चार्जशीट फ़ाइल होने और आरोपी के ट्रायल में शामिल होने पर वह पुलिस स्टेशन में हाज़िर न होने के कारण ही जमानत रद्द नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
9 Dec 2025 9:01 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सिर्फ़ इसलिए ज़मानत कैंसिल नहीं की जा सकती कि कोई आरोपी समय-समय पर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट नहीं करता, खासकर जब जांच पूरी हो गई हो और ट्रायल शुरू हो गया हो।
यह फ़ैसला शेख इरशाद उर्फ़ मोनू की अपील पर आया, जिसकी ज़मानत बॉम्बे हाईकोर्ट, नागपुर बेंच ने राज्य की अर्ज़ी पर रद्द कर दी थी।
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की बेंच ने अपील मंज़ूर की, पहले का ज़मानत आदेश बहाल किया और कहा कि सिर्फ़ रिपोर्टिंग की शर्त का पालन न करने के आधार पर ज़मानत रद्द करने का हाई कोर्ट का तरीका कानूनी तौर पर टिकने लायक नहीं था।
मामले की पृष्ठभूमि
इरशाद का नाम 2020 में नागपुर के गिट्टीखदान पुलिस स्टेशन में NDPS Act की धारा 20 और 29, और महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ़ ऑर्गनाइज़्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) की धारा 3(1)(i)(ii), 3(2) और 3(4) के तहत दर्ज FIR में आरोपी के तौर पर दर्ज किया गया। इस केस में 2 kg 728 g गांजा ज़ब्त किया गया, जिसे NDPS Act के तहत इंटरमीडिएट, नॉन-कमर्शियल क्वांटिटी माना जाता है। अगस्त, 2022 में हाईकोर्ट से ज़मानत मिलने से पहले आरोपी ने लगभग एक साल और ग्यारह महीने कस्टडी में बिताए।
ज़मानत ऑर्डर की एक अहम शर्त यह थी कि आरोपी को हर महीने की 1 और 16 तारीख को लोकल पुलिस स्टेशन में पेश होना होगा। 2023 में राज्य ने हाईकोर्ट में एक अर्ज़ी दी, जिसमें इस आधार पर ज़मानत कैंसल करने की मांग की गई कि इरशाद ने इस शर्त का उल्लंघन किया। हाईकोर्ट ने राज्य की बात मान ली और 9 अक्टूबर, 2025 को ज़मानत रद्द कर दी।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज़मानत मिलने के बाद जांच पूरी हो गई, चार्जशीट फाइल हो गई और केस सेशंस कोर्ट को भेज दिया गया, जहां अभी ट्रायल पेंडिंग है। कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि आरोपी ज़रूरत के हिसाब से रेगुलर ट्रायल कोर्ट के सामने पेश होता रहा है।
कोर्ट ने कहा,
"रिकॉर्ड से हमें पता चलता है कि चार्जशीट फाइल करने और केस सेशंस कोर्ट को भेजने के बाद यह ट्रायल के लिए पेंडिंग है। ट्रायल कोर्ट के ऑर्डर के मुताबिक, अपील करने वाला ट्रायल कोर्ट में पेश हो रहा है। ऐसी स्थिति में जहां चार्जशीट फाइल हो चुकी है और ट्रायल चल रहा है, पुलिस स्टेशन में पेश होने का निर्देश पहली नज़र में सही नहीं है। यह ऐसा केस नहीं है, जिसमें अपील करने वाला ट्रायल कोर्ट के सामने ट्रायल के दौरान पेश नहीं हो रहा हो। हालांकि, सिर्फ पुलिस स्टेशन में पेश न होने के बहाने ज़मानत कैंसिल करना सही तरीका और अच्छा आधार नहीं हो सकता है।"
हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अपील करने वाला बेल पर रहेगा और उसे रेगुलर ट्रायल कोर्ट में पेश होना होगा, जब तक कि किसी सही आदेश से छूट न मिल जाए।
Case : Sheikh Irshad @ Monu v. State of Maharashtra

