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एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 1: अधिनियम का संक्षिप्त परिचय
एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) भारत के कठोर आपराधिक कानूनों में से एक है। इस एक्ट को विशेष वैज्ञानिक तरीके से एवं होने वाले अपराधों को ध्यान में रखते हुए नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के साथ गढ़ा गया है। नशा किसी भी समाज को पूरी तरह नष्ट कर देता है, यदि समाज ही नष्ट हो जाए तो फिर देश का कोई अर्थ नहीं रह जाता। व्यक्ति का शरीर प्राकृतिक रूप से ही नशे का अधीन हो जाता है फिर व्यक्ति का ऐसे नशे की पूर्ति के बगैर जीवित रह पाना एक प्रकार से असंभव हो जाता है।भारत...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 9: आदेश 3 नियम 4 में प्लीडर की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) के आदेश 3 के नियम 4 में प्लीडर की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान हैं। एक प्लीडर की नियुक्ति कैसे होगी और उसके द्वारा किस प्रकार कार्य किया जाएगा यह प्रावधान इस नियम में दिए गए हैं। यह नियम इस आदेश का महत्वपूर्ण नियम है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 4 पर विस्तृत चर्चा की जा रही है।यह संहिता में नियम चार के दिए गए शब्द हैं-नियम-4 प्लीडर की नियुक्ति(1) कोई भी प्लीडर किसी भी न्यायालय में किसी भी व्यक्ति के लिए कार्य नहीं करेगा जब तक कि वह उस व्यक्ति...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 8: आदेश 3 नियम 3 से 1 तक प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) प्लीडर से संबंधित है। सिविल प्रक्रिया संहिता का यह अध्याय विस्तृत अध्याय है जो किसी मुकदमे में एक वकील से संबंधित सभी प्रावधानों को स्पष्ट कर देता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 3 के नियम 1 से लेकर 3 तक के सभी प्रावधानों पर सारगर्भित चर्चा की जा रही है।आदेश 3 मान्यता प्राप्त अभिकर्ता तथा प्लीडर (अधिवक्ता वकील) सम्बन्धी नियमावली प्रदान कर है, जो उनके कार्य, अधिकार और कर्त्तव्यों पर प्रकाश डालती है। संहिता की धारा 2 में शब्द प्लीडर तथा "सरकारी...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 7: आदेश 2 नियम 3 से 7 तक प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 2 वादों की विरचना से संबंधित है। इस आदेश में यह बताया गया है एक वाद किस प्रकार से रचित किया जाएगा। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 2 के नियम 3 से लेकर नियम 7 तक के प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है। आदेश 2 के अंतर्गत कुल 7 नियम है, नियम 1 एवं नियम 2 पर पिछले आलेखों में चर्चा की जा चुकी है।नियम 3 के दो अपवाद हैं, जो नियम 4 व 5 में दिये गये हैं।नियम 3 वाद-हेतुकों का संयोजन-(1) उसके सिवाय जैसा अन्यथा उपबन्धित है, वादी उसी प्रतिवादी या संयुक्ततः...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 6: आदेश 2 नियम 2 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 2 वादों की विरचना से संबंधित है। इस आदेश में यह बताया गया है एक वाद किस प्रकार से रचित किया जाएगा। यह आदेश सिविल प्रक्रिया का आधारभूत आदेश है जो उन कानूनों की उत्पत्ति करता है जो स्पष्ट करते हैं कि एक वाद किस प्रकार से होना चाहिए। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 2 के नियम 2 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह संहिता में नियम-2 के शब्द हैंनियम 2 वाद के अन्तर्गत सम्पूर्ण दावा होगा(1) हर वाद के अन्तर्गत वह पूरा दावा होगा जिसे उस वादहेतुक के...
जब अभियुक्त के पास ज़मानतदार नहीं हो तब क्या करें, क्या है प्रावधान
संपूर्ण भारत में कोई अभियुक्त किसी अन्य स्थान पर निवास करता है और किसी अन्य स्थान पर कोई अपराध घटित हो जाता है, जहां अपराध घटित होता है वहां अभियुक्त पर अन्वेषण ( Investigation), जांच (Inquiry) और विचारण (Trial) की कार्यवाही होती है। ऐसे में दूरस्थ स्थानों के व्यक्तियों को भी अभियुक्त बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति कलकत्ता में रहता है और उसे चेन्नई में किसी अपराध में अभियुक्त बनाकर कार्यवाही की जा रही है।ज़मानत नियम है तथा जेल अपवाद है। किसी भी व्यक्ति को जब किसी प्रकरण में अभियुक्त...
