'शिकायत या आरोपपत्र में कोई अनुसूचित अपराध नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दो आरोपियों को जमानत दी

Shahadat

5 Oct 2024 2:36 PM IST

  • शिकायत या आरोपपत्र में कोई अनुसूचित अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दो आरोपियों को जमानत दी

    सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ कोयला लेवी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दो आरोपियों लक्ष्मीकांत तिवारी और शिव शंकर नाग को जमानत दी।

    जस्टिस अभय ओक और जज्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत शिकायत दर्ज करने के समय लंबे समय तक कारावास और अनुसूचित अपराध की अनुपस्थिति के आधार पर जमानत दी।

    न्यायालय ने कहा,

    इस प्रकार, जब PMLA Act की धारा 44 के तहत शिकायत दर्ज की गई, तब अनुसूचित अपराध अस्तित्व में नहीं था। यहां तक ​​कि एफआईआर में दायर आरोपपत्र में भी, जिसे शिकायत में अनुसूचित अपराध बताया गया, किसी भी अनुसूचित अपराध के होने का आरोप नहीं था। 19 जुलाई, 2024 को अब छत्तीसगढ़ राज्य में आईपीसी की धारा 384 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोप-पत्र दाखिल किया गया। कारावास की लंबी अवधि और इन अपीलों के विशिष्ट तथ्य को ध्यान में रखते हुए अपीलकर्ताओं की हिरासत जारी रखना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकार का उल्लंघन होगा।”

    न्यायालय ने कहा कि दोनों मामलों के तथ्य समान हैं, क्योंकि वे एक ही प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) और PMLA की धारा 44 के तहत एक ही शिकायत से उत्पन्न हुए। न्यायालय ने कहा कि लक्ष्मीकांत तिवारी लगभग दो साल से हिरासत में है, जबकि शिव शंकर नाग एक साल और नौ महीने से कारावास में है।

    शुरुआत में 12 जुलाई, 2022 को बेंगलुरु के कडुगोडी पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 186, 204, 353 और 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

    न्यायालय ने पाया कि इनमें से केवल धारा 120-बी को ही PMLA के तहत अनुसूचित अपराध माना गया। हालांकि, इसने बताया कि पवना डिब्बर बनाम प्रवर्तन निदेशालय में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलोक में धारा 120-बी को अनुसूचित अपराध नहीं माना जा सकता, क्योंकि अनुसूचित अपराध करने की साजिश का आरोप नहीं लगाया गया।

    न्यायालय ने पाया कि आईपीसी की धारा 384 को बाद में एफआईआर में जोड़ा गया था। इस एफआईआर के आधार पर ECIR दर्ज की गई।

    न्यायालय ने पाया,

    हालांकि, 8 जून, 2023 को आरोप-पत्र दायर किया गया, जिसमें यह उल्लेख किया गया कि धारा 384 के तहत अपराध छत्तीसगढ़ में किया गया। इसके अलावा, सबूतों के अभाव में धारा 120-बी को आरोप-पत्र से हटा दिया गया। इस प्रकार, आरोप-पत्र दाखिल करने की तिथि तक कोई अनुसूचित अपराध मौजूद नहीं था।

    आईपीसी की धारा 384 के तहत अपराध का आरोप लगाते हुए 17 जनवरी, 2024 को छत्तीसगढ़ में दूसरी एफआईआर दर्ज की गई। इस एफआईआर के लिए छत्तीसगढ़ में 19 जुलाई, 2024 को आरोप-पत्र दाखिल किया गया।

    सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि 2022 में PMLA की धारा 44 के तहत ED की शिकायत दर्ज होने तक कोई अनुसूचित अपराध अस्तित्व में नहीं था। दोनों अपीलकर्ताओं की लंबी कैद को देखते हुए कोर्ट ने माना कि उनकी निरंतर हिरासत संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उनके अधिकार का उल्लंघन करेगी।

    इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मीकांत तिवारी और शिव शंकर नाग दोनों को जमानत दी। इसने निर्देश दिया कि उन्हें विशेष अदालत के समक्ष पेश किया जाए, जो ED के वकील की सुनवाई के बाद उचित शर्तों पर उन्हें जमानत पर रिहा करेगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियां जमानत पर विचार करने तक सीमित थीं। शिकायत के गुण-दोष को प्रभावित नहीं करेंगी।

    केस टाइटल- लक्ष्मीकांत तिवारी बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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