बलात्कार पीड़िता ने शारीरिक रूप से कोई प्रतिरोध नहीं किया सिर्फ इसलिए उसके बयानों पर अविश्वास नहीं कर सकते : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को अपनी इस बात को दुहराया कि बलात्कार पीड़िता के बयानों पर सिर्फ इसलिए अविश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि वह बलात्कार का शारीरिक रूप से विरोध नहीं कर पाई जिसकी वजह से उसके शरीर पर किसी भी तरह के निशान नहीं पड़े।
न्यायमूर्ति संगीता धींगरा ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि पीड़िता के शरीर पर बलात्कार के प्रतिरोध का कोई निशान नहीं है या कोई आतंरिक घाव नहीं है तो इसका मलतब यह नहीं है उसका बयान गलत है।”
कोर्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) (g) (सामूहिक बलात्कार) और 506 (डराने-धमकाने) के तहत आवेदनकर्ता के खिलाफ सुनाई गई सजा और दंड के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे गलत तरीके से फंसाया गया है।
कोर्ट ने हालांकि उनकी इस आशंका को नकार दिया और कहा कि महिला ने जो बयान दिए हैं वे विश्वसनीय हैं। कोर्ट ने महिला के बयान पर सिर्फ इस वजह से सवाल उठाने से मना कर दिया कि उसके शरीर पर प्रतिरोध के कोई निशान नहीं थे। कोर्ट ने कहा कि महिला ने बताया कि उसे शोर मचाने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई थी।
कोर्ट ने कहा, “ इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि महिला ने जान से मारे जाने की डर से बलात्कार का विरोध नहीं किया होगा और इस वजह से उसके शरीर पर प्रतिरोध के कोई निशान नहीं थे। सो महिला के शरीर पर प्रतिरोध के निशान का नहीं होना उसके बयान को निरर्थक नहीं बना देता।”
न्यायमूर्ति सहगल ने हालांकि कहा कि प्रत्येक मामले की जांच उसके बारे में उपलब्ध तथ्य और परिस्थितियों के हिसाब से होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “यह तयशुदा बात है कि यौन अपराध को साबित करने के लिए घाव होना जरूरी नहीं है बशर्ते कि पीड़िता से संबंधित साक्ष्य में कोई मौलिक गड़बड़ियाँ नहीं हैं और संभावना संबंधी कारक उसकी विश्वसनीयता को समाप्त नहीं कर देते...।”
...वर्तमान मामले के तथ्य और उसकी परिस्थितियों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि तथाकथित घटना घटित हुई है। सिर्फ इसलिए कि निस्सहाय पीड़िता इस घटना की शिकार हुई और जिसे किसी भी तरह के शारीरिक प्रतिरोध से बलपूर्वक रोका गया, उसकी बातों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। इसलिए वर्तमान साक्ष्य और परिस्थितियों के आलोक में चिकत्सकीय रिपोर्ट और प्रत्यक्ष साक्ष्य को संयुक्त रूप से देखने पर यह कहा जा सकता है कि साक्ष्य पूर्णतया स्थापित हैं।”
कोर्ट ने इसके बाद यह कहते हुए कि पीड़िता के साक्ष्य पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है, अपील को खारिज कर दिया।