सीआरपीसी की धारा 482 : जानिए उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) का अर्थ और उससे संबंधित कुछ विशेष प्रकरण
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC) के अंतर्गत धारा 482 के अधीन उच्च न्यायालय को अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) प्रदान की गई है। इस धारा के अधीन उच्च न्यायालय को एक विशेष शक्ति दी गई है। यह शक्ति दिए जाने का उद्देश्य न्यायालय की कार्यवाही को दुरुपयोग से बचाना है तथा न्याय के उद्देश्यों को बनाए रखना है।कोई भी संहिता, अधिनियम, नियम, अपने आप में पूर्ण नहीं होते हैं क्योंकि समय, परिस्थितियां, क्षेत्र, काल के अनुरूप सब कुछ बदलता रहता है तथा अधिनियम नियमों एवं सहिंता को बनाने वाली विधायिका में इतनी...
जानिए कब अपील करने पर दोषसिद्ध व्यक्ति ज़मानत पर छोड़ा जा सकता है?
अपील का अधिकार दोषसिद्ध किए गए व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 29 के अपील से दिया गया है। दोषसिद्ध हुए व्यक्ति को अपील करने का यह अधिकार सांविधिक (Statute) अधिकार है अर्थात भारत की संसद द्वारा अधिनियमित अधिनियम के माध्यम से दिया गया अधिकार है। जब तक किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को अपील न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध या दोषमुक्त नहीं कर दिया जाता तब तक आरंभिक न्यायालय के निर्णय को अंतिम निर्णय नहीं माना जाता है। अपीलीय न्यायालय को दी गयी शक्तियों में एक सर्वाधिक बड़ी शक्ति दोषसिद्ध किए गए...
कौन होता है सरकारी गवाह और कैसे मिलता है उसे क्षमादान
संयुक्त रूप से किए गए अपराध में कभी-कभी यह परिस्थिति होती है कि इस संयुक्त षड्यंत्र के साथ किसी अपराध को कारित करने वाले लोगों में कोई एक भेदी गवाह (approver) बन जाता है, जिसे सरकारी गवाह भी कहा जाता है। कभी-कभी गंभीर प्रकृति के अपराधों के मामले में अभियोजन पक्ष को यथेष्ट साक्ष्य नहीं मिल पाते हैं, जिस कारण आरोपी को दोषमुक्त होने का अवसर मिल सकता है। अभियोजन पक्ष प्रकरण की सभी वास्तविक बातों को न्यायालय के सामने लाने हेतु अभियुक्तों में से किसी एक अभियुक्त को सरकारी गवाह बना देता है। यह अभियुक्त...
सीआरपीसी : जानिए निर्णय (Judgement) क्या होता है और कैसे लिखा जाता है
साधारण तौर पर निर्णय (Judgement)से आशय किसी विवाद के तथ्यों पर कोई निष्कर्ष से लगाया जाता है। भारतीय दंड प्रणाली के अंतर्गत किसी व्यक्ति का विचारण करने के उपरांत उस पर निर्णय दिया जाता।इसके अंदर अभियुक्त जिसका विचारण किया गया था या तो दोषसिद्ध होता है या फिर दोषमुक्त होता है। न्यायालय अपने समक्ष विचारण के लिए प्रेषित अभियुक्त के दोषी होने या निर्दोष होने के बारे में अपना निर्णय देता है। यदि अभियुक्त दोषी पाया जाता है तो उसके दंड का निर्धारण करना तथा उसे युक्तिसंगत निर्णय के रूप में अभिलिखित करना...
