अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध लगाने वाला 'CrPC (UP Amendment) Act 2018' BNSS द्वारा निरस्त: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

31 May 2025 4:14 AM

  • अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध लगाने वाला CrPC (UP Amendment) Act 2018 BNSS द्वारा निरस्त: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के अधिनियमित होने के साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता (यूपी संशोधन) अधिनियम, 2018 (CrPC (UP Amendment) Act 2018) 'निहित रूप से निरस्त' हो गया। इस अधिनियम ने यूपी गैंगस्टर्स अधिनियम, (6 जून, 2019 से प्रभावी), सहित विशिष्ट कानूनों के तहत मामलों में राज्य में अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध लगाया था।

    जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने कहा कि जब कोई राज्य समवर्ती सूची में किसी विषय पर कानून में संशोधन करता है। साथ ही संसद बाद में उसी कानून में बदलाव करती है तो राज्य के कानून को संसद के कानून के लिए रास्ता देना चाहिए। भले ही उक्त कानून राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून में कुछ जोड़ता हो, उसे बदलता हो या उसे निरस्त करता हो।

    न्यायालय ने कहा कि जब विधानमंडल किसी अधिनियम को निरस्त करता है तो उसके पास निरस्त कानून के तहत दिए गए किसी भी अधिकार, विशेषाधिकार या उपाय को बचाने की शक्ति होती है। हालांकि, इस मामले में जबकि BNSS ने CrPC को निरस्त कर दिया, इसने पूर्ववर्ती CrPC में किए गए राज्य संशोधनों को नहीं बचाया। इसलिए CrPC में यूपी राज्य संशोधन 'निहित रूप से' निरस्त माना जाएगा।

    एकल जज ने अपने 21-पृष्ठ के आदेश में उल्लेख किया,

    "मेरी यह राय है कि संसद द्वारा बनाया गया बाद का कानून, हालांकि, राज्य के कानून को स्पष्ट रूप से निरस्त नहीं करता है, फिर भी राज्य कानून निहित रूप से निरस्त हो जाएगा। यह "समान मामले" के संबंध में किसी भी बाद के संसद कानून के लिए रास्ता देगा, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 254 के प्रावधान के संचालन के आधार पर राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून को जोड़ता है, संशोधित करता है, बदलता है या निरस्त करता है।"

    हालांकि, न्यायालय ने कहा कि राज्य विधानमंडल के लिए नव अधिनियमित संहिता 2023 में राज्य संशोधन लाना हमेशा खुला रहता है।

    जानकारी के लिए बता दें, गैर-जमानती अपराध में गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को जमानत देने का प्रावधान करने वाली CrPC, 1973 की धारा 438 को राज्य के 2018 संशोधन अधिनियम द्वारा पुनर्जीवित किया गया। आपातकाल के दौरान सीआरपीसी (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम 1976 के माध्यम से इस प्रावधान को हटा दिया गया।

    हालांकि, उपधारा (6) में प्रावधान है कि अग्रिम जमानत प्रावधान UAPA, NDPS Act, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, यूपी गैंगस्टर्स अधिनियम और उन अपराधों पर लागू नहीं होंगे, जिनमें मृत्युदंड दिया जा सकता है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    सिंगल जज रमन साहनी द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर विचार कर रहे थे, जिस पर यूपी गैंगस्टर्स अधिनियम की धारा 2 और 3 के तहत मामला दर्ज किया गया।

    न्यायालय को इस आवेदन की स्थिरता के बारे में दो प्रारंभिक आपत्तियों का सामना करना पड़ा, जो इस प्रकार थीं:

    1. अग्रिम जमानत के लिए याचिका सीधे हाईकोर्ट में नहीं होगी। आवेदक को अंकित भारती बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2020 के मामले में निर्धारित कानून के अनुसार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा।

    2. उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम 2018 द्वारा संशोधित CrPC की धारा 438 की उपधारा 6(ए)(बी) के प्रावधान के आलोक में इस मामले में अग्रिम जमानत के प्रावधान का लाभ उपलब्ध नहीं है, क्योंकि आवेदक पर उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया।

    न्यायालय ने मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए पहली आपत्ति खारिज की, जिसमें याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वह एक ही शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज पंद्रह से अधिक FIR का सामना कर रहा है। एक विशिष्ट दलील यह दी गई कि शिकायतकर्ता आर्थिक रूप से प्रभावशाली है। आवेदक के लिए ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना एक गंभीर खतरा है, क्योंकि शिकायतकर्ता और उसके सहयोगी कथित तौर पर उसका पीछा कर रहे हैं।

    इस प्रकार, हाईकोर्ट ने पाया कि आवेदक को सेशन कोर्ट में जाने के बजाय सीधे हाईकोर्ट में जाना चाहिए।

    दूसरी आपत्ति के संबंध में - जिसमें तर्क दिया गया कि अधिनियम 2018 (यू.पी. अधिनियम नंबर 4, 2019) की धारा 6(ए)(बी) के तहत प्रतिबंध, जो यूपी गैंगस्टर्स अधिनियम के तहत दर्ज व्यक्ति को अग्रिम जमानत पर रोक लगाते हैं, CrPC, 1973 के निरस्त होने और संहिता 2023 के अधिनियमित होने के बाद भी लागू हैं। इसलिए तत्काल अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार्य नहीं होगी - पीठ ने कहा कि चूंकि एक केंद्रीय कानून (BNSS) ने संविधान की 7वीं अनुसूची की सूची III में प्रविष्टियों से संबंधित कानून को निरस्त और पुनः अधिनियमित किया। इसलिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पहले के अधिनियम (CrPC) में किए गए किसी भी संशोधन, भले ही उन्हें राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हो गई हो, भी निहित रूप से निरस्त माने जाएंगे।

    इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हाईकोर्ट ने नईम बानो@गैंडो बनाम मोहम्मद रहीस और अन्य 2024 लाइव लॉ (एससी) 1011 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2024 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि यदि संसद किसी ऐसे कानून में संशोधन करती है, जो समवर्ती सूची के किसी विषय पर है तो उसी प्रावधान में पहले किया गया राज्य संशोधन निष्प्रभावी हो जाएगा।

    पीठ ने इनोवेटिव इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम आईसीआईसीआई बैंक [2017] के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2017 के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 'निहित निरसन' के सिद्धांत की व्याख्या की थी। इसने माना था कि यदि राज्य विधान या उसके किसी भाग का विषय संसदीय विधान के समान है तो राज्य विधान को संसदीय विधान के लिए निहित रूप से प्रतिकूल माना जाएगा।

    अपने आदेश में पीठ ने राज्य सरकार के इस रुख पर भी गौर किया कि उसने संहिता 2023 में अग्रिम जमानत के संबंध में राज्य संशोधन के साथ कार्यवाही की है और संशोधन का मसौदा भी तैयार है।

    पीठ ने कहा,

    "(इससे) यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि राज्य सरकार भी इस बात से अवगत है कि पहले की CrPC 1973 के निरस्त होने के बाद 2019 के अधिनियम नंबर 4 के माध्यम से संशोधन लागू करने योग्य नहीं है।"

    इस प्रकार, दूसरी आपत्ति को भी खारिज करते हुए न्यायालय ने सभी मुद्दों को विचार के लिए खुला रखते हुए मामले को जुलाई, 2025 के पहले सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।

    Case title - Raman Sahni vs. State Of U.P. Addl. Chief Secy. Deptt. Of Home Lko 2025 LiveLaw (AB) 201

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