हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
21 Jan 2024 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (15 जनवरी 2024 से 19 जनवरी 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
तलाक के मामले में पत्नी के खिलाफ क्रूरता का निष्कर्ष DV Act के तहत भरण-पोषण से इनकार करने का कोई आधार नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि तलाक की कार्यवाही में पत्नी के खिलाफ क्रूरता का निष्कर्ष घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Domestic violence Act 2005 (DV Act)) के तहत उसके भरण-पोषण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।
जस्टिस अमित बंसल ने यह भी कहा कि DV Act की धारा 29 के तहत अपील में सेशन कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका हाइकोर्ट में दायर की जाएगी। एक्ट की धारा 29 में कहा गया, "जिस तारीख को मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश पीड़ित व्यक्ति या प्रतिवादी, जैसा भी मामला हो, को दिया जाता है, जो भी बाद में हो, उस तारीख से तीस दिनों के भीतर सेशन कोर्ट में अपील की जा सकती है।"
केस टाइटल- ए बनाम बी
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विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करने वालों को विरासत और भरण- पोषण जैसे कानूनी परिणामों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि विवाह के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को इससे जुड़े कानूनी परिणामों के बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए और धर्म परिवर्तन के मामलों में पालन किए जाने वाले कई निर्देश जारी किए हैं।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि धार्मिक और उससे जुड़े प्रभावों की विस्तृत समझ प्रदान करके, व्यक्ति को धर्मांतरण के बाद उसकी कानूनी स्थिति में संभावित बदलावों के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए।
टाइटल: मकसूद अहमद बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य एवं अन्य
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OIC कार्ड देने के लिए बर्थ सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं: इलाहाबाद हाइकोर्ट
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना कि किसी विदेशी नागरिक को भारत की विदेशी नागरिकता देने के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 (Citizenship Act) और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत बर्थ सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं है।
जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने OIC कार्ड मांगने वाले भारतीय मूल के विदेशी नागरिक के मामले से निपटते समय कहा, “नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7 (ए) में ओसीआई के अनुदान का प्रावधान है, जिसे किसी भी व्यक्ति को जारी किया जा सकता है, जो भारतीय मूल के नागरिक का बच्चा या पोता या परपोता हो। नागरिकता अधिनियम की धारा 18 उत्तरदाताओं को नियम बनाने के लिए बाध्य करती है। तदनुसार, अधिनियम, 1955 की धारा 18 के अंतर्गत नियम, 2009 बनाए गए। इसके अतिरिक्त 2009 के नियम 29 से 35, जो नियम, 2009 का भाग VI है, भारत की विदेशी नागरिकता के रजिस्ट्रेशन, त्याग और रद्दीकरण का प्रावधान करता है। इन नियमों में उत्तरदाताओं द्वारा मांगे गए नेटिविटी सर्टिफिकेट का कोई उल्लेख नहीं है।”
केस टाइटल- नरोमाटी देवी गणपत बनाम भारत संघ और अन्य ।
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पत्नी की नौकरी का हवाला देकर पति बच्चों के भरण-पोषण के दायित्व से नहीं बच सकते: झारखंड हाइकोर्ट
झारखंड हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पिता अपने बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए उत्तरदायी है। भले ही उनकी पत्नी किसी भी नौकरी में हों।
जस्टिस सुभाष चंद ने कहा, “जहां तक भरण-पोषण आवेदन में याचिकाकर्ता पत्नी की आय का सवाल है, माना जाता है कि उसे प्रति माह 12 से 14 हजार रुपये मिल रहे हैं और वह अपना और दोनों नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण कर रही है। अगर पत्नी निभा सिंह की सैलरी को भी ध्यान में रखा जाए तो दोनों बच्चों के पिता की जिम्मेदारी भी दोनों बच्चों के भरण-पोषण की है।”
केस टाइटल- रघुबर सिंह बनाम झारखंड राज्य और अन्य।
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पति-पत्नी के रूप में साथ रहने वाले पक्ष भरण-पोषण का आदेश देने के लिए पर्याप्त, CrPc की धारा 125 के तहत विवाह के पुख्ता प्रमाण की आवश्यकता नहीं: झारखंड हाइकोर्ट
महिला को भरण-पोषण का अनुदान रद्द करने के लिए दायर पुनर्विचार आवेदन खारिज करते हुए झारखंड हाइकोर्ट ने कहा कि CrPc की धारा 125 के तहत कार्यवाही में विवाह के दस्तावेजी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है, खासकर जब साक्ष्य रिकॉर्ड पर हो। आवेदक प्रतिवादी के साथ पति-पत्नी के रूप में रह रहा है।
जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा, ''विवाह के दस्तावेजी साक्ष्य पर सभी मामलों में जोर नहीं दिया जा सकता। खासकर CrPc की धारा 125 के तहत कार्यवाही में, यदि दोनों पक्ष पति-पत्नी के रूप में एक साथ रहते हैं तो विवाह की धारणा बनाई जा सकती है।
केस टाइटल- राम कुमार रवि बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य।
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सोशल मीडिया पोस्ट केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष विधानसभा चुनावों के संचालन पर संदेह व्यक्त करना आईपीसी की धारा 505 के तहत अपराध नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि केवल सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से स्वतंत्र और निष्पक्ष विधान सभा चुनावों के संचालन पर संदेह व्यक्त करने से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 505 (2) के तहत अपराध नहीं किया जा सकता।
संवाददाता इस मामले में याचिकाकर्ता ने लहार विधानसभा क्षेत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संबंध में संदेह जताते हुए सोशल मीडिया पोस्ट किया।
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पत्नी भरण-पोषण का उचित दावा करने के लिए पति का वेतन जानने की हकदार: मद्रास हाइकोर्ट
मद्रास हाइकोर्ट ने हाल ही में राज्य सूचना आयोग के आदेश को बरकरार रखा। उक्त आदेश मे नियोक्ता को कर्मचारी की पत्नी द्वारा मांगी गई वेतन जानकारी देने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने कहा कि जब पति और पत्नी के बीच वैवाहिक कार्यवाही लंबित हो तो गुजारा भत्ता की मात्रा पति के वेतन पर निर्भर करेगी और पत्नी तभी सही दावा कर सकती है, जब उसे वेतन का सही से पता हो।
केस टाइटल- वीए आनंद बनाम राज्य सूचना आयोग और अन्य।
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CrPc की धारा 482 की कार्यवाही में झूठे आरोप के बारे में अभियुक्त की दलील की जांच नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाइकोर्ट
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 482 के तहत आवेदन पर फैसला करते समय हाइकोर्ट आरोपी के इस तर्क की जांच नहीं कर सकता है कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा, "CrPc की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय न्यायालय के पास बहुत सीमित क्षेत्राधिकार है और उसे इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि 'आरोपी के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है या नहीं, जिसके लिए आरोपी पर मुकदमा चलाया जाना आवश्यक है, या नहीं।"
केस टाइटल - मोहित कुमार और अन्य बनाम यूपी राज्य।
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आईपीसी की धारा 506 के तहत उत्तर प्रदेश में किए गए अपराध, संज्ञेय अपराध है: इलाहाबाद हाइकोर्ट
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 506 के तहत कोई अपराध यदि उत्तर प्रदेश राज्य में किया जाता है तो वह संज्ञेय अपराध है।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने यूपी में प्रकाशित अधिसूचना का हवाला दिया। उक्त अधिसूचना दिनांक 31 जुलाई 1989, यूपी के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा की गई घोषणा को अधिसूचित करता है कि IPC की धारा 506 के तहत दंडनीय कोई भी अपराध उत्तर प्रदेश में होने पर संज्ञेय और गैर-जमानती होगा।
केस टाइटल - ब्रिज मोहन बनाम यूपी राज्य।
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नैतिक अधमता मामले में संदेह के लाभ के कारण बरी होने पर सशस्त्र बलों में नियुक्ति पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा ने यह स्पष्ट किया कि नैतिक अधमता के मामलों में संदेह का लाभ के आधार पर बरी होना सशस्त्र बलों में नियुक्ति के लिए पूर्ण बाधा नहीं।
याचिकाकर्ता को अनुकंपा के आधार पर भारतऔर तिब्बत सीमा पुलिस बल (ITBP) में कांस्टेबल के रूप में नियुक्त किया गया था। उसका नियुक्ति पत्र रद्द कर दिया गया, क्योंकि उसने खुलासा किया कि उसे POCSO मामले में आरोपी बनाया गया, जिसमें वह बरी हो गया।
केस-दीपक कुमार बनाम भारत संघ और अन्य।
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मुकदमे के दौरान सीआरपीसी की धारा 319 के तहत आरोपी बनाया व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 438 के तहत 'अग्रिम जमानत' के लिए भी आवेदन कर सकता है: उड़ीसा हाइकोर्ट
उड़ीसा हाइकोर्ट ने माना कि व्यक्ति जिसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत अदालत द्वारा मुकदमे के दौरान आरोपी के रूप में जोड़ा जाता है और उसे अदालत द्वारा बुलाया जाता है तो वह भी अग्रिम जमानत लेने का हकदार है।
जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 319(3) के तहत ट्रायल कोर्ट को पूछताछ या ट्रायल के लिए उसके द्वारा बुलाए गए व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार है। इस प्रकार संबंधित व्यक्ति को उचित स्वतन्त्रता की हानि की आशंका होगी।