हिंदू विधि भाग 19 : कोई हिंदू व्यक्ति अपनी साहदायिकी संपत्ति सहित कोई भी संपत्ति कहीं भी वसीयत कर सकता है
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 किसी निर्वसीयती मरने वाले हिंदुओं की संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में वारिसान की व्यवस्था करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत हिंदू पुरुष और हिंदू नारी दोनों की संपत्ति के उत्तराधिकार की व्यवस्था की गई है पर यह अधिनियम केवल तब ही लागू होता है जब कोई हिंदू व्यक्ति अपने उत्तराधिकार के संबंध में कोई वसीयत कर कर नहीं मृत हुआ है।इस अधिनियम की धारा 30 महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है। इस धारा के अंतर्गत किसी हिंदू व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपनी संपत्ति को...
हिंदू विधि भाग 18 : उत्तराधिकार से संबंधित संपत्ति में हिस्सेदारों को अग्रक्रयाधिकार (Peferential Right) प्राप्त होता है
हिंदू विधि के अधीन किसी निर्वसीयती मरने वाले हिंदू व्यक्ति की संपत्ति के सभी वारिसों को संपत्ति में अग्रक्रयाधिकार प्राप्त होता है अर्थात उत्तराधिकार के किसी हिस्से को खरीदने का पहला अधिकार उस संपत्ति के हिस्सेदारों को ही प्राप्त होता है।जहां निर्वसीयती मृत व्यक्ति की अचल संपत्ति अनुसूची के वर्ग -1 ही के दो या दो से अधिक वारिसों पर न्यागत होती है और उनमें से कोई वारिस उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति या व्यवसाय में अपने हित को अंतरित करना चाहता है, तो अन्य वारिस या वारिसगण को यह अधिमानी विधिक...
हिंदू विधि भाग- 17 : कोई हिंदू वारिस उत्तराधिकार से कब बेदखल होता है
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 किसी बगैर वसीयत के स्वर्गीय होने वाले हिंदू पुरुष और स्त्री की संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में नियमों को प्रस्तुत करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत वारिसों का निर्धारण किया गया है। कौन से वारिस किस समय संपत्ति में उत्तराधिकार का हित रखते हैं।इस अधिनियम के अंतर्गत किसी संपत्ति में उत्तराधिकार रखने वाले वारिसों के बेदखल के संबंध में भी प्रावधान किए गए। कुछ परिस्थितियां ऐसी है जिनके आधार पर विधि वारिसों को उत्तराधिकार के हित से अयोग्य कर देती है। उत्तराधिकार के संबंध...
हिंदू विधि भाग 16 : बगैर वसीयत के स्वर्गवासी होने वाली हिंदू नारी की संपत्ति का उत्तराधिकार (Succession) कैसे तय होता है
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 ( Hindu Succession Act, 1956) हिंदू पुरुष और हिंदू स्त्रियों में किसी प्रकार का उत्तराधिकार के संबंध में कोई भेदभाव नहीं करता है। यह विधि प्राकृतिक स्नेह और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है। भारत की संसद द्वारा इसका निर्माण सामाजिक समरसता और समानता के आधार पर किया है।इस अधिनियम के अंतर्गत हिंदू पुरुष की संपत्ति को उत्तराधिकार में बांटने का अलग वैज्ञानिक तरीका है जिसका वर्णन इस अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत किया गया है। लेखक द्वारा इस अधिनियम की धारा 8 पर सारगर्भित...
हिंदी विधि भाग-15: बगैर वसीयत के स्वर्गवासी होने वाले हिंदू पुरुष के उत्तराधिकारियों में संपत्ति के बंटवारे का क्रम क्या होता है?
इससे पूर्व के आलेख में किसी बगैर वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति के उत्तराधिकार के निर्धारण के संबंध में उल्लेख किया गया था तथा उन वारिसों को बताया गया था जिन्हें इस प्रकार बगैर वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 8 के अंतर्गत उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। इस आलेख में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार संपत्ति जब उत्तराधिकारियों को प्राप्त होती है तो वह किस क्रम में प्राप्त होगी! इस संबंध में चर्चा की जा रही है।हिंदू उत्तराधिकार...
