पत्नी की नौकरी का हवाला देकर पति बच्चों के भरण-पोषण के दायित्व से नहीं बच सकते: झारखंड हाइकोर्ट

Amir Ahmad

19 Jan 2024 11:40 AM GMT

  • पत्नी की नौकरी का हवाला देकर पति बच्चों के भरण-पोषण के दायित्व से नहीं बच सकते: झारखंड हाइकोर्ट

    झारखंड हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पिता अपने बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए उत्तरदायी है। भले ही उनकी पत्नी किसी भी नौकरी में हों।

    जस्टिस सुभाष चंद ने कहा,

    “जहां तक ​​भरण-पोषण आवेदन में याचिकाकर्ता पत्नी की आय का सवाल है, माना जाता है कि उसे प्रति माह 12 से 14 हजार रुपये मिल रहे हैं और वह अपना और दोनों नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण कर रही है। अगर पत्नी निभा सिंह की सैलरी को भी ध्यान में रखा जाए तो दोनों बच्चों के पिता की जिम्मेदारी भी दोनों बच्चों के भरण-पोषण की है।”

    पिता ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जिसमें उसे अपने दोनों बच्चों में से प्रत्येक को 5,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।

    पत्नी ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के पास निश्चित वेतन आय और पैतृक कृषि भूमि से अतिरिक्त आय होती है, लेकिन जब से उसने उसके खिलाफ दहेज उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई तब से वह बच्चों के भरण-पोषण में लापरवाही कर रहा है।

    फैमिली कोर्ट के आदेश से व्यथित पति ने यह कहते हुए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि वह बेरोजगार है, जबकि उसकी पत्नी भरण-पोषण आवेदन दायर करने से काफी पहले से काम कर रही है।

    हालांकि, दोनों पक्षकारों की ओर से पेश किए गए सबूतों से कोर्ट ने कहा कि पति पहले बैंक में लोन मैनेजर था और वर्तमान में NGO में नौकरी कर रहा है।

    जहां तक ​​उसकी आय का सवाल है, कोर्ट ने कहा कि इसका खुलासा पति ने नहीं किया, जबकि साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 106 के मद्देनजर सबूत का बोझ उस पर है। इस प्रकार न्यायालय ने उनके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला और रिकॉर्ड पर मौखिक साक्ष्य से यह नोट किया कि उन्होंने इस बात से इनकार नहीं किया कि कृषि भूमि से उनकी वार्षिक आय 10 लाख रुपये है।

    अदालत ने आगे कहा कि पति पर अपने दो बच्चों के अलावा परिवार में किसी का भी भरण-पोषण करने का कोई दायित्व नहीं है।

    इस प्रकार यह माना गया,

    ''ट्रायल कोर्ट ने भरण-पोषण आवेदन में प्रतिवादी की आय के संबंध में अपना निष्कर्ष नहीं दिया। फिर भी इसमें 8 से 10 एकड़ पैतृक भूमि को ध्यान में रखते हुए दोनों नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के साधनों के संबंध में निष्कर्ष दिया, जिस पर भरण-पोषण आवेदन के प्रतिवादी का भी अधिकार निहित है। वह एनजीओ में नौकरी भी कर रहा है।”

    अदालत ने कहा,

    “ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रतिवादी पति को दोनों नाबालिग बच्चों के लिए प्रति माह 5,000/ रुपये की भरण- पोषण राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हुए कहा गया भरण-पोषण आवेदनकर्ता, जो आयकर दाता भी है। प्रतिवादी की आय के मद्देनजर यह भरण-पोषण राशि को अनुपातहीन नहीं पाया गया।”

    निष्कर्ष के मद्देनजर, पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई।

    अपीयरेंस

    आवेदक के लिए वकील- संतोष कुमार सोनी।

    प्रतिवादी के लिए वकील- प्रिया श्रेष्ठ, सूरज सिंह और अक्षय कुमार

    केस नंबर- सीआर. संशोधन क्रमांक 10/2022

    केस टाइटल- रघुबर सिंह बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

    एलएल साइटेशन- लाइवलॉ (झा) 15 2024

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