आज मेरा इससे सामना हुआ है। बहुत सारी महिला वकील जो अच्छे से आगे बढ़ी है,जो बार और बेंच से अत्यधिक स्नेह करती है,निश्चित तौर पर असमानता के तौर पर जी रही है। या निश्चित तौर पर उन्होंने कभी अपने जीवन के किसी मोड़ पर इस बारे में सोचा है। मैं यहां बात कर रही हूं मैटरनिटी की।
अन्य प्रोफेशन की तरह कानूनी के प्रोकेशन यानि लीगल प्रोफेशन की अपनी कुछ चुनौतियां है। शायद इसलिए मैं पहली महिला हूं जो यह कह रही है कि लिंग भेदभाव को बड़े स्तर पर अस्वीकार किया जा रहा है। हम महिला वकील को अभी भी महिला होना कचोंटता है। मैं दस साल से बार यानि वकील के तौर पर काम कर रही हूं और लिंग निष्पक्षता (नूट्रलैटी) के तरसती रही हूं।जबकि बतौर महिला कोई विशेष आचरण या व्यवहार तो मिला ही नहीं है। अब मैंने महसूस किया है,इसलिए कह रही हूं कि कुछ लाभ या विशेषाधिकार देने से संवैधानिक एकसमानता व समान अवसर के उद्देेश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
महिला वकील जो चाहे लाॅ फर्म में काम करती हो या काॅरपोरेट हाउस या मुकद्मे लड़ती हो वह अपने कैरियर व परिवार में से किसी को चुनने के लिए मजबूर हैं। यही बात उस समय और मुश्किल हो जाती है,जब बात बच्चों की आती है। या फिर ये कहा जाए कि उनके पास कोई विकल्प नहीं रहता है और उनको अपने कैरियर को ही छोड़ना पड़ता है।
आमतौर पर लाॅ फर्म में काम करने वाली महिलाओं को मैटरनिटी लीव दी जाती हैं,परंतु इस तरह के ब्रेक को नरमी से नहीं देखा जाता है ओर इस तरह के ब्रेक को फर्म के संस्थानों के नुकसान के तोर पर देखते हैं। महिला वकील आमतौर पर शिकायत करती हैं कि इससे उनके प्रमोशन प्रभावित होते है या उनको कम इंक्रीमेंट आदि मिलते है। जो अपने आप में उनके कैरियर के लिए एक बड़ी परेशानी बन जाते हैं।
वहीं दूसरी तरफ मुकदमे लड़ने वाली महिलाओं के लिए मैटरनिटी असान नजर आती है क्योंकि यह उनको एक तरह से काम करने के घंटों में छूट देती है क्योंकि वह अपनी मर्जी से नए केस ले भी सकती है ओर नहीं भी। अभी तक मैं भी यही सोचती थी,परंतु अब जब खद इस स्थिति से सामना हुआ तो समझ आया कि क्योंकि ऐसी स्थिति में कोर्ट के सामने यह कहना बहुत शर्मनाक व मुश्किल हो जाता है कि वकील मैटरनिटी लीव पर है। यह स्थिति उस समय और खराब हो जाती है जब दूसरे पक्ष का वकील या जज यह पूछने लग जाए कि वकील साहिबा कब तक छुट्टी पर है या कब वापिस आ रही है,क्या वह किसी अन्य कोर्ट के समक्ष तो पेश नहीं हो रही हैं। या वह कोर्ट में पेश होने की स्थिति में नहीं है? मैटरनिटी कोई बीमारी नहीं है,यह जरूरी नहीं है कि जिस मां ने अभी किसी बच्चे को जन्म दिया है,वो बिल्कुल ही हिल-ढ़ुल न पाए। इसके विपरीत उसे एक छोटे बच्चे की जरूरतों का ध्यान रखना होता है,जो हर मां रखती है। इसके लिए उसे अपने बच्चे को समय देना होता है। जब हम किसी पिता,पति या भाई को स्वीकार कर लेते हैं तो क्यूं हम कई बार किसी जज या दूसरे पक्ष के वकील के साथ ऐसा नहीं कर पाते हैं या उसके प्रति नरमी नहीं रख पाते हैं।
मैटरनिटी लीव के तौर पर मिलने वाले बारह सप्ताह आम है। जबकि सरकारी कर्मियों के लिए यह ज्यादा है और उनको नौ महीने तक इसके लिए छुट्टी मिल सकती है। इसलिए कम से कम वकीलों के लिए बारह सप्ताह की मैटरनिटी लीव पर तो कोई सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए। अब समय आ गया है कि इस संबंध में कोर्ट रूल बनाए जाए। यह बताना आसान है कि कितनी छुट्टी दी जा सकती है,परंतु यह भी बताया जाए कि मैटरनिटी लीव को कितना बढ़ाया जा सकता है और जरूरी मामलों में क्या होना चाहिए। इसलिए कोर्ट व जजों को इस संबंध अपनी बुद्धि लगाते हुए यह नियम बनाने चाहिए ताकि महिला वकीलों के लिए मैटरनिटी लीव लेना आसान हो जाए। साथ ही उनको यह लीव पूरे मान-सम्मान के साथ दी जाए।
नियमों में एक खालीपन है। वहीं विभिन्नता,प्रैक्टिस व प्रक्रिया में एकसमानता न होना व अन्य वैधानिक सीमाओं के कारण,यह आसान नहीं है कि वकीलों के लिए ऐसे रूल बनाए जो उनके मैटरनिटी लीव के मामले को नियंत्रित कर सकें। परंतु इस आधार पर इस मुद्दे को अनेदखा नहीं किया जा सकता है और समय की जरूरत है कि इस मामले में एक सही निर्णय लिया जाए या इसको एक सही अंजाम तक पहुंचाया जाए।
एक महिला वकील हो सकता है कि एक दिन किसी केस के लिए पेश हो जाए,परंतु जरूरी नहीं है कि दूसरे दिन भी वह कोर्ट अपने केस के लिए आ पाए क्योंकि बच्चा आने के बाद उसका समय अकेले उसका नहीं रहता है,उसे अपने बच्चे को भी समय देना होता है। ऐसे में अगर कोई महिला वकील एक दिन कोर्ट आ जाती है और दूसरे दिन पेश होने से छूट मांगती है तो उसे संदेह की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। इसलिए उसे आंशिक या नियमित तौर पर काम न करने की अनुमति होनी चाहिए।
कई मामलों में ऐसा हो सकता है कि मुविक्कल पेश होने के लिए दबाव ड़ाल दे अन्यथा वह दूसरा वकील करने की बात कहे क्योंकि उसके पास समय नहीं हो,ऐसे में इस तरह के नियम या कायदे महिलाओं के लिए होने चाहिए ताकि वह अपने काम व परिवार में सामाजस्य बनाए रख सकें।