्ञ होंगे और जो मरीज से उसके रिश्तेदारों की उपस्थिति में मिलेंगे और लाइफ-सपोर्ट वापस लेने पर गौर करेंगे।
(v) मेडिकल बोर्ड अगर समझता है कि दस्तावेजों के निर्देश पर अमल करने का वक्त है तो वह इसकी जानकारी उस क्षेत्र के कलक्टर को देगा। कलक्टर मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी के तहत एक मेडिकल बोर्ड गठित करेगा और उसमें विभिन्न क्षेत्र के तीन चिकित्सकीय विशेषज्ञ होंगे। ये लोग संयुक्त रूप से अस्पताल का दौरा करेंगे जहाँ मरीज भर्ती है। ये लोग निर्देशों को लागू करने पर अपनी सहमति चाहें तो, दे सकते हैं।
(e) अगर मेडिकल बोर्ड अनुमति नहीं दे?
(i) अगर मेडिकल बोर्ड इसकी अनुमति नहीं देता है तो उसका इलाज करने वाला डॉक्टर और रिश्तेदार हाई कोर्ट जा सकते हैं।
(ii) हाई कोर्ट भी चाहे तो मेडिकल बोर्ड का गठन कर सकता है और मरीज की जांच का आदेश दे सकता है और यह पता करवा सकता है कि निर्देशों को लागू किया जा सकता है कि नहीं।
(f) अग्रिम निर्देश को वापस लेना
(i) कोई व्यक्ति अग्रिम निर्देश को कभी भी वापस ले सकता है या उसमें संशोधन कर सकता है अगर उसमें यह करने की क्षमता बची है पर इस बारे में सभी निर्देश लिखित होना जरूरी है।
(ii) अगर अग्रिम निर्देश स्पष्ट नहीं है तो संबंधित मेडिकल बोर्ड इस पर अमल की अनुमति नहीं देगा। उस स्थिति में बिना इस तरह के निर्देश वाले मरीज से जिस तरह से निपटा जाता है वैसे ही उसके साथ भी निपटा जाएगा।