"लैंगिक संवेदनशीलता" पर दो दिवसीय वर्कशॉप का सफल आयोजन
Praveen Mishra
5 May 2025 12:17 PM IST

"लैंगिक संवेदनशीलता" पर दिनांक 26 व 27 अप्रैल, 2025 तक दो दिवसीय वर्कशॉप में फ़ैमिली कोर्ट विषयों के प्रति संवेदनशीलता हेतु गठित इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, उ.प्र., लखनऊ में आयोजित की गई। यह वर्कशॉप आगरा क्लस्टर के पारिवारिक न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिए आयोजित की गई, जिसमें आगरा, अलीगढ़, औरैया, बदायूं, एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, हाथरस, कन्नौज, कासगंज, मैनपुरी एवं मथुरा जनपदों के न्यायिक अधिकारियों ने भाग लिया।
इस वर्कशॉप का उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों को 'लैंगिक अवधारणा' से परिचित कराना तथा घर और कार्यस्थल पर मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रहों की पहचान कर, उनके प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता उत्पन्न करना था।
वर्कशॉप का उद्घाटन 26 अप्रैल, 2025 को माननीय श्रीमती न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा, न्यायाधीश, उच्च न्यायालय, इलाहाबाद, लखनऊ तथा समिति की अध्यक्ष एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला, न्यायाधीश, उच्च न्यायालय, इलाहाबाद, लखनऊ व समिति के सदस्य द्वारा किया गया।
जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला ने मुख्य वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि किस प्रकार लैंगिक रूढ़िवादिता, सामाजिक संरचनाएं एवं सामाजिक कलंक न्यायिक प्रणाली में धारणाओं को प्रभावित कर सकते हैं। माननीय जस्टिस ने न्यायाधीशों से इन प्रभावों के प्रति सजग रहने व अपने निर्णयों में समानता व निष्पक्षता सुनिश्चित करने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा कि विधि की व्याख्या एवं अनुप्रयोग करते समय न्यायपालिका को सामाजिक परिवर्तनों के प्रति सजग रहना चाहिए।
वर्कशॉप के सत्र प्रो. सुमिता परमार, डॉ. अर्चना सिंह एवं साझी दुनिया की टीम द्वारा संचालित किए गए। वर्कशॉप को संवादात्मक व चर्चा आधारित रूप में तैयार किया गया, जिसका उद्देश्य प्रतिभागियों की लैंगिक धारणा को बदलना था।
प्रो. सुमिता परमार ने वर्कशॉप के ढांचे को प्रस्तुत किया और समिति के निरंतर प्रयासों के लिए आभार प्रकट किया, जिससे फ़ैमिली कोर्ट के न्यायाधीश न्यायनिर्णयों में लैंगिक समानता की भावना को समझ सकें।
प्रो. रूपरेखा वर्मा ने सभा को संबोधित करते हुए समाज में व्याप्त लैंगिक असमानताओं के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने 'लैंगिक समझ' की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि लैंगिक न्याय किसी भी प्रकार के द्वंद्व या द्वैत से परे है। उन्होंने यह भी कहा कि जैविक भिन्नताएं पुरुष और स्त्री के अधिकारों या उत्तरदायित्वों में भिन्नता का आधार नहीं हो सकतीं। उन्होंने स्त्रियों को प्रेम, करुणा व त्याग तथा पुरुषों को ज्ञान, निर्णय क्षमता व साहस से जोड़ने वाली पारंपरिक धारणाओं की आलोचना करते हुए इन्हें सामाजिक रूप से निर्मित बताया, जिन्हें चुनौती देना आवश्यक है।
वर्कशॉप में एक "आइस-ब्रेकिंग" सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें कार्यस्थल की वर्तमान स्थिति और उसमें लैंगिक भूमिका को समझाया गया। इस सत्र में बताया गया कि वर्कशॉप का उद्देश्य केवल कानून को समझना नहीं है, बल्कि आत्ममंथन करना भी है। आत्ममंथन आवश्यक है ताकि न्यायिक अधिकारी अपने अवचेतन पूर्वाग्रहों को पहचान सकें और वास्तविक रूप से लैंगिक संवेदनशीलता को आत्मसात कर सकें। यह भी कहा गया कि एक संवेदनशील न्यायाधीश ऐसे निर्णय देता है, जो समाज की प्रगतिशील दिशा में योगदान करते हैं।
दूसरे दिन, "भाषा में लैंगिक भूमिका" और "न्यायपालिका में लैंगिक दृष्टिकोण" जैसे विषयों पर संवादात्मक चर्चा और वीडियो क्लिपिंग्स के माध्यम से विचार विमर्श किया गया।
समापन सत्र में जस्टिस संगीता चंद्रा ने विस्तृत भाषण दिया, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अपर्णा भट बनाम मध्य प्रदेश राज्य का उल्लेख किया। उन्होने न्यायिक आचरण में निष्पक्षता की आवश्यकता पर बल देते हुए बताया कि किस प्रकार हानिकारक रूढ़िवादिता निर्णय लेने की प्रक्रिया को अनजाने में प्रभावित कर सकती हैं। उन्होंने न्यायिक संवेदनशीलता की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए न्यायाधीशों से आग्रह किया कि वे लैंगिक रूढ़ियों की पहचान कर उनसे बचें, क्योंकि ये स्त्रियों के विरुद्ध भेदभाव पैदा कर न्याय के मूल्यों को कमजोर कर सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अवचेतन पूर्वाग्रह न्यायिक परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं, अतः निष्पक्ष और समान निर्णय सुनिश्चित करने के लिए इन पूर्वाग्रहों को हटाने हेतु सचेत प्रयास आवश्यक हैं।

