सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के गंगा और यमुना को जीवित इकाई घोषित करने के आदेश पर रोक लगाई

Update: 2017-07-08 13:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें हाई कोर्ट ने गंगा और यमुना नदी को जीवित व्यक्ति की तरह दर्जा दिया गया था। इसके तहत इन नदियों के पास जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार, जिम्मेदारी और ड्यूटी तय हो गई थी।



हाई कोर्ट ने 20 मार्च 2017 को दिए अपने एेतिहासिक आदेश में कहा था कि गंगा और यमुना को जीवित व्यक्ति की तरह दर्जा देना जरूरी था क्योंकि सामाजिक विश्वास को प्रोटेक्ट करने के लिए ऐसा किया गया। जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की बेंच ने कहा कि सभी हिंदुओं का गंगा पर आस्था है और देश की आधी आबादी को गंगा और यमुना कनेक्ट करता है। ये नदियां भौतिक और आध्यात्मिक तौर पर सदियों से बना हुआ है। ये प्राकृतिक श्रोत जीवन और स्वास्थ्य के लिए बेहद सहायक बना हुआ है। गंगा और यमुना सही मायने में जीवन दायिनी बनी हुई है। ऐसे में नमामी गंगे के डायरेक्टर, उत्तराखंड के चीफ सेक्रेटरी और उत्तराखंड के एडवोकेट जनरल को इन नदियों का अभिभावक बनाया जाता है और इन नदियों को प्रोटेक्ट करने और उन्हें संरक्षित करने के लिए इन्हें मानवीय चेहरा बनाया जा रहा है।


उत्तराखंड सरकार के मंत्री व सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने बताया कि हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने अप्रोच किया क्योंकि एडमिनिस्ट्रेटिव दिक्कतें पेश आएगी। राज्य के चीफ सेक्रेटरी और एडवोकेट जनरल को इन नदियों का अभिभावक बनाया गया है जबकि ये नदियां वेस्ट बंगाल तक जाती है और ऐसे में इसकी सफाई सिर्फ उत्तराखंड तक सीमित नहीं है तो फिर राज्य के चीफ सेक्रेटरी और एडवोकेट जनरल कैसे इस स्थिति से निपटेंगे।


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