अपील न्यायालय में शुल्क निर्धारण : धारा 11 भाग 2 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961
Himanshu Mishra
1 April 2025 2:44 PM

न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में अपील (Appeal) का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जहां निचली अदालत (Lower Court) के आदेशों की समीक्षा की जाती है। राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) की धारा 11 (Section 11) में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी मुकदमे में सही शुल्क (Proper Fee) की जांच कैसे की जाएगी।
इस लेख के पहले भाग में, हमने इस धारा के प्रारंभिक प्रावधानों पर चर्चा की थी। इस भाग में, हम अपील न्यायालय (Appellate Court) में शुल्क निर्धारण और इससे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण प्रावधानों को विस्तार से समझेंगे।
अपील न्यायालय में शुल्क निर्धारण (Fee Determination in Appellate Court)
जब कोई मामला अपील न्यायालय के समक्ष आता है, तो न्यायालय को अधिकार होता है कि वह निचली अदालत के आदेशों की समीक्षा करे, खासकर उन आदेशों की, जो वादपत्र (Plaint) या लिखित उत्तर (Written Statement) में दिए गए शुल्क को प्रभावित करते हैं।
न्यायालय यह समीक्षा स्वयं कर सकता है या किसी पक्षकार (Party) के अनुरोध पर कर सकता है। यदि अपील केवल मुकदमे के एक हिस्से से संबंधित है, तब भी न्यायालय को शुल्क निर्धारण की समीक्षा करने का अधिकार प्राप्त होता है।
अपर्याप्त शुल्क होने पर अपील न्यायालय की प्रक्रिया (Procedure if Fee is Insufficient)
यदि अपील न्यायालय यह पाता है कि निचली अदालत में दिया गया शुल्क पर्याप्त नहीं था, तो वह संबंधित पक्षकार को निर्देश देगा कि वह निश्चित समय सीमा के भीतर शेष शुल्क (Deficit Fee) जमा करे।
यदि यह शुल्क निर्धारित समय सीमा में जमा नहीं किया जाता है और यह उस राहत (Relief) से संबंधित है, जिसे निचली अदालत ने अस्वीकार कर दिया था और जिसे अपीलकर्ता (Appellant) ने पुनः प्राप्त करने की मांग की है, तो अपील खारिज कर दी जाएगी। लेकिन यदि यह शुल्क उस राहत से संबंधित है जिसे निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया था, तो शेष शुल्क को भू-राजस्व (Land Revenue) के बकाया की तरह वसूला जाएगा।
अतिरिक्त शुल्क जमा होने पर वापसी का अधिकार (Right to Refund of Excess Fee)
अगर यह पाया जाता है कि निचली अदालत में आवश्यकता से अधिक शुल्क जमा किया गया था, तो न्यायालय आदेश देगा कि अतिरिक्त शुल्क (Excess Fee) संबंधित पक्ष को वापस किया जाए। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन बनाए रखने के लिए है, ताकि किसी भी पक्ष को अनावश्यक आर्थिक बोझ न उठाना पड़े।
क्षेत्राधिकार निर्धारण के लिए मूल्यांकन संबंधी प्रश्न (Questions on Valuation for Jurisdiction)
किसी मुकदमे में क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) तय करने के लिए किए गए मूल्यांकन (Valuation) से संबंधित प्रश्न, प्रतिवादी (Defendant) द्वारा लिखित उत्तर में उठाए जा सकते हैं। इन सभी प्रश्नों को मुकदमे की सुनवाई (Hearing) शुरू होने से पहले ही तय किया जाना आवश्यक होता है। यह प्रक्रिया सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) की अनुसूची एक (First Schedule) के आदेश 18 (Order XVIII) के अनुसार की जाती है।
"दावे के गुण-दोष" की परिभाषा (Definition of "Merits of the Claim")
इस धारा के स्पष्टीकरण में यह बताया गया है कि "दावे के गुण-दोष" (Merits of the Claim) उन विषयों से संबंधित होते हैं, जो मुकदमे के निर्णय के लिए आवश्यक होते हैं। इसमें मुकदमे की संरचना (Frame of the Suit), पक्षकारों की अनुचित जोड़ी (Misjoinder of Parties), कार्रवाई के आधार (Causes of Action) या न्यायालय के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) से जुड़े प्रश्न शामिल नहीं होते। हालांकि, इसमें पूर्वविचारित सिद्धांत (Res Judicata), सीमा अधिनियम (Limitation) और इसी प्रकार के अन्य विषय शामिल होते हैं।
उदाहरण (Illustrations)
यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर अपने स्वामित्व (Ownership) का दावा करता है और अपील न्यायालय पाता है कि निचली अदालत में दिए गए शुल्क की गणना गलत की गई थी, तो न्यायालय संबंधित पक्ष को सही शुल्क जमा करने का निर्देश देगा। यदि शुल्क समय पर जमा नहीं किया जाता है, तो अपील खारिज हो सकती है।
एक अन्य उदाहरण में, यदि किरायेदार को बेदखली (Eviction) के मामले में अपील दायर करनी होती है और उसने निचली अदालत में अधिक शुल्क जमा कर दिया था, तो न्यायालय उसे वह अतिरिक्त राशि वापस करने का आदेश देगा। इससे न्यायिक प्रक्रिया को संतुलित और न्यायसंगत बनाया जाता है।
धारा 11 के इस भाग में अपील न्यायालय की शक्तियों और शुल्क निर्धारण से जुड़े महत्वपूर्ण नियमों को स्पष्ट किया गया है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि मुकदमे में कोई भी पक्ष गलत शुल्क निर्धारण के कारण अन्याय का शिकार न हो। अपील न्यायालय को न केवल शुल्क की समीक्षा करने का अधिकार है, बल्कि उसे यह सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी दी गई है कि कोई पक्ष अतिरिक्त शुल्क जमा करने के लिए बाध्य न हो और किसी भी पक्ष को अनुचित लाभ न मिले। सही शुल्क निर्धारण न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने में सहायक होता है।