उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कथित पीड़िता द्वारा रिहाई की गुहार लगाने पर व्यक्ति की POCSO के तहत दोषसिद्धि निलंबित की और जमानत दी
Shahadat
21 Oct 2025 10:59 PM IST

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की का कथित रूप से अपहरण, बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीड़न करने के आरोप में फंसे व्यक्ति के खिलाफ दोषसिद्धि और सजा का आदेश निलंबित कर दिया। पीड़िता ने स्वयं उसकी सजा को निलंबित करने और जमानत पर रिहा करने की गुहार लगाई थी।
चीफ जस्टिस जी. नरेंद्र और जस्टिस आलोक माहरा की खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि ट्रायल कोर्ट का फैसला "बिना किसी सबूत" पर आधारित है और आलोचनात्मक टिप्पणी की -
"अपराध के स्थान से संबंधित महत्वपूर्ण साक्ष्य, या आरोपी को अपराध से जोड़ने वाले किसी भी फोरेंसिक साक्ष्य के अभाव में हमें दोषसिद्धि का फैसला चौंकाने वाला लगता है। वह भी POCSO Act की धारा 5 के तहत दोषसिद्धि का फैसला।"
पीड़िता के पिता (सूचना देने वाले) ने आरोप लगाया कि 01.01.2022 को पीड़िता अपीलकर्ता के साथ फरार हो गई। इसके बाद पीड़िता 23.01.2022 को अपीलकर्ता के साथ पाई गई और उसे (अपीलकर्ता को) उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने जांच की और अपीलकर्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 376(2)(एन) और POCSO Act की धारा 5(एल) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया गया।
ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को उपरोक्त अपराधों का दोषी पाया। व्यथित होकर अपीलकर्ता ने एक अंतरिम आवेदन के साथ यह आपराधिक अपील दायर की, जिसमें दोषसिद्धि और सजा को निलंबित करने और जमानत देने की प्रार्थना की गई। आश्चर्यजनक रूप से पीड़िता अदालत के समक्ष उपस्थित हुई और अपीलकर्ता को हिरासत से रिहा करने का अनुरोध किया।
पीड़िता ने अदालत को बताया कि उसके पति (अपीलकर्ता) के विरुद्ध POCSO Act के कड़े प्रावधानों के लागू होने के कारण, उसे भारी आघात पहुंचा है और वह दयनीय स्थिति में है।
पक्षकारों की ओर से प्रस्तुतियां सुनने और पीड़िता द्वारा किए गए अनुरोध पर विचार करने के बाद न्यायालय ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए तर्कों का अवलोकन किया। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि दोषसिद्धि अपर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर नहीं, बल्कि "बिना किसी साक्ष्य के" के आधार पर की गई।
अदालत ने आगे कहा,
"आलोचना के आधार पर चाहे वह आवासीय भवन हो या होटल, अपीलकर्ता के निवास स्थान को दर्शाने वाला कोई भी प्रमाण दर्ज नहीं होता है। संक्षेप में, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अपराध कहां किया गया, इस बारे में कोई साक्ष्य नहीं है।"
अदालत ने इस तथ्य पर भी आपत्ति जताई कि ट्रायल कोर्ट ने CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान पर भरोसा किया, जबकि उसे कभी पेश नहीं किया गया। साथ ही विस्तृत क्रॉस एक्जामिनेशन के बाद भी पीड़िता से अपीलकर्ता के खिलाफ कोई भी दोषपूर्ण तथ्य सामने नहीं आया।
अदालत ने कहा,
“वास्तव में पीड़िता ने अपने साक्ष्य में अपीलकर्ता के साथ शारीरिक संबंध होने से इनकार किया। केवल इस तथ्य के आधार पर कि पीड़िता के पहने हुए कपड़े डॉक्टर द्वारा ले लिए गए और उसका मेडिकल टेस्ट किया गया, ट्रायल कोर्ट ने POCSO Act की धारा 5 के खंड (l) के तहत अपराध का अनुमान लगाया।”
कोर्ट ने फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (FSL) द्वारा दर्ज निष्कर्ष को भी आश्चर्यजनक पाया, क्योंकि पीड़िता के अंतःवस्त्र पर 'मानव वीर्य' के अंश पाए गए। हालांकि, यह निष्कर्ष दर्ज नहीं किया गया कि वह अपीलकर्ता का था या नहीं।
इस प्रकार, कोर्ट का मत था कि POCSO Act की धारा 5(l) के तहत दोषसिद्धि, प्रवेशात्मक यौन हमले को प्रदर्शित करने वाले किसी भी साक्ष्य के अभाव में टिकने योग्य नहीं है। तदनुसार, दोषसिद्धि और सजा का विवादित आदेश निलंबित कर दिया गया और उसकी अंतरिम जमानत मंजूर कर ली गई।
Case Title: Rampal v. State of Uttarakhand

