जांच अधिकारी जांच लंबित नहीं रख सकते, फिर भी अदालत आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकती: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
Shahadat
2 Oct 2025 5:26 PM IST

हत्या के प्रयास के मामले में पुलिस को आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जांच अधिकारी जांच लंबित नहीं रख सकते, फिर भी अदालत आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि यह जांच की निगरानी करने के समान है।
जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के ने डी. वेंकटसुब्रमण्यम बनाम एम.के. मोहन कृष्णमाचारी (2009) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा,
"इस प्रकार, यह अदालत जांच की निगरानी नहीं कर सकता और आरोपपत्र दाखिल करने का निर्देश देना निश्चित रूप से जांच की निगरानी करने के समान होगा।"
इसमें आगे कहा गया:
"जांच अधिकारी जांच को लंबित नहीं रख सकते और उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुंचना होगा कि कोई अपराध बनता है या नहीं? जांच अधिकारी के लिए यह अनिवार्य है कि वह यथाशीघ्र जांच पूरी करे और बिना किसी देरी के फाइनल रिपोर्ट, क्लोजर रिपोर्ट या आरोप पत्र दाखिल करे। अतः, इस आवेदन का निपटारा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 173(1) के अनिवार्य प्रावधान के आलोक में किया जाता है। जांच अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह यथाशीघ्र, अधिमानतः आज से दो महीने की अवधि के भीतर जांच पूरी करे और कानून के तहत आवश्यक कदम उठाए।"
FIR भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 109 (हत्या का प्रयास), 3(5) के तहत दर्ज की गई, लेकिन याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।
हालांकि, अदालत ने कहा,
"जहां तक आरोप पत्र दाखिल करने के संबंध में पुलिस को निर्देश जारी करने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना का संबंध है, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
अदालत ने डी. वेंकटसुब्रमण्यम मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि CrPC की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग केवल उस मामले के संबंध में किया जा सकता है, जो हाईकोर्ट के अधीनस्थ किसी निचली आपराधिक अदालत में लंबित हो।
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि बिना किसी अनावश्यक देरी के जांच पूरी करना कानून का आदेश है, पीठ ने कहा:
"किसी भी शिकायत के मामले में याचिकाकर्ता CrPC के प्रावधानों के तहत संबंधित मजिस्ट्रेट/संबंधित पुलिस अधीक्षक को आवेदन करने के लिए स्वतंत्र है, जिस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा।"
इस प्रकार मामले का निपटारा कर दिया गया।
Case Title: Adesh Parihar v State of MP (MCRC-33184-2025)