हिंदू विधि भाग 14 : जानिए बगैर वसीयत के स्वर्गवासी होने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार (Succession) कैसे तय होता है
हिंदू विधि (Hindu Law) किसी भी हिंदू पुरुष को यह अधिकार देती है कि वह अपनी कोई भी अर्जित संपत्ति को कहीं पर भी वसीयत कर सकता है। हिंदू विधि के अंतर्गत किसी भी हिंदू पुरुष को इस बात की बाध्यता नहीं है कि वह अपनी संपत्ति अपने परिवारजनों को ही वसीयत करे या उन्हें ही उत्तराधिकार में दे, स्वतंत्रतापूर्वक हिंदू पुरुष को यह अधिकार दिया गया है कि वह उसकी कमाई हुई संपत्ति को अपनी इच्छा के अनुरूप कहीं भी उत्तराधिकार में दे सकता है या उसे दान कर सकता है, उसे अपना उत्तराधिकार चुनने की स्वतंत्रता है।मुस्लिम...
हिन्दू विधि भाग 13: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं और इस अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ( Hindu Succession Act) 1956 किसी निर्वसीयती हिंदू की मृत्यु के बाद उसकी अर्जित संपत्ति उत्तराधिकार से संबंधित एक संहिताबद्ध अधिनियम है। इस अधिनियम के अंतर्गत कुछ विशेष शब्दों की परिभाषाएं दी गई हैं तथा यह अधिनियम कहां-कहां और किन-किन विधियों को अध्यारोही कर सकता है, उस संबंध में भी उल्लेख किया गया है।इस लेख के माध्यम से लेखक हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से संबंधित धारा 3 एवं धारा 4 के प्रावधानों पर चर्चा कर रहा है।अधिनियम के अंतर्गत कुछ विशेष शब्दों की...
हिन्दू विधि भाग 12 : हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और उससे संबंधित महत्वपूर्ण बातें
लेखक द्वारा लाइव लॉ पर हिंदू विधि के अंतर्गत हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के समस्त महत्वपूर्ण प्रावधानों पर सारगर्भित टीका टिप्पणी के साथ आलेख लिखे गए हैं। इसके आगे भाग 12 से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के महत्वपूर्ण प्रावधान पर टीका टिप्पणी सहित आलेख लिखे जाएंगे।इस लेख भाग -12 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से संबंधित महत्वपूर्ण बातों का समावेश किया जा रहा है तथा इस अधिनियम की प्रस्तावना को प्रस्तुत किया जा रहा है।हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu Personal Law) के अंतर्गत...
हिंदू विधि भाग 11 : जानिए पति पत्नी के बीच मुकदमेबाज़ी के दौरान बच्चों की अभिरक्षा (Child Custody) कैसे निर्धारित की जाती है
वैवाहिक बंधन आपसी सूझबूझ पर निर्भर करता है। जब किसी वैवाहिक बंधन में ऐसी आपसी सूझबूझ का अभाव होता है तथा वैचारिक मत मिल नहीं पाते हैं तब मतभेद का जन्म होता है। ऐसे मतभेद से पति पत्नी के बीच अलगाव का भी जन्म हो जाता है। इस अलगाव के परिणामस्वरूप पति-पत्नी न्यायालय की शरण लेते हैं तथा दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन, न्यायिक पृथक्करण और तलाक के मुकदमों का जन्म होता है।जब इस प्रकार की कार्यवाही अदालतों में चलती रहती है, उस समय विवाह से उत्पन्न होने वाली संतानों पर संकट आ जाता है। किसी भी बच्चे के...
हिन्दू विधि भाग 10 : विवाह विच्छेद (Divorce) के बाद पुनः विवाह कब किया जा सकता है? हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत क्या दाण्डिक प्रावधान है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 तलाक की संपूर्ण व्यवस्था करता है। धारा 13 के अंतर्गत उन आधारों का उल्लेख किया गया है, जिनके आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जाती है और धारा 13b के अंतर्गत पारस्परिक तलाक का उल्लेख किया गया है। अब प्रश्न आता है कि न्यायालय से किसी विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो जाने के बाद विवाह कब किया जा सकता है?लेखक इस लेख के माध्यम से पुनर्विवाह के संबंध में और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत जो दाण्डिक प्रावधान है उनका उल्लेख कर रहा है।पुनर्विवाहविवाह एक पवित्र संस्था है। विवाह...