वर्तमान जज के खिलाफ रिट याचिका दाखिल करने और उनकी आलोचना करने वाले याचिकाकर्ता को कलकत्ता हाई कोर्ट ने लगाई डांट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-01-14 05:53 GMT

कलकत्ता हाई कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को इसलिए डांट लगाई क्योंकि उसने हाई कोर्ट के एक वर्तमान जज के खिलाफ रिट याचिका दाखिल कर इस जज के व्यवहार की आलोचना की है।

न्यायमूर्ति हरीश टंडन ने इस रिट याचिका पर सुनवाई की जिसमें कोर्ट के वर्तमान जज के खिलाफ शिकायत की गई है। जज ने कहा, “यह न केवल डरावना है बल्कि घबराहट पैदा करने वाला भी है जब हाई कोर्ट के किसी वर्तमान जज के खिलाफ कोई निराधार आरोपों वाला रिट याचिका दायर कर उन पर तोहमतें लगाता है। ऐसा करके वह उस व्यक्ति की छवि को तो खराब करते ही हैं, संस्थान और न्याय प्रशासन में क़ानून की अथॉरिटी की स्थिति का भी अपमान करते हैं।”

याचिकाकर्ता अतनु चट्टोपाध्याय ने हाई कोर्ट में आवेदन कर अपना मामला किसी विशेष बेंच के समक्ष रखने का आग्रह किया था। उसने ऐसे जज के खिलाफ अभद्र टिप्पणियाँ की जिन्होंने इस मामले से अपने को अलग कर लिया क्योंकि प्रतिवादियों में से एक को वे जानते थे। बाद में, अवकाशकालीन बेंच की अध्यक्षता कर रहे जज ने इस मामले की सुनवाई की पर उन्होंने कोई आदेश पारित नहीं किया और इसको उसने दुर्व्यवहार तक बताया।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट के कई तरह की अपेक्षाएं की थीं। जैसे -




  1. याचिकाकर्ता को याचिका दायर करने पर आने वाले खर्च की उचित भरपाई की जाए क्योंकि वह दरिद्र और अशक्त है।

  2. उसकी याचिका को आपातकालीन याचिका मानी जाए और शीघ्रता से न्याय दिलाने और सामाजिक लाभ दिलाने की व्यवस्था की जाए।

  3. इस मामले में जज उचित अंतिम फैसला आदेश या निर्देश, वे जैसा भी उचित समझते हैं,  जारी करें।


कोर्ट ने कहा कि इसको पढने के बाद कोई भी समझ सकता है कि याचिकाकर्ता ने किस तरह न्यायालय की महत्ता को कमतर किया है और लोगों में न्याय व्यवस्था के प्रति संदेह पैदा करने का काम किया है।

कोर्ट ने कहा कि अगर याचिका को देखते हुए जज को यह मामला अर्जेंट नहीं लगता वह अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों के पहले इसकी सुनवाई नहीं कर सकते और इससे याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन भी नहीं होता।

हालांकि कोर्ट ने इन सब बातों के बावजूद याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी तरह की अवमानना की प्रक्रिया नहीं शुरू की यह जानते हुए कि वह बेघर है और आय का कोई स्रोत नहीं है, उस पर इस व्यर्थ की मुकदमेबाजी के लिए दंड नहीं लगाया जा सकता।


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