क़ानून निर्माताओं को क़ानून की प्रैक्टिस करने से रोकने की अपील अब सुप्रीम कोर्ट पहुंची [याचिका पढ़े]

Update: 2018-02-08 11:53 GMT

बार काउंसिल की एक उप समिति की इस रिपोर्ट पर कि सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों को क़ानून की प्रैक्टिस करने से नहीं रोका जा सकता, इस मामले के याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में अपील दायर की। उन्होंने क़ानून के निर्माताओं को क़ानून की प्रैक्टिस करने की दोहरी भूमिका निभाने की अनुमति नहीं देने की अपील की है क्योंकि इसमें हितों के टकराव का मुद्दा आता है और यह बीसीआई के नियमों का उल्लंघन भी है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील और भाजपा के नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा, “यह याचिका अनुच्छेद 32 के अधीन दायर की गई है जिसके तहत क़ानून निर्माताओं पर (संसद या विधान मंडल का सदस्य रहते हुए) क़ानून की प्रैक्टिस करने पर रोक लगाई जाए। उन्होंने कहा कि ऐसा करना बीसीआई के नियम 49 और संविधान के अनुच्छेद 14 की भावना के अनुरूप होगा”।

उन्होंने कहा, “कानूनी पेशा नेक है...सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी प्रैक्टिस करने वालों को एक ही साथ दो घोड़ों की सवारी करने को लेकर कई बार चेताया है”।

बीसीआई के नियम 49 के अनुसार : “कोई एडवोकेट, अगर वह प्रैक्टिस कर रहा है, तो उसको उस दौरान किसी लाभ के पद (वेतन प्राप्त होने वाली नौकरी) पर आसीन नहीं होना चाहिए”।

उपाध्याय ने कहा, “विधायकों और सांसदों को भारत सरकार के समेकित निधि से वेतन मिलता है इसलिए वे राज्य के कर्मचारी हुए और बीसीआई का नियम 49 ऐसे लोगों पर एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस पर रोक लगाता है”।


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