जनहित याचिका पर जवाब देरी से दाखिल करने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पीएमओ और क़ानून मंत्रालय पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-01-20 06:24 GMT

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर देरी से जवाब दाखिल करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और क़ानून मंत्रालय पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया है।

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की पीठ ने सुनील कंडू की याचिका पर यह आदेश सुनाया जिन्होंने कहा था कि नियंत्रक और महालेखाकार द्वारा हर साल 5000 रिपोर्ट पेश की जाती है पर केंद्र सरकार उनमें से सिर्फ 10 रिपोर्टों पर ही गौर करती है। कुंडू ने पिछले 10 सालों में सीएजी ऑडिट में उठाई गई आपत्तियों पर सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने का प्रश्न भी उठाया है।

जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गत वर्ष अगस्त में इस पर जवाब दाखिल करने के लिए एक महीने का समय दिया था। एएसजी एसबी पांडेय ने जवाब दाखिल करने के लिए पीएमओ और क़ानून मंत्रालय की ओर से ज्यादा समय माँगा था।

9 जनवरी को इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, “प्रतिवादी को समय देने के बाद भी इन लोगों ने आज तक इस मामले में अपना हलफनामा दायर करने की चिंता नहीं की है”।

कोर्ट ने जवाब देने के लिए और समय तो दे दिया लेकिन उसने तय समय सीमा में जवाब दाखिल नहीं कर पाने के लिए पीएमओ और क़ानून मंत्रालय पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया और इस मामले की सुनवाई तीन सप्ताह के बाद कराने का निर्देश दिया।


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