Hindu Marriage Act | अपील अवधि के दौरान पूर्व पति/पत्नी द्वारा डाइवोर्स डिक्री को चुनौती नहीं दिए जाने पर दूसरा विवाह वैध: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

17 Sept 2025 6:55 PM IST

  • Hindu Marriage Act | अपील अवधि के दौरान पूर्व पति/पत्नी द्वारा डाइवोर्स डिक्री को चुनौती नहीं दिए जाने पर दूसरा विवाह वैध: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी कि पूर्व विवाह को भंग करने वाले डाइवोर्स डिक्री के विरुद्ध अपील करने के लिए निर्धारित समय-सीमा के भीतर किया गया विवाह अवैध नहीं माना जाएगा, यदि पूर्व पति/पत्नी द्वारा आदेश को चुनौती नहीं दी जाती।

    जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ ने यह निर्णय फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी (याचिकाकर्ता) की मूल याचिका पर विचार करते हुए पारित किया।

    फैमिली कोर्ट ने पति (प्रथम प्रतिवादी) को तलाक के आवेदन में अपनी दलीलों में संशोधन करने की अनुमति दी, क्योंकि उसे 'पता चला' कि पत्नी का पूर्व विवाह उसी दिन आदेश द्वारा भंग कर दिया गया, जिस दिन उसकी दूसरी शादी हुई थी।

    प्रथम प्रतिवादी ने तर्क दिया कि दूसरा विवाह अपील के लिए निर्धारित समय-सीमा के भीतर हुआ था। इसलिए दूसरे पति ने तर्क दिया कि धारा 15 के अनुसार उनका विवाह अवैध है।

    अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, जब तलाक के आदेश द्वारा विवाह विच्छेद हो जाता है तो उक्त विवाह के पक्षकार केवल अपील के लिए निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने पर या अपील खारिज होने पर ही पुनर्विवाह कर सकते हैं।

    इस तर्क को खारिज करते हुए अदालत ने कहा:

    “महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या 'अधिनियम' की धारा 15 में उल्लिखित समय-सीमा के भीतर किया गया विवाह, भले ही तलाक के आदेश के विरुद्ध अपील न की गई हो, सभी मामलों में अवैध माना जा सकता है। इस प्रावधान का गहन अध्ययन भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचता। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति इसके उल्लंघन में विवाह करता है तो यह संभव है कि तलाकशुदा पति/पत्नी द्वारा इसके विरुद्ध कानूनी चुनौती दी जा सकती है... जब याचिकाकर्ता के पूर्व पति द्वारा उसके बाद के विवाह को कोई चुनौती नहीं दी गई तो हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि प्रथम प्रतिवादी अब कैसे कह सकता है कि उसके साथ उसका विवाह अमान्य है।”

    प्रथम प्रतिवादी ने आगे तर्क दिया कि दूसरा विवाह सुबह 10 बजे हुआ था, अर्थात जिला कोर्ट के कार्य प्रारंभ होने के आधिकारिक समय से पहले। इसलिए विवाह कोर्ट द्वारा तलाक का आदेश सुनाए जाने से पहले हुआ था।

    हालांकि, अदालत ने इसे भी स्वीकार नहीं किया। अदालत ने टिप्पणी की कि किसी निर्णय का प्रभाव उस दिन से पड़ता है, जिस दिन उस पर न्यायिक अधिकारी/जज द्वारा दिनांक और हस्ताक्षर किए जाते हैं, न कि उस समय पर जिस दिन उसे सुनाया गया था।

    इस बिंदु को स्पष्ट करते हुए अदालत ने आगे कहा:

    “प्रत्येक निर्णय, जैसे ही दिया जाता है, अदालत का प्रभावी निर्णय बन जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश XX नियम 1 में यह अनिवार्य किया गया कि निर्णय और आदेश ओपन कोर्ट में दिए जाएं। ऐसे निर्णय या आदेश जज/जजों द्वारा दिनांक और हस्ताक्षर होते ही प्रभावी हो जाते हैं। प्रासंगिक रूप से, अपील या पुनर्विचार के लिए निर्धारित सीमा अवधि - जैसा भी मामला हो - उस तिथि से शुरू होती है, न कि निर्णय के वास्तविक वितरण के समय से... इसलिए अनिवार्य रूप से एक बार निर्णय सुनाए जाने के बाद यह तुरंत प्रभावी हो जाता है। उस दिन से लागू होता है, जिस दिन इसे सुनाया या दिया गया।”

    अदालत ने यह भी कहा कि प्रथम प्रतिवादी द्वारा मांगा गया संशोधन पूर्व की प्रार्थनाओं को हटाए बिना किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उसके द्वारा दो प्रकार की राहतें मांगी गईं, अर्थात् वैध विवाह को तलाक देने और विवाह को शून्य घोषित करने के लिए।

    इस प्रकार, अदालत ने मूल याचिका स्वीकार की और संशोधन की अनुमति देने वाला फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।

    Case Title: Rakhi v. Krishnakumar and Ors.